सिंधु घाटी की प्राचीन मुहरों से न्यूयॉर्क के योग स्टूडियो तक अनंत योगयात्रा

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(विवेक रंजन श्रीवास्तव-विनायक फीचर्स)

योग का इतिहास लगभग 5000 वर्ष पुराना है । योग के प्रारंभिक प्रमाण सिंधु-सरस्वती घाटी सभ्यता (2700 ईसा पूर्व) में मिलते हैं। पुरातात्विक साक्ष्य, विशेष रूप से योग मुद्राओं वाली मुहरें, इंगित करती हैं कि योग उस समय की संस्कृति का अभिन्न अंग था । हिंदू परंपरा में भगवान शिव को ‘आदि योगी’ माना जाता है, जिन्होंने सप्तऋषियों को योग का ज्ञान प्रदान किया ।
वैदिक काल (1500-500 ईसा पूर्व) में योग का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है, जहाँ यह आध्यात्मिक एकता और ब्रह्मांडीय चेतना से जुड़ने का साधन था। उपनिषदों में योग को “चित्त की वृत्तियों के निरोध” के रूप में परिभाषित किया गया, जिसका उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार और अंततोगत्वा मोक्ष प्राप्त करना था ।
योग साधना का शास्त्रीय काल दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है। ऋषि पतंजलि ने योग सूत्र की रचना कर योग को एक व्यवस्थित दर्शन प्रदान किया। उन्होंने अष्टांग योग की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें आठ चरण शामिल थे-
1.यम (सामाजिक अनुशासन)
2. नियम (व्यक्तिगत अनुशासन)
3. आसन (शारीरिक मुद्राएँ)
4. प्राणायाम (श्वास नियंत्रण)
5. प्रत्याहार (इंद्रिय संयम)
6. धारणा (एकाग्रता)
7. ध्यान (मेडिटेशन)
8. समाधि (परम चेतना)

भारतीय दर्शन में योग की प्रमुख शाखाएँ योग प्रकार , मार्ग, प्रतिपादक के आधार पर निर्धारित की गई है।
कर्म योग, निस्वार्थ कर्म की शिक्षा देता है। भक्ति योग, भक्ति और समर्पण को और ज्ञान योग, बौद्धिक जागृति बताता है। राज योग में ध्यान और मानसिक नियंत्रण पर बल दिया जाता है।
मध्यकालीन परिवर्तन हुए जब भक्ति योग से हठयोग तक के साधक हुए । मध्ययुगीन काल में योग ने विविध आध्यात्मिक परंपराओं के साथ एकीकरण किया। भगवद्गीता (200 ईसा पूर्व) ने कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग के मार्ग प्रस्तुत किए, जो व्यक्ति की प्रकृति के अनुरूप मुक्ति के विविध विकल्प प्रदान करते थे ।

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11वीं शताब्दी में योगी गोरखनाथ के नेतृत्व में नाथ परंपरा का उदय हुआ, जिसने हठयोग को केंद्र में रखा। इस शैली में कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए शारीरिक आसनों और श्वास तकनीकों पर विशेष जोर दिया गया। इसने योग के अभ्यास में एक भौतिक आयाम जोड़ा और आधुनिक योग शैलियों का मार्ग प्रशस्त किया ।
आधुनिक पुनर्जागरण से योग समीचीन हुआ। स्वामी विवेकानंद ने योग के वैश्विक प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। औपनिवेशिक काल में स्वामी विवेकानंद ने 1893 में शिकागो की विश्व धर्म संसद में योग का परिचय पश्चिम से करवाया। उन्होंने योग के आध्यात्मिक और दार्शनिक पहलुओं पर जोर दिया, जिससे पश्चिम में पूर्वी रहस्यवाद के प्रति आकर्षण बढ़ा ।
20वीं सदी में तिरुमलाई कृष्णमाचार्य और बी.के.एस. आयंगर जैसे योगाचार्यों ने योग को विज्ञान सम्मत रूप प्रदान किया। आयंगर की पुस्तक “लाइट ऑन योग”(1966) ने हठ योग को पुनर्परिभाषित किया और योग को घर-घर तक पहुँचाया । इसी काल में परमहंस योगानंद ने”ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी” के माध्यम से अमेरिका में ध्यान योग को लोकप्रिय बनाया।

*अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून*

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव रखा। 11 दिसंबर 2014 को 177 देशों के समर्थन से 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया । यह दिन ग्रीष्म संक्रांति (उत्तरी गोलार्ध का सबसे लंबा दिन) के रूप में चुना गया, जो भारतीय परंपरा में विशेष महत्व रखता है।
2025 में पुडुचेरी में आयोजित होने वाले कार्यक्रम की थीम “योग फॉर वन अर्थ, वन हेल्थ” रखी गई है, जो वैश्विक स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति योग के योगदान को रेखांकित करती है ।
समकालीन परिदृश्य में डिजिटल युग में योग का विस्तार और उपयोग सार्वभौम है। आज योग ने पारंपरिक सीमाओं को पार कर डिजिटल मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज की है। ऑनलाइन कक्षाएँ, योग ऐप्स और सोशल मीडिया ने योग को वैश्विक ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचाया है। वैश्विक योग बाजार 2023 तक 66 अरब डॉलर से अधिक का हो गया है, जो इसकी व्यापक स्वीकृति को दर्शाता है ।
वैश्विक स्तर पर योग के प्रभाव के प्रमुख संकेत सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ में परिलक्षित हो रहे हैं।अनुसंधानों ने पुष्टि की है कि योग तनाव कम करता है, हृदय गति नियंत्रित करता है, शरीर का लचीलापन बढ़ाता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है ।
योग सांस्कृतिक आदान-प्रदान का विषय बन गया है।बैंगलोर के अक्षर योग केंद्र जैसे संस्थानों ने 12 गिनीज विश्व रिकॉर्ड स्थापित किए हैं, जिसमें 50 दिव्यांग बच्चों सहित देश-विदेश के हजारों प्रतिभागी शामिल हुए ।
शैक्षिक एकीकरण में भी योग की भूमिका दिख रही है।अमेरिका, यूरोप और भारत सहित कई देशों ने योग को शैक्षिक पाठ्यक्रम में शामिल किया है। योग साधना के सैन्य अनुप्रयोग भी हो रहे हैं । भारतीय सेना, सीआरपीएफ और पुलिस बलों में योग को अनिवार्य प्रशिक्षण का हिस्सा बनाया गया है ।
योग हमारी सांस्कृतिक विरासत और भविष्य की दिशाएँ निर्धारित कर रहा है। योग भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बन गया है। यूनेस्को ने 2016 में योग को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किया, जो इसके वैश्विक महत्व को मान्यता देता है। भविष्य में योग अनुकूली प्रौद्योगिकी (वर्चुअल रियलिटी के माध्यम से) और चिकित्सा विज्ञान (योग चिकित्सा के रूप में) के साथ और अधिक एकीकृत होने की ओर अग्रसर है ।
योग की यात्रा सिंधु घाटी की प्राचीन मुहरों से लेकर न्यूयॉर्क के योग स्टूडियो तक फैली चुकी है। यह केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि “मन, शरीर और आत्मा का मिलन” है, जैसा कि आयुष मंत्रालय ने परिभाषित किया है । प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि “योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है। यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है। यह मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य का रास्ता है” । जैसे-जैसे विश्व तनाव, जलवायु परिवर्तन और सामाजिक विखंडन की चुनौतियों का सामना करता है, योग की “एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य” की दृष्टि हमें स्मरण कराती है कि प्राचीन भारतीय ज्ञान आधुनिक वैश्विक समस्याओं के समाधान में कितना प्रासंगिक है । *(विनायक फीचर्स)*

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