जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला इस बात को साबित करता है कि कैसे बाहरी ताकतें और आंतरिक विश्वासघाती मिलकर देश को अस्थिर करने की साजिश रच रहे हैं। यह भारत के इतिहास में सबसे घातक आतंकी हमलों में से एक माना जा रहा है। इस हमले में शामिल दगाबाजों की भूमिका और उन यूट्यूबर्स या सोशल मीडिया प्रभावकों की गतिविधियाँ महत्वपूर्ण रहीं जो देश के खिलाफ प्रचार या भ्रामक जानकारी फैलाकर राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
आधुनिक युग में, सूचना युद्ध (इंफॉर्मेशन वॉर) एक नया आयाम बन चुका है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, विशेष रूप से यूट्यूब, ट्विटर (एक्स), और फेसबुक, ने विचारों और प्रचार को तेजी से फैलाने का माध्यम प्रदान किया है। दुर्भाग्यवश, कुछ यूट्यूबर्स और प्रभावक (इन्फ्लुएंसर्स) इसका दुरुपयोग कर देश के खिलाफ भ्रामक प्रचार करते हैं। पहलगाम हमले के बाद, कुछ यूट्यूबर्स और सोशल मीडिया प्रभावकों पर आरोप लगे कि उन्होंने हमले के लिए भारत सरकार, सुरक्षा बलों, या स्थानीय लोगों को दोषी ठहराकर भ्रामक नैरेटिव बनाया।
यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा का मामला सामने आया, जिनके बारे में दावा किया गया कि वह हमले से पहले पाकिस्तान गई थीं और वहां के अधिकारियों से उनके संबंध थे। उनके वीडियो में भारत सरकार और सुरक्षा बलों को दोषी ठहराने की कोशिश की गई, जबकि पाकिस्तान या उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई का जिक्र तक नहीं किया गया। यह एक सुनियोजित प्रचार का हिस्सा प्रतीत होता है, जिसका उद्देश्य जनता में भ्रम पैदा करना और देश की एकता को कमजोर करना था।
सोशल मीडिया पर ऐसी गतिविधियां केवल व्यक्तिगत राय तक सीमित नहीं होतीं, ये अक्सर विदेशी ताकतों या आतंकी संगठनों के इशारे पर होती हैं। भारत सरकार ने इस तरह के प्रचार को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। पहलगाम हमले के बाद, 16 पाकिस्तानी यूट्यूब चैनल और फेसबुक अकाउंट्स को बंद किया गया, जो हमले को लेकर झूठी जानकारी फैला रहे थे। साथ ही, बीबीसी को भी चेतावनी दी गई कि वह आतंकियों को “उग्रवादी” कहना बंद करे, क्योंकि यह शब्दावली हमले की गंभीरता को कम करती है।
पहलगाम हमला 2017 के अमरनाथ यात्रा हमले के बाद सबसे बड़ा आतंकी हमला माना जा रहा है। सैन्य सूत्रों के अनुसार, इस हमले की योजना लंबे समय से बनाई जा रही थी। आतंकियों ने घाटी की भौगोलिक स्थिति का फायदा उठाया, जो घने जंगलों और ऊबड़-खाबड़ इलाकों से घिरी हुई है। बैसरन मेडो तक पहुंचने का रास्ता कठिन है, जहां वाहन नहीं जा सकते, और यह आतंकियों के लिए छिपने और भागने के लिए एक सुरक्षित गलियारा प्रदान करता है। सूत्रों का यह भी कहना है कि आतंकियों ने हमले से पहले पर्यटन स्थलों और होटलों की रेकी की थी, जिसमें स्थानीय सहयोगियों की मदद ली गई।पहलगाम हमले में दो स्थानीय आतंकियों, आदिल हुसैन ठोकर और आसिफ शेख, की संलिप्तता सामने आई है।
भारत का इतिहास इस बात का साक्षी है कि कई बार देश को आंतरिक विश्वासघात या “घर के भेदियों” के कारण नुकसान उठाना पड़ा है। चाहे वह मध्यकालीन युग में राजाओं के बीच विश्वासघात हो या आधुनिक समय में जासूसी और आतंकी गतिविधियों में आंतरिक सहयोग, यह समस्या बार-बार सामने आती रही है। मध्यकाल में, कई युद्धों में स्थानीय शासकों या विश्वासपात्रों ने विदेशी आक्रमणकारियों के साथ मिलकर अपने ही लोगों को धोखा दिया। इसका एक उदाहरण 1556 में पानीपत की दूसरी लड़ाई है, जहां हेमू के कुछ सहयोगियों ने विश्वासघात किया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी हार हुई थी।
स्वतंत्रता के बाद, भारत ने कई बार आंतरिक विश्वासघात का सामना किया। 1962 के भारत-चीन युद्ध में खुफिया जानकारी के अभाव और कुछ नीतिगत कमियों ने भारत को कमजोर किया। इसी तरह, 1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तान समर्थित घुसपैठियों को स्थानीय स्तर पर कुछ सहायता मिलने की बात सामने आई थी। 2008 के मुंबई हमले में भी स्थानीय सहयोगियों की भूमिका की जांच हुई थी, जहां आतंकियों को रसद और सूचना प्रदान करने में कुछ लोगों की संलिप्तता पाई गई थी। पहलगाम हमला भी इस बात का उदाहरण है कि कैसे स्थानीय लोग, चाहे जानबूझकर या मजबूरी में, आतंकी गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं। सरकार ने मीडिया और सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी फैलाने वालों के खिलाफ सख्ती दिखाई। कई लोगों को विवादित पोस्ट के लिए हिरासत में लिया गया, और मीडिया चैनलों को सैन्य अभियानों की रियल-टाइम कवरेज से बचने की सलाह दी गई।
पहलगाम हमले ने भारत के सामने कई चुनौतियों को उजागर किया है। आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करना होगा। सूचना युद्ध से निपटना होगा। यूट्यूबर्स और सोशल मीडिया प्रभावकों के माध्यम से फैलाया जा रहा प्रचार देश की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके लिए सरकार को साइबर सुरक्षा और डिजिटल निगरानी को और मजबूत करने की जरूरत है। स्थानीय लोगों का विश्वास जीतना होगा। पहलगाम हमले के बाद पर्यटन उद्योग पर गहरा असर पड़ा, और स्थानीय लोग, जिनकी आजीविका पर्यटन पर निर्भर है, मुश्किल में हैं। सरकार को इन लोगों के लिए आर्थिक सहायता और सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।
पहलगाम हमला भारत के लिए एक चेतावनी है कि आतंकवाद और आंतरिक विश्वासघात के खिलाफ सतर्कता और एकजुटता की आवश्यकता है। “घर के भेदी” चाहे स्थानीय सहयोगी हों या भ्रामक प्रचार करने वाले यूट्यूबर्स, देश की सुरक्षा और एकता के लिए खतरा हैं। भारत को इस चुनौती से निपटने के लिए सैन्य, कूटनीतिक, और सूचना युद्ध के क्षेत्र में एक साथ काम करना होगा। साथ ही, जनता को जागरूक करना और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम होंगे। केवल एकजुट और सतर्क भारत ही इन दगाबाजों और बाहरी ताकतों को मात दे सकता है।
(संदीप सृजन-विभूति फीचर्स)



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