(विवेक रंजन श्रीवास्तव-विभूति फीचर्स)
विश्व की आबादी आठ सौ करोड़ पार होने को है , कमोबेश इसमें महिलाओं की संख्या पचास प्रतिशत है । यद्यपि भारत में स्त्री पुरुष के इस अनुपात में स्त्रियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। पितृसत्तात्मक समाज होने के चलते प्रायः सभी क्षेत्रों में लंबे समय से पुरुष स्त्री पर हावी रहा है। सिमोन द बोउवार का कथन है, “स्त्री पैदा नहीं होती, बनाई जाती है”, समाज अपनी आवश्यकता के अनुसार स्त्री को ढालता आया है। उसके सोचने से लेकर उसके जीवन जीने के ढंग को पुरुष नियंत्रित करता रहा है और आज भी करने की कोशिश करता रहता है,किंतु अब महिलाओं को पुरुषों के बराबरी के दर्जे के लिये लगातार संघर्षरत देखा जा रहा है। विश्व में नारी आंदोलन की शुरुआत उन्नीसवीं शताब्दी में हुई। नारी आंदोलन लैंगिक असमानता के स्थान पर मानता है कि स्त्री भी एक मनुष्य है,वह दुनिया की आधी आबादी है,सृष्टि के निर्माण में उसका भी उतना ही सहयोग है जितना कि पुरुष का। स्त्री सशक्तिकरण , स्त्री विमर्श से जन चेतना जागी हैं। अब जल , थल , नभ , अंतरिक्ष हर कहीं महिलायें पुरुषों से पीछे नहीं हैं।
विभिन्न भाषाओं के साहित्य में भी महिला रचनाकारों ने महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किया है। अनेक महिला रचनाकारों को नोबल पुरस्कार मिल चुके हैं, 2022 का नोबल फ्रेंच लेखिका एनी एनॉक्स को मिला है, 82 वर्षीय एनॉक्स साहित्य का नोबेल पाने वाली सत्रहवीं महिला हैं। पूरी दुनियां में हर साल आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। हरिशंकर परसाई जी के व्यंग्य की पंक्ति है कि “दिवस कमजोरों के मनाए जाते हैं, मजबूत लोगों के नहीं।“ सशक्त होने का आशय केवल घर से बाहर निकल कर नौकरी करना या पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलना भर नहीं है। वैचारिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता साहित्य और खास कर किसी पर व्यंग्य कर सकने की क्षमता और स्वतंत्रता में निहित है। भारत में ऐसी ढ़ेर विसंगतियां हैं जिनसे सीधे तौर पर महिलायें प्रभावित होती हैं,धर्म-जाति के गठजोड़, रूढ़ि व अंधविश्वास ने महिलाओं को लगातार शोषित किया है। इन मसलों पर जिस तीक्ष्णता से एक महिला व्यंग्यकार लिख सकती है पुरुष नहीं। कहा गया है जाके पांव न फटे बिवाई बा क्या जाने पीर पराई। किंतु विडम्बना है कि लम्बे समय तक व्यंग्य पर पुरुषों का एकाधिकार रहा है। यह और बात है कि लोक जीवन और लोकभाषा में व्यंग्य अर्वाचीन है। सास बहू , ननद भौजाई के परस्पर संवाद या बुन्देलखण्ड,मिथिला,भोजपुरी में बारात की पंगत को सुस्वादु भोजन के साथ हास्य और व्यंग्य से सम्मिश्रित गालियां तक देने की क्षमता महिलाओं में ही रही है। हिमाचल में ये विवाह गीत सीठणी कहे जाते हैं जिनमें यही भाव भंगिमा और व्यंग्य सजीव होता है। साहित्यिक इतिहास में भक्ति आंदोलन के समय में महिला रचनाकारों ने खूब लिखा , मीरा बाई की रचनाओं में व्यंग्य के संपुट ढ़ूंढ़े भी जा सकते हैं।
