प्रयागराज जिसे पहले इलाहाबाद और प्राचीन शास्त्रों में प्रयाग या तीर्थराज कहा गया। यह वह भूमि है जहाँ देवताओं ने प्रथम यज्ञ किया, जहाँ तीन पवित्र नदियाँ मिलती हैं, और जहाँ हर धड़कन में राम-नाम और हर श्वास में भक्ति समाई है।इसी दिव्य भूमि पर स्थित है विश्वप्रसिद्ध लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर।
हनुमान जी के विश्राम की अद्भुत कथा
वाल्मीकि रामायण और ब्रह्मांड पुराण में एक प्रसंग मिलता है कि लंका विजय के बाद जब भगवान श्रीराम अयोध्या लौटे, तो समूचे वानर-सेना सहित हनुमान जी अत्यधिक थक चुके थे। प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक और कोशल व्यवस्था में हनुमान जी निरंतर सेवारत रहे। अंततः एक दिन प्रभु ने मुस्कुराकर कहा “हे मारुतिनंदन, अब कुछ समय विश्राम करो।”हनुमान जी ने हाथ जोड़कर कहा“प्रभु, मेरे लिए विश्राम वही है जहाँ आपकी कृपा और भक्तों का कल्याण हो।” किंवदंती कहती है कि जब हनुमान जी पृथ्वी पर विश्राम हेतु स्थान खोज रहे थे, तभी ब्रह्मांड से एक दिव्य वाणी सुनाई दी“संगम वह भूमि है जहाँ देव, ऋषि और स्वयं ब्रह्मा ध्यान में रहते हैं। वहीं विश्राम करो, वहीं तुम्हारे दर्शन विश्व के लिए कल्याणकारी होंगे।”और फिर, हनुमान जी इस संगम तट पर आए…वहीं लेट गए…
और तभी उनकी दिव्य आकृति धरा पर उभर आई।
संगम का चमत्कार हर वर्ष गंगा स्वयं करती हैं अभिषेक
इस मंदिर का सबसे विचित्र और अद्भुत चमत्कार यह है कि
जब भी कुम्भ या उच्च जल स्तर का समय आता है, गंगा का जल मंदिर तक बढ़ता है, मूर्ति को स्पर्श करता है और अभिषेक कर स्वयं वापस हट जाता है। भक्त कहते हैं “जहाँ हनुमान विश्राम करते हैं, वहाँ स्वयं प्रकृति उनका ध्यान करती है।”
क्यों है यह मंदिर इतना शक्तिशाली?
हिंदू शास्त्रों में कहा गया है “हनुमानं विना रामो, रामं विना हनुमानः।”त्रिवेणी तट पर हनुमान जी का लेटे हुए रूप भक्त को समर्पण सिखाता है समर्पण शरीर नहीं, मन का होता है। यहाँ आने वाले भक्त कहते हैं “इस मंदिर में मांगना नहीं पड़ता, मनोकामना स्वयं पूर्ण होती है।”
मंगलवार और शनिवार की अलौकिक अनुभूति
इन दिनों मंदिर में भक्तों का महासागर उमड़ पड़ता है।
भक्ति के स्वरों में: सुंदरकांड का पाठ हनुमान चालीसा हनुमान अष्टक बजरंग बाण पूरा परिसर राम नाम की ध्वनि से गूंज उठता है।
आश्चर्यजनक विश्वास “सिंदूर चढ़ाओ और भक्त बन जाओ उनके” मंदिर में हनुमान जी के लिए विशेष सिंदूर चढ़ाने की परंपरा है।
शास्त्रों में कहा गया है “सिंदूरं कपीशस्य ददामि हृदयस्थिते।”यहाँ चढ़ाया जाने वाला सिंदूर भक्तों के लिए रक्षा कवच माना जाता है।
भक्तों की अनुभूति ‘यहाँ आकर डर समाप्त हो जाता है’
हरिद्वार से आई एक वृद्ध महिला ने कहा “पहले मन में भय रहता था पर यहाँ आते ही लगता है सब संकट हनुमान जी ने ले लिए।” वहीं एक युवा श्रद्धालु ने कहा “यह जगह मंदिर कम, आत्मा की शरण है।” कुल मिलाकर यहां यात्रा केवल दर्शन नहीं, ईश्वरीय अनुभव है प्रयागराज का हनुमान मंदिर केवल पत्थर, ईंट या स्थापत्य नहीं यह आस्था की जीवित शक्ति है।यहाँ आने वाला हर भक्त अपने भीतर एक नई जबाबदारी लेकर लौटता है “भक्ति में स्थिर रहो…
क्योंकि जहाँ हनुमान हैं, वहाँ श्रीराम स्वयं हैं।”
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