फिर क्यों निकले शिवराज सिंह चौहान 34 साल बाद पदयात्रा पर

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केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान इन दिनों अपने लोकसभा क्षेत्र में पदयात्रा कर रहे हैं। लगभग 34 साल बाद शिवराज सिंह चौहान को वापस से इसी लोकसभा क्षेत्र की पदयात्रा करने का निर्णय क्यों लेना पड़ा, इस प्रश्न का उत्तर मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में भी तलाशा जा रहा है। शिवराज सिंह चौहान जिस प्रदेश में 16 साल मुख्यमंत्री रहे , उसी प्रदेश के चार जिलों की आठ विधानसभा क्षेत्रों में फैले अपने लोकसभा क्षेत्र में वह पदयात्रा कर रहे हैं। चौहान भले ही यह दावा कर रहे हो कि वे केंद्र सरकार की योजनाओं के प्रचार-प्रसार करने और लोगों से संवाद करने के लिए यह पदयात्रा कर रहे हैं, लेकिन राजनीति के जानकार लोग इस पदयात्रा को यहां तक सीमित मानने को तैयार नहीं हैं।
शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश की राजनीति में अब भी सबसे ताकतवार नेताओं में माने जाते हैं। पिछले तीन दशकों में उन्होंने जिस तेजी से अपनी छवि और राजनीतिक दूरदृष्टि को मजबूत साबित किया है,वह किसी से छिपी हुई नहीं हैं। शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश में अपनी मामा और भाई की छवि बनाई है। आज भी लोग उन्हें मामा के रूप में बुलाना ही पसंद करते हैं।
शिवराज सिंह चौहान जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केबिनेट का हिस्सा बने है, तब से उन्होंने मध्य प्रदेश की राजनीति में अपनी दखल अंदाजी लगभग बंद कर दी है। पिछले एक साल से वे प्रदेश में विदिशा-रायसेन लोकसभा क्षेत्र में ही अपने दौरे कर रहे हैं, बाकी प्रदेश से उन्होंने दूरी बना ली है। ये दूरी क्यों बनाई गई, इसके भी लोग अपने अपने मायने निकाल रहे हैं। ठीक उसी तरह अब उनकी पदयात्रा के भी लोग अपने-अपने अर्थ लगा रहे हैं।

बुधनी से पहली बार विधायक चुने जाने के बाद शिवराज सिंह चौहान का राजनीतिक सफर तेजी से ऊपर की ओर चढ़ने वाला रहा है, वे कभी भी एक जगह पर रहकर राजनीति नहीं करते हैं। विदिशा लोकसभा क्षेत्र हमेशा ही जनसंघ और भाजपा का गढ रहा है। यह सीट भाजपा के लिए सुरक्षित मानी जाती रही है। इसलिए ही अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ से लोकसभा का चुनाव लड़ने के साथ ही विदिशा से लोकसभा का चुनाव लड़ा था। वे दोनों सीटों से जीत गए थे और विदिशा लोकसभा से उन्होंने इस्तीफा दिया तब शिवराज सिंह चौहान उपचुनाव में पहली बार यहां से सांसद बने। शिवराज सिंह चौहान जब विदिशा लोकसभा की राजनीति में आए थे, उस वक्त तक यह क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा, पूर्व वित्त मंत्री राघवजी, पूर्व नेता प्रतिपक्ष गौरीशंकर शैजवार जैसे नेताओं के प्रभाव में था।

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सांसद बनने के बाद उन्होंने यहां पर पदयात्रा की थी। वर्ष 1991 में यह पदयात्रा विदिशा लोकसभा क्षेत्र मे आने वाले विदिशा, बासौदा, कुरवाई, शमशाबाद विधानसभा क्षेत्रों के अलावा भोजपुर, सांची, उदयपुरा और बुधनी विधानसभा में उनकी पदयात्रा निकली थी। हालांकि अब यह लोकसभा क्षेत्र बदल गया है। इसमें विदिशा जिले की गंजबासौदा, विदिशा, रायसेन जिले की सांची, भोजपुर, सिलवानी , सीहोर जिले की बुधनी, इछावर और देवास जिले की खातेगांव विधानसभा आती हैं।

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विदिशा में सांसद रहते ही वे इस क्षेत्र के लगभग सभी नेताओं पर भारी पड़ने लगे थे, कारण यह रहा कि वे न सिर्फ अपने क्षेत्र में लगातार दौरा कर सक्रिय रहे, साथ ही वे भाजपा के प्रदेश महामंत्री, युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से लेकर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष तक बने। शिवराज सिंह चौहान का हर एक कदम हमेशा से ही कुछ कहता रहा है, लेकिन लोग उस कदम को आसानी से नहीं समझ पाते हैं। यानि शिवराज सिंह चौहान जब कुछ करते हैं या चलते हैं तो वह लंबी छलांग की तैयारी मानी जाती है। भाजपा में अभी राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना बाकी है, इस पद के लिए भाजपा के बाकी नेताओं के अलावा शिवराज सिंह चौहान का नाम भी लगातार चल रहा है। वहीं प्रदेश में इन दिनों वे सुर्खियों में भी नहीं रह रहे थे, लेकिन अपनी पदयात्रा से अचानक शिवराज सिंह चौहान न सिर्फ भाजपा बल्कि कांग्रेस और प्रदेश भर के आमजन के बीच में चर्चा में आ गए। शिवराज सिंह चौहान सप्ताह में कुछ दिन पदयात्रा करेंगे, वो भी सिर्फ सात से दस किलोमीटर की पदयात्रा होगी, ऐसे में उनकी यह पदयात्रा कई महीनों तक चलेगी।
*अब पत्नी और बेटा-पुत्रवधु भी साथ*
शिवराज सिंह चौहान ने विदिशा लोकसभा से सांसद बनने के बाद पहली बार 1991 में विदिशा जिले में पदयात्रा की थी। तब उनके साथ विदिशा जिले के ही चंद नेता शामिल थे, क्षेत्र में वे पांव-पांव वाले भैया कहलाने लगे थे। इस बार उनके परिवार के लोग उनके साथ हैं। उनकी धर्मपत्नी साधना सिंह, ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय सिंह चौहान और पुत्रवधु अमानत चौहान उनके साथ इस पदयात्रा में कदम ताल कर रही है।

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(पवन वर्मा-विनायक फीचर्स)

 

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