आज साहित्य में व्यंग्य स्वतंत्र विधा के रूप में सुस्थापित है । समाज की विसंगतियों, भ्रष्टाचार, सामाजिक शोषण अथवा राजनीति के गिरते स्तर की घटनाओं पर अप्रत्यक्ष रूप से तंज किया जाता है। लघु कथा की तरह संक्षेप में घटनाओं पर व्यंग्य होता है,जो हास्य और आक्रोश भी पैदा करता है। विद्वानों के अनुसार प्राचीन काल से ही साहित्य में व्यंग्य की उपस्थिति मिलती है। चार्वाक के ‘यावद जीवेत सुखं जीवेत , ॠणं कृत्वा घृतम् पिवेत् ’ के माध्यम से स्थापित मूल्यों के प्रति प्रतिक्रिया को इस दृष्टि से समझा जा सकता है। सर्वाधिक प्रामाणिक व्यंग्य की उपस्थिति कबीर के ‘पात्थर पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहार’ तथा ‘ कांकर पाथर जोड़ कर मस्जिद दयी बनाय ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा भया खुदाय’ आदि के रूप में देखी जा सकती है । हास्य और व्यंग्य का नाम साथ साथ लिया जाता है पर उनमें व्यापक मौलिक अंतर है। साहित्य की शक्तियों अभिधा, लक्षणा, व्यंजना में हास्य अभिधा , यानी सपाट शब्दों में हास्य की अभिव्यक्ति के द्वारा क्षणिक हंसी तो आ सकती है, लेकिन स्थायी प्रभाव नहीं डाल सकती। व्यंजना के द्वारा प्रतीकों और शब्द-बिम्बों के द्वारा किसी घटना, नेता या विसंगितयों पर प्रतीकात्मक भाषा द्वारा जब व्यंग्य किया जाता है, तो वह अपेक्षकृत दीर्घ कालिक प्रभाव छोड़ता है । श्रेष्ठ साहित्य में व्यंग्य की उपस्थिति महत्वपूर्ण है। व्यंग्य सहृदय पाठक के मन पर संवेदना, आक्रोश एवं संतुष्टि का संचार करता है। स्वतंत्रता पूर्व व्यंग्य लेखन की सुदीर्घ परंपरा मिलती है।
डॉ. शैलजा माहेश्वरी ने एक पुस्तक लिखी है ” हिंदी व्यंग्य में नारी” इस किताब की भूमिका सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखक और संपादक यशवंत कोठारी ने लिखी है। इस भूमिका आलेख में उन्होंने आज की सक्रिय महिला व्यंग्यकारों का उल्लेख किया है। डॉ. प्रेम जनमेजय व्यंग्य पर सतत काम कर रहे हैं , उन्होने पत्रिका “व्यंग्य यात्रा” का जनवरी से मार्च 2023 का अंक ही ” हिन्दी व्यंग्य में नारी स्वर ” पर केंद्रित किया है। मैं लंबे समय से पुस्तक चर्चा करता आ रहा हूं और विगत कुछ वर्षो में प्रकाशित व्यंग्य की प्रायःकिताबें मेरे पास हैं , इन सीमित संदर्भों को लेकर कम शब्दों में आज सक्रिय व्यंग्य लेखिकाओं के कृतित्व के विषय में लिखने का यत्न है। यद्यपि मेरा मानना है कि व्यंग्य में महिला हस्तक्षेप और अवदान पर शोध ग्रंथ लिखा जा सकता है। जिन कुछ सतत सक्रिय महिला नामों का लेखन पत्र,पत्रिकाओं,सोशल मीडिया में मिलता रहा है उनकी किताबों के आधार पर संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत करने का प्रयास है।
