हल्दूचौड़ / चमोली।
उत्तराखंड की पवित्र धरती, लोक आस्था और संघर्षों भरे जीवन को रचनात्मक रूप में बड़े पर्दे पर उतारने वाली हिंदी फीचर फिल्म “विद्या – सपनों की उड़ान” आज चर्चाओं में है। फिल्म का सबसे बड़ा आकर्षण यह है कि इसे चमोली जनपद के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक धरोहरों में गिने जाने वाले बाण गाँव और लोक देवता लाटू देवता की पवित्र भूमि पर फिल्माया गया है।
फिल्म देखते हुए दर्शकों ने महसूस किया कि वे किसी सिनेमा हॉल में नहीं बल्कि गढ़वाल के गाँवों की उसी मिट्टी, उन्हीं पगडंडियों और उसी सरल संस्कृति के बीच चल रहे हैं, जहां बचपन बीज की तरह बोया जाता है और संघर्षों की धूप में पनपकर आत्मनिर्भरता का वट वृक्ष बनता है।
लोक देवता लाटू की आस्था ने दी फिल्म को आध्यात्मिक पहचान
उत्तराखंड में लोक देवताओं का सम्मान सिर्फ पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि लोक आस्था, सामाजिक अनुशासन और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।
फिल्म “विद्या” में लाटू देवता की पृष्ठभूमि सिर्फ एक लोकेशन नहीं, बल्कि एक भावनात्मक धड़कन बनकर उभरती है।
ग्रामीणों की मान्यता, मंदिर तक पहुंचने के नियम, श्रद्धा और लोक रीति—इन सबने फिल्म को आध्यात्मिक गरिमा और वास्तविकता की गहराई प्रदान की है।
पहाड़ का दर्द भी… और सौंदर्य भी
फिल्म में दो पहाड़ साफ दिखाई देते हैं—
एक वह, जो प्रकृति, शुद्धता और विरासत से भरा है।
और दूसरा वह पहाड़, जहां भौगोलिक कठिनाइयाँ, शिक्षा की कमी, संसाधनों की कमी और migration जैसे मुद्दे आज भी चुनौती बने हुए हैं।
“विद्या” इन दोनों पहलुओं को संतुलित रूप से सामने लाती है
स्कूल तक पहुँचने के लिए कठिन रास्ते सीमित अवसरों में बड़े सपने आर्थिक संघर्ष और शिक्षा के प्रति जागरूकता
इन दृश्यों ने दर्शकों की आँखें नम कीं और दिल भर दिया।
बाण गाँव की खूबसूरती ने कहानी को बनाया और जीवंत
घरों की छतों पर रखी पत्थर की स्लेटें, खेतों में लहराती जौ और गेहूं, ऊँचे देवदार, नीला आसमान, ठंडे झरने और पहाड़ी लोक संगीत इन सबने फिल्म को उत्तराखंड का असली रंग दिया।
फिल्म देखने वालों ने कहा कि “हमने पहली बार पहाड़ को इतने वास्तविक रूप में स्क्रीन पर देखा।”
अभिनय और कहानी — पहाड़ की आत्मा
बाल कलाकार तेजस्विनी गंगोला ने विद्या के किरदार में केवल अभिनय नहीं किया, बल्कि उस पहाड़ी बालिका की शक्ति, संघर्ष और सपनों को जिया है।
फिल्म के निर्देशक संजय दास और निर्माता तेजोराज पटवाल ने उत्तराखंड की भावनाओं को बिना चकाचौंध, बिना बनावट के, प्राकृतिक और सच्ची शैली में प्रस्तुत किया है।
क्यों है यह फिल्म खास?
प्रमुख पहलू प्रभाव
लोक आस्था (लाटू देवता) आध्यात्मिक जुड़ाव
बाण गाँव की लोकेशन पहाड़ की असली तस्वीर
माइग्रेशन और शिक्षा की चुनौती सामाजिक संदेश
नारी शक्ति और बेटी शिक्षा सकारात्मक प्रेरणा
स्थानीय कलाकारों की भागीदारी क्षेत्र की प्रतिभा को मंच
दर्शकों की एक आवाज — “विद्या सिर्फ फिल्म नहीं, पहाड़ का चेहरा है”
दर्शकों ने कहा—
“पहाड़ सिर्फ पर्यटन नहीं, भावनाओं, संघर्षों और आस्था का घर है। ‘विद्या’ ने इसे बखूबी महसूस कराया।”
विशेष
“विद्या” सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि उत्तराखंड के लोक देवताओं, पहाड़ की संस्कृति, संघर्षों, उम्मीदों और सौंदर्य का जीवंत दस्तावेज है।
यह फिल्म बताती है—
पहाड़ जितना कठोर है, उतना ही पवित्र भी है…
और सपने चाहे जहां जन्म लें, उड़ान उनकी सीमाएँ नहीं रोक सकतीं।
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