देवभूमि के रूप में पूजित एवं प्रतिष्ठित उत्तराखंड पुरातन काल से ही अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व धार्मिक परंपराओं के लिए जाना जाता है।
चारधाम के अलावा इस पावन भूमि में ऐसे अनेकानेक पौराणिक देवस्थल हैं, जहां आये दिन होने वाले दिव्य चमत्कार आज भी लोगों को हैरान कर देते हैं अपितु श्रद्धालुओं के बीच उत्सुकता, आश्चर्य एवं कौतूहल का विषय बने रहते हैं।
ऐसा ही एक चमत्कारिक पौराणिक देवस्थल है चम्पावत का मॉ कड़ाई देवी मन्दिर ।
भगवती कड़ाई देवी के इस भव्य शक्तिस्थल की अपनी एक अलग मान्यता और अलग नियम हैं । जनपद चंपावत स्थित माँ भगवती कड़ाई देवी मन्दिर में प्रतिवर्ष सम्पन होने वाले पवित्र धार्मिक आयोजन में लोक देवता विशुंग की चार द्योली की दिव्य गाथा अपने आप में अद्भुत है।
यह देवस्थल प्राचीन काल से ही स्थानीय श्रद्धालुओं की महान आस्था एवं श्रद्धा-भक्ति का पवित्र केंद्र रहा हैं।
अनेक पावन अवसरों पर यहां न्याय की गद्दी लगती है, जिसमें ” सुईं ” और ” विशुंग ” के स्थानीय डांगरों के शरीर में देवता अवतरित होकर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं और उनकी हर मनोकामना को पूर्ण करते हैं। चार द्योली में विशुंग स्थित आदि शक्ति मां भगवती (कड़ाई देवी), सुंई चौबेगांव स्थित मां भगवती, आदित्य महादेव, भूमिया देवता एवं पऊ गांव स्थित मस्टा मंडली और गलचौड़ा के डंगरियों और पुजारियों को प्रमुख स्थान मिला है।
चार द्योली में शुमार कर्णकरायत स्थित माँ कड़ाई देवी मंदिर में लोग आज भी अलौकिक शक्ति की साक्षात उपस्थिति का अहसास करते हैं। यहां छोटे से कांटे के वृक्ष में माँ कड़ाई का वास माना जाता है। इसी तरह सुंई चौबे गांव में स्थित माँ भगवती एवं आदित्य महादेव मंदिर में भी सालभर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। इन मंदिरों के दर्शन के बाद चार द्योली में शामिल पऊ के चनकांडे गांव स्थित मस्टा मंदिर के दर्शन करना जरूरी माना जाता हैं । ऐसा न किया जाए तो चार द्योली की परिक्रमा का फल नहीं मिलता। माँ कड़ाई देवी का मंदिर जितना अलौकिक है, उतनी ही विशेष इन मंदिरों से जुड़ी चमत्कारिक परंपराएं भी है ।
इस क्षेंत्र के आस्थावान भक्त लक्ष्मी दत्त सूतेड़ी ने बताया चार द्योली मंदिरों के पुजारी आज भी पूरी तरह पूर्व से स्थापित नियमों एवं परम्पराओं का निष्ठापूर्वक पालन करते हैं। यहाँ के पुजारी पूरे सालभर में समय- समय पर आने वाले शुभ पर्व और त्योहारों के मौकों पर पैदल नंगे पांव चलकर क्षेत्र के 25 गांवों की परिक्रमा करते हैं। इस दौरान घर- घर से दूध, अक्षत और घी एकत्र कर मंदिरों में भोग लगाते हैं।
वर्तमान में विशुंग के माँ कड़ाई मंदिर और सुंई के माँ भगवती मंदिर के पुजारी का दायित्व चौबे लोग संभाल रहे हैं
मंदिर के पुजारी कड़े नियमों से बंधे हैं। पुजारी जब तक दायित्व संभालते रहते हैं, जूते अथवा चप्पल आदि पहनते से हमेशा परहेज करते हैं। सर्दी हो या गर्मी, बारिश हो या फिर बर्फबारी, हर पर्व में इन्हें नंगे पांव चलकर 20 गांव विशुंग और पांच गांव सुंई की परिक्रमा करके घर-घर से चावल, दूध और घी लाना पड़ता है, जिससे देवी-देवताओं को भोग लगाया जाता है। पुजारी साल भर तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं। वर्षभर की अवधि में उन्हें मंदिर में ही निवास करना पड़ता है।
चैत्र मास व शारदीय नवरात्र में रामनवमी की रात्रि यहाँ न्याय की पवित्र गद्दी लगाई जाती है, जिसमें देवता अपने भक्तों को आशीर्वाद देने पहुंचते हैं। पांच गांव सुंई और बीस गांव विशुंग, आषाड़ी वायुरथ महोत्सव के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध हैं।



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