स्नेहलता पाठक … शंकर नगर , रायपुर की निवासी स्नेहलता पाठक की व्यंग्य की किताबें ” सच बोले कौआ काटे” , द्रौपदी का सफरनामा , एक दीवार सौ अफसाने , प्रजातंत्र के घाट पर , बाकी सब ठीक है , बेला फूले आधी रात , लोनम् शरणम् गच्छामी , व्यंग्यकार का वसीयतनामा के अलावा उन्होने उपन्यास लाल रिबन वाली लड़की भी लिखा है,और “व्यंग्य शिल्पी लतीफ घोंघी” किताब का संपादन भी किया है। उन्हें छत्तीसगढ़ की पहली गद्य व्यंग्य लेखिका सम्मान मिल चुका है। वे निरंतर स्तरीय लेखन में निरत दिखती हैं।
सूर्य बाला जी ने बहुत व्यंग्य लिखे हैं, उनकी व्यंग्य की पुस्तकें ” यह व्यंग्य कौ पन्थ” , ‘अजगर करे न चाकरी’, ‘धृतराष्ट्र टाइम्स’, ‘देशसेवा के अखाड़े में’, ‘भगवान ने कहा था’, ‘झगड़ा निपटारक दफ़्तर’, आदि चर्चित हैं। वे बड़ी कहानीकार हैं और इतनी ही ज़िम्मेदारी तथा गम्भीरता से व्यंग्य भी लिखती हैं। कलम के पैनेपन से उन्होंने व्यंग्य को भी तराशा है। वे व्यंग्य की सारी शर्तों को, अपनी ही शर्तों पर पूरा करनेवाली मौलिकता का दामन किसी भी व्यंग्य रचना में कभी नहीं छोड़तीं। उनका सफल कहानीकार होना उनको एक अलग ही क़िस्म का व्यंग्य शिल्प औज़ार देता है। व्यंग्य के परम्परागत विषय भी सूर्यबाला के क़लम के प्रकाश में एकदम नये आलोक में दिखाई देने लगते हैं। विशेष तौर पर, तथाकथित महिला विमर्श के चालाक स्वाँग को, लेखिकाओं का इसके झाँसे में आने को तथा स्वयं को लेखन में स्थापित करने के लिए इसका कुटिल इस्तेमाल करने को उन्होंने बेहद बारीकी तथा साफ़गोई से अपनी कई व्यंग्य रचनाओं में अभिव्यक्त किया है।
शांति मेहरोत्रा ने भी काफी लिखा है,वे पिछली सदी के पाँचवें-छठे दशक में सामने आईं कवयित्री , कथाकार, लघुकथा और व्यंग्य की सशक्त हस्ताक्षर रही हैं। ठहरा हुआ पानी उनका नाटक है।
सरोजनी प्रीतम की हंसिकाएं काव्य भी खूब पढ़ी गयीं। लौट के बुद्धू घर को आये,श्रेष्ठ व्यंग्य,सारे बगुले संत हो गये आदि उनकी चर्चित पुस्तके हैं।
समीक्षा तैलंग .. मुझे स्मरण है तब मैं अपने पहले वैश्विक व्यंग्य संग्रह ” मिली भगत” पर काम कर रहा था तब इंटरनेट के जरिये अबूधाबी में समीक्षा तैलंग से संपर्क हुआ। फिर जब उन्होंने उनकी पहली किताब छपवाने के लिये पान्डुलिपि तैयार की तो ” जीभ अनशन पर है ” यह नामकरण करने का श्रेय मुझे ही मिला। इस किताब में मेरी टीप उन्होने फ्लैप पर भी ली है। उसके बाद उनकी दूसरी किताब व्यंग्य का एपीसेंटर , संस्मरण की किताब कबूतर का केटवाक आदि आई हैं। वे निरंतर उत्तम लिख रही हैं।
