भारतीय शास्त्रीय नृत्य दिवस 23 मई पर विशेष :भारतीय शास्त्रीय नृत्य : भाव, राग, ताल का दिव्य संगम

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भारत की मिट्टी में संस्कृति की सुगंध बसी है, और इस सुगंध को विश्व तक पहुंचाने का काम करता है भारतीय शास्त्रीय नृत्य। यह नृत्य कला होने के साथ साथ भाव, राग और ताल का दिव्य संगम है, जो भारत की आत्मा को जीवंत करता है। क्या है इस नृत्य में ऐसा, जो सदियों से लोगों को मंत्रमुग्ध करता रहा है? कैसे यह भारत की विविधता को एक सूत्र में बांधता है और विश्व में अपनी छाप छोड़ता है? आइए, इस लेख में भारतीय शास्त्रीय नृत्य की उस सांस्कृतिक यात्रा को जानें, जो भारत को विश्व मंच पर गौरवान्वित करती है।

*भारत में शास्त्रीय नृत्य की पहचान*

भारतीय शास्त्रीय नृत्य भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी अनूठी पहचान रखते हैं। संगीत नाटक अकादमी और संस्कृति मंत्रालय ने नौ शास्त्रीय नृत्यों को मान्यता दी है: भरतनाट्यम (तमिलनाडु), कथक (उत्तर प्रदेश), कुचिपुड़ी (आंध्र प्रदेश), ओडिसी (ओडिशा), मणिपुरी (मणिपुर), कथकली और मोहिनीअट्टम (केरल), सत्रिया (असम), और छऊ (झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल)। ये नृत्य न केवल क्षेत्रीय संस्कृति को दर्शाते हैं, बल्कि नाट्यशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित हैं, जो भाव, राग और ताल के समन्वय को महत्व देते हैं। उदाहरण के लिए, भरतनाट्यम की जटिल मुद्राएं और कथक की तेज चक्करें भारत की सांस्कृतिक विविधता को एक मंच पर लाती हैं।

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*विश्व में भारतीय शास्त्रीय नृत्य का प्रभाव*

हम उस देश भारत के वासी है जिसने पूरे विश्व को नई राह दिखाई । भारतीय शास्त्रीय नृत्य ने विश्व स्तर पर अपनी गहरी छाप छोड़ी है। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, और जापान जैसे देशों में नृत्य गुरुकुल और सांस्कृतिक उत्सवों के माध्यम से ये नृत्य आत्मसात किए जा रहे हैं। विशेष रूप से, भरतनाट्यम और कथक ने विदेशों में बसे भारतीय समुदायों और स्थानीय कला प्रेमियों के बीच लोकप्रियता हासिल की है। जापान में ओडिसी और कथकली के प्रदर्शन नियमित रूप से आयोजित होते हैं, जबकि यूरोप में सांस्कृतिक मेलों में मणिपुरी और मोहिनीअट्टम की प्रस्तुतियां देखी जाती हैं। ये नृत्य विश्व को भारत की आध्यात्मिकता और सौंदर्यबोध से जोड़ते हैं।

*पाश्चात्य संस्कृति पर प्रभाव*

भारतीय शास्त्रीय नृत्य ने पाश्चात्य संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया है। पश्चिमी नृत्य शैलियों जैसे बैले और समकालीन नृत्य में भारतीय नृत्यों की मुद्राएं और भाव-भंगिमाएं शामिल की जा रही हैं। उदाहरण के लिए, प्रसिद्ध कोरियोग्राफर मॉरिस बेजार्ट ने भरतनाट्यम से प्रेरित होकर अपने प्रदर्शनों में भारतीय तत्वों का समावेश किया। इसके अलावा, हॉलीवुड और वैश्विक मंचों पर भारतीय नृत्य आधारित प्रस्तुतियां, जैसे स्लमडॉग मिलियनेयर में कथक का उपयोग किया, यह भारतीय संस्कृति की वैश्विक स्वीकार्यता को दर्शाती हैं। यह प्रभाव न केवल कला तक सीमित है, बल्कि योग और ध्यान के साथ मिलकर भारतीय दर्शन को भी विश्व में प्रचारित करता है।

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*शास्त्रीय नृत्य: भारत की सांस्कृतिक आत्मा*

प्रबुद्ध पाठकों यह पैराग्राफ सबके लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय शास्त्रीय नृत्य भारत की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक हैं। यह नृत्य मनोरंजन करते हैं, आध्यात्मिक और दार्शनिक संदेश भी देते हैं। नाट्यशास्त्र के अनुसार, रस भारतीय शास्त्रीय नृत्य और नाटक का आत्मा स्वरूप है, जिसे भरतमुनि ने नवरस के रूप में परिभाषित किया है। ये नौ रस श्रृंगार (प्रेम), हास्य (आनंद), करुण (दुःख), रौद्र (क्रोध), वीर (साहस), भयानक (भय), वीभत्स (घृणा), अद्भुत (विस्मय) और शांत (वैराग्य) मनुष्य की विभिन्न भावनाओं का सौंदर्यपूर्ण चित्रण करते हैं। प्रत्येक रस का एक विशिष्ट रंग और अधिष्ठाता देवता होता है, जो उसे सांस्कृतिक और दार्शनिक गहराई प्रदान करता है। नृत्य के चारों अभिप्राय अंगिक (शारीरिक), वाचिक (संवेदनात्मक), आहार्य (वेशभूषा) और सात्विक (भीतर की भावना) इन रसों को मंच पर जीवंत बनाते हैं। जिससे भारतीय सांस्कृतिक चेतना की संवेदना और गहराई उजागर होती है। विश्व मंचों तक पहुंचे हैं, लेकिन इनका मूल स्वरूप और आध्यात्मिकता बरकरार है।

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*संकल्प लें कि यह संगम सदा जीवंत रहे*
भारतीय शास्त्रीय नृत्य दिवस हमें इस अमूल्य विरासत को संजोने और प्रचारित करने की प्रेरणा देता है। यह नृत्य कला के साथ-साथ भारत की आत्मा, संस्कृति और एकता का प्रतीक है। विश्व में इसकी स्वीकार्यता और पाश्चात्य संस्कृति पर इसका प्रभाव भारत की सांस्कृतिक शक्ति को दर्शाता है। आइए, इस दिवस पर हम संकल्प लें कि इस दिव्य कला को न केवल संरक्षित करेंगे, बल्कि इसे नई पीढ़ी तक पहुँचाएंगे, ताकि भाव, राग और ताल का यह संगम सदा जीवंत रहे।

(नरेंद्र शर्मा परवाना-विभूति फीचर्स)

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