भाजपा अनुशासन मोर्चा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष समीर आर्य ने मुख्यमंत्री को भेजा प्रस्ताव — शिक्षा व्यवस्था में ऐतिहासिक बदलाव मांग

ख़बर शेयर करें

 

देहरादून / हल्द्वानी।
उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव जल्द देखने को मिल सकता है। भारतीय जनता पार्टी अनुसूचित मोर्चा उत्तराखंड के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष समीर आर्य ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत को एक महत्वपूर्ण पत्र भेजकर राज्य के सभी सरकारी और निजी विद्यालयों में संविधान आधारित शिक्षा को अनिवार्य विषय के रूप में लागू करने की मांग की है।

यह प्रस्ताव न केवल विद्यार्थियों में संविधान की समझ बढ़ाने के उद्देश्य से है, बल्कि नागरिक चेतना, कर्तव्यबोध और राष्ट्र भावना को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल मानी जा रही है।

यह भी पढ़ें 👉  “लालकुआं में माँ अवंतिका के दर्शन को पहुंचे दिलीप बोहरा : बोले, यहाँ की शांति है अद्भुत और दिव्य”

 

पत्र में मांगे गए प्रमुख बदलाव

पत्र के अनुसार, विद्यालयों के पाठ्यक्रम में निम्न बिंदु शामिल किए जाने का प्रस्ताव है—

✔ संविधान के मूल अधिकार, मूल कर्तव्य एवं नीति निर्देशक तत्व
✔ मौलिक अधिकारों की समझ
✔ संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान
✔ न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे संवैधानिक मूल्यों पर आधारित व्यावहारिक अध्ययन
✔ संविधान दिवस, वाद-विवाद, जनजागरण और विशेष आयोजन का अनिवार्य आयोजन
✔ शपथ कार्यक्रम एवं व्यक्तित्व निर्माण आधारित गतिविधियाँ

यह भी पढ़ें 👉  भारतीय धर्मदर्शन के “कर्म सिद्धांत” का जीवंत विद्यालय है उज्जैन का ऐतिहासिक श्री चित्रगुप्त मंदिर

कक्षा आधारित संविधान अध्ययन का प्रस्तावित ढाँचा

कक्षा विषय-वस्तु

1–3 राष्ट्रगान, राष्ट्रीय प्रतीक, सरल संवैधानिक अवधारणाएँ
4–5 लोकतंत्र का परिचय, नागरिक अधिकार और मूल कर्तव्य
6–8 संविधान निर्माण प्रक्रिया, संविधान सभा, डॉ. अंबेडकर योगदान
9–10 संवैधानिक संस्थाएँ, संसद, न्यायपालिका, नीति निर्देशक तत्व
11–12 व्यापक संविधान अध्ययन, न्याय, चुनाव प्रक्रिया, नागरिक जिम्मेदारी

.
समीर आर्य ने कहा— “संविधान शिक्षा समय की सबसे बड़ी आवश्यकता”

पत्र में समीर आर्य ने लिखा है कि आज के समय में बच्चों को केवल डिग्री नहीं, बल्कि संवैधानिक जागरूकता और नागरिक उत्तरदायित्व की शिक्षा देना आवश्यक है। संविधान की समझ न केवल एक विषय है, बल्कि राष्ट्र निर्माण की दिशा में सबसे मजबूत आधार है।

यह भी पढ़ें 👉  गीता जयंती : निष्काम कर्मयोगी भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा भूमि और गीता का मूलाधार उज्जैन

 

प्रस्ताव पर सकारात्मक निर्णय की उम्मीद

यह मांग नागरिक समाज, शिक्षाविदों और सामाजिक संगठनों द्वारा सराहनीय कदम बताया जा रहा है। कई विशेषज्ञों ने इसे देश की लोकतांत्रिक भावना को मजबूत करने वाली ऐतिहासिक पहल बताया है।

अब सभी की नजरें सरकार के निर्णय पर टिकी हैं।

Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad