सनीउडियार : हवनतोली की आध्यात्मिक विरासत उपेक्षा का शिकार, नागभूमि की पहचान धुँधली

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सनीउडियार : हवनतोली की आध्यात्मिक विरासत उपेक्षा का शिकार, नागभूमि की पहचान धुँधली

जनपद बागेश्वर का सनीउडियार क्षेत्र प्राचीन काल से ही आध्यात्मिक साधना का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। पौराणिक और लोकमान्यताओं में वर्णित यह पावन स्थल कभी शाण्डिल्य ऋषि की कठोर तपस्या का गवाह रहा है। लेकिन आज यह ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व से संपन्न क्षेत्र अपनी पहचान पुनः पाने के लिए संघर्षरत है।

सनीउडियार की पहचान :उडियार, जो अब गुमनाम

सनीउडियार नाम स्वयं अपने “उडियार” से अस्तित्व पाता है। पर्वतीय भाषा में उडियार का अर्थ है — छोटी प्राकृतिक गुफा, जहाँ ऋषि-मुनि तपस्या किया करते थे।

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ऐतिहासिक उल्लेखों के अनुसार, यह उडियार वही स्थान है जहाँ महर्षि शाण्डिल्य ऋषि ने गहन ध्यान और तपस्या की थी। परंतु दुःख का विषय है कि आज यह गुफा उपेक्षा का शिकार ह संरक्षणहीन है

हवनतोली : जहाँ नागों और ऋषियों ने किया था विराट यज्ञ

सनीउडियार से लगे हवनतोली का उल्लेख भी अत्यंत गौरवमयी है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यहाँ महाप्रतापी नागों ने ऋषियों के साथ मिलकर एक विराट हवन का आयोजन किया था।

उसी आयोजन की स्मृति में इस स्थान को आज भी “हवनतोली” के नाम से जाना जाता है।कहा जाता है कि इसी यज्ञ के कारण यह संपूर्ण घाटी “नागपुर” या “नागभूमि” के नाम से विख्यात हुई।

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पुराणों में मिलता है उल्लेख

कमस्यार घाटी के सनीउडियार और हवनतोली का जिक्र

स्कंद पुराण अन्य नाग परंपरा से संबंधित ग्रंथों में मिलता है।महर्षि व्यास ने भी इस क्षेत्र कोशिव और शक्ति की वासभूमि
बताते हुए इसकी आध्यात्मिक महिमा का वर्णन किया है। यहाँ आस्तीक ऋषि सहित कई महर्षियों ने नागों के साथ मिलकर वैभवशाली यज्ञ किए, जिसकी ऊर्जा और पवित्रता आज भी इस घाटी की हवाओं में महसूस की जा सकती है।

कभी तपोस्थली, आज उपेक्षा के साये में

बासपटान–कांडा मोटर मार्ग के समीप स्थित यह क्षेत्र कभी ऋषि परंपरा,यज्ञ संस्कृति, ध्यान साधना का जीवंत केन्द्र रहा।लेकिन आज आध्यात्मिक पहचान होते हुए भी यह स्थलसंरक्षण के अभाव में उपेक्षित,ऐतिहासिक जानकारी के बिना गुमनाम,और पर्यटन की दृष्टि से अविकसित है। स्थानीय जनमानस और प्रशासन के संयुक्त प्रयासों से इसकी अद्वितीय विरासत पुनर्जीवित हो सकती है।
सनीउडियार और हवनतोली केवल भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि यह हिमालय की प्राचीन ऋषि परंपरा, नाग संस्कृति और यज्ञीय वैभव का जीवंत प्रतीक हैं।
आज आवश्यकता है कि इस पवित्र भूमि की उपेक्षित आध्यात्मिक धरोहर को संरक्षित और पुनर्स्थापित किया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसके गौरव से परिचित हो सकें।