विशेष संवाद : “सनातन संस्कृति ही हमारी पहचान युवाओं को अपने तीर्थ, परंपरा और विरासत को समझना होगा” भाजपा के वरिष्ठ नेता मुकेश बेलवाल से विशेष वार्ता

ख़बर शेयर करें

 

चोरगलिया/गौलापार।
प्रदेश के प्रसिद्ध समाजसेवी व भाजपा के वरिष्ठ नेता मुकेश बेलवाल ने कहा कि सनातन संस्कृति केवल धर्म नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक प्राचीन और वैज्ञानिक पद्धति है। हमें गर्व होना चाहिए कि हम उस संस्कृति के उत्तराधिकारी हैं, जिसे विश्व आदर के साथ देखता है।

एक विशेष भेंटवार्ता के दौरान उन्होंने कहा

 “सनातन संस्कृति ही हमारी असली पहचान है, लेकिन दुख की बात है कि आधुनिकता की दौड़ में कुछ लोग इसे भूलते जा रहे हैं। अब समय है कि हम अपनी जड़ों को पहचानें और आने वाली पीढ़ियों को भी इससे जोड़ें।”

यह भी पढ़ें 👉  अवंतिका धाम में शुरू हुआ भव्य प्रवेश द्वार का निर्माण, मंदिर समिति ने भक्तों के नाम की यह अपील

स्थानीय तीर्थों की महिमा पर बोले बेलवाल

बेलवाल ने कहा कि गौलापार और चोरगलिया की धरती अनूठी आध्यात्मिक ऊर्जा से भरी है।
उन्होंने बताया कि तीर्थ स्थल महत्व कालीचौड़ धाम माता काली का प्राचीन स्थान, श्रद्धा और शक्ति का केंद्र
सूर्या देवी मंदिर सूर्य ऊर्जा, साधना और लोक आस्था का प्राचीन धाम है

बेलवाल ने कहा “कालीचौड़ और सूर्या देवी जैसे तीर्थ केवल मंदिर नहीं, बल्कि आत्मिक जागृति के स्थल हैं। यहां आना भक्त के मन को शांति और शक्ति देता है।”

यह भी पढ़ें 👉  विशेष समाचार : भूमिया मंदिर, ढलान चक्की बिन्दुखता में होगा भव्य शिव पुराण ज्ञान यज्ञ,  21 दिसंबर को कलश यात्रा के साथ शुभारंभ, 31 दिसंबर को होगा विराम व विशाल भंडारा

युवाओं के नाम संदेश

उन्होंने युवाओं को संस्कृति और राष्ट्र निर्माण को लेकर गहरी जिम्मेदारी बताते हुए कहा

 “जो अपनी संस्कृति को भूल जाता है, उसकी पहचान ही मिट जाती है। इसलिए युवक-युवतियों का दायित्व है कि वे नशे जैसी बुरी प्रवृत्तियों से दूर रहें और अपनी मातृभूमि, भाषा, रीति-रिवाज और आध्यात्मिक धरोहर पर गर्व करें।”

सनातन केवल धर्म नहीं जीवन दर्शन है

उन्होंने कहा कि योग, ध्यान, वेद ज्ञान, आयुर्वेद और भारतीय मूल्य आज पूरी दुनिया अपना रही है।

यह भी पढ़ें 👉  “जहाँ संगम है, वहाँ शक्ति है और जहाँ शक्ति है, वहाँ हनुमान हैं”: प्रयागराज हनुमान मंदिर की अद्भुत कथा और तीर्थ यात्रा

 “हमारी संस्कृति वैज्ञानिक, पवित्र और शाश्वत है  इसे केवल मानना ही नहीं, जीना होगा।”

अंत में भावपूर्ण शब्द

वार्ता के समापन पर उन्होंने भावुक होकर कहा—

 “यदि आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित, संस्कारित और मजबूत बनाना है तो अपनी संस्कृति को संरक्षण देना ही होगा।”

मुकेश बेलवाल के इस संवाद ने स्थानीय लोगों, युवाओं और श्रद्धालुओं में सांस्कृतिक चेतना का नया संचार किया है।

Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad