मानसरोवर यात्रा पथ में ‘पाताल भुवनेश्वर’ का महत्व

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हिमालय की गोद में बसे उत्तराखण्ड का महात्म्य का वर्णन पुराणों में विशेष रूप से वर्णित है। इसे शिव व शक्ति की वास भूमि कहा जाता है। कैलाश पर्वत की महत्ता शिवजी के परम स्वरूप के रूप में मानी जाती है। मानसरोवर यात्रा का प्रसंग विभिन्न पुराणों का वर्णनीय विषय रहा है। मानस क्षेत्र के नाम से विभिन्न पर्वत श्रेणियों को पार कर यह यात्रा पूरी की जाती है जिससे पवित्र पहाड़ों की विशालता तथा सांस्कृतिक महत्ता का ज्ञान होता है।
‘ततो नागपुरो नाम पर्वतो नृपसत्तम।
यत्र सम्पूज्यते नागा वासुकि प्रमुखादयः।।
ततो दारूगिरिः पुण्यः पूज्यते नात्र संशयः।
यत्र सम्पूज्यते देवः पाताल भुवनेश्वरः।।
कैलाश मानसरोवर यात्रा पथ में अनेक पर्वतों की महिमा के साथ-साथ ‘दारूगिरी’ पर्वत का वर्णन भी आता है। दारूगिरी पर्वत में स्थित अतुलनीय महिमा को समेटे हुए पाताल भुवनेश्वर का उल्लेख यात्रा की रोमांचकता में चार-चांद लगा देती है। दारूगिरी पर्वत के अलावा अनेक पर्वतो ंके विषय में लोक गाथायें भी मानसरोवर यात्रा पथ को लेकर प्रचलित हैं। ये पर्वत हैं- नागपुर, दारूगिरी, पावन, पंचशिखर, केतुमान, मल्लिकार्जुन, गणनाथ, टुन्टुकर, चन्द्रमा, देवतट, मालिका, काकपर्वत, जलाशय पर्वत, स्कन्दगिरी, त्रिपुर, गौरीपर्वत, नागगिरी, काकगिरी आदि।
तमाम यात्रा पथों में पाताल भुवनेश्वर का बड़ा ही अलौकिक महत्व है। ‘पाताल भुजंगा’ से ही मानस खण्ड का आरंभ है। हिमालय के चरित्र के वर्णन में भगवान दत्तात्रेय ने कहा है कि पाताल भुवनेश्वर की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना के पश्चात तीन दिन तक उपवास रखकर जब मानसरोवर की यात्रा आरंभ की जाती है तो वह पर फलदायी होती है।
गत्वा सम्पूज्य लोकेशं जम्बुकास्य महेश्वरम्।
ततः परं महाराज पातालभुवनेश्वरम्।।
पुण्यस्थल दारूगिरी पर्वत में विराजमान।
पाताल भुवनेश्वरनाथ जी को परम प्रणाम।।

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