मीना अरोड़ा हल्द्वानी से हैं। उन्होने पुत्तल का पुष्प बटुक व्यंग्य उपन्यास लिखा है , जिसकी चर्चा करते हुये मैने लिखा है कि “पुत्तल का पुष्प बटुक ” बिना चैप्टर्स के विराम के एक लम्बी कहानी है,जो ग्रामीण परिवेश,गांव के मुखिया के इर्द गिर्द बुनी हुई कथा में व्यंग्य के संपुट लिये हुये है। उनकी कविताओं की किताबें “शेल्फ पर पड़ी किताब” तथा ” दुर्योधन एवं अन्य कवितायें ” पूर्व प्रकाशित तथा पुरस्कृत हैं।मीना अरोड़ा की लेखनी का मूल स्वर स्त्री विमर्श है।
डा अलका अग्रवाल सिंग्तिया, का “मेरी तेरी सबकी” व्यंग्य संग्रह प्रकाशित है , इसके सिवा अनेक सहयोगी संग्रहों में उन्होंने शिरकत की है , उनका उल्लेख इस दृष्टि से महत्व रखता है कि उन्होंने हाल ही में परसाई पर पी एच डी मुम्बई विश्व विद्यालय से की है।
अनिला चारक जम्मू कश्मीर से हैं। जम्मू कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी ने इनके कविता संग्रह ‘नंगे पांव ज़िन्दगी’ को बेस्ट बुक के अवार्ड से सम्मानित किया है।इनकी व्यंग्य की पुस्तक ‘मास्क के पीछे क्या है’ प्रकाशित हुई है।
अनीता यादव का व्यंग्य संग्रह ” बस इतना सा ख्वाब है “आ चुका है , इसके सिवा कई संग्रहों मे सहभागी हैं तथा फ्री लांस लिखती हैं।
चेतना भाटी, साहित्य की विभिन्न विधाओं व्यंग्य,लघुकथा, कहानी,उपन्यास,कविता में लिखने वाली श्रीमती चेतना भाटी की अब तक कई कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें व्यंग्य संग्रह – दिल है हिंदुस्तानी , दुनिया एक सरकारी मकान है, विक्रम – बेताल का ई – मेल संवाद प्रमुख हैं। इसके अलावा कहानी संग्रह – एक सदी का सफरनामा , नए समीकरण , जब तक यहाँ रहना है , ट्रेडमिल पर जिंदगी, एवं लघुकथा संग्रह – उल्टी गिनती , सुनामी सड़क , खारी बूँदें और उपन्यास – चल , आ चल जिंदगी , चंद्रदीप , बिग बॉस सीजन कोरोना प्रकाशित है ।
सुनीता शानू…एक व्यंग्य संग्रह. “फिर आया मौसम चुनाव का” , एक कविता संग्रह…मन पखेरू फिर उड़ चला , कई सांझा कविता एवं व्यंग्य संग्रह ,वे पुरानी हिन्दी ब्लागर हैं।
डा नीरज सुधांशु .. आप वनिका प्रकाशन की संस्थापिका हैं। लिखी तो व्यथा कही तो लघुकथा आदि उनकी कृतियां हैं , मूलतः लघुकथा लिखती हैं जिनमें व्यंग्य के संपुट पढ़ने मिलते हैं . वे पेशे से डाक्टर हैं ।
सीमा राय मधुरिमा का व्यंग्य संग्रह ” खरी मसखरी”,” ब्लाटिंग पेपर” डायरी लेखन और कविता संग्रह मुखर मौन तथा मैं चुनुंगी प्रेम आ चुके हैं।
डॉ. शशि पाण्डे ,किताबें हैं चौपट नगरी अंधेर राजा (संग्रह), मेरी व्यंग्य यात्रा (संग्रह), व्यंग्य की बलाएं (संपादन), बकैती गंज ( हास्य साक्षात्कार संपादन)।
नीलम कुलश्रेष्ठ .. महिला चटपटी बतकहियाँ (व्यंग्य संग्रह) के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करती हैं .
कीर्ति काले का संग्रह “ओत्तेरेकी” तैंतीस व्यंग्य लेखों का संकलन है।वे व्यंग्य जगत में जानी पहचानी लेखिका हैं।
वीणा वत्सल सिंह प्रतिलिपि डाट काम पर जाना पहचाना सक्रिय नाम हैं । वे कहानियां लिखती हैं और अपने लेखन में व्यंग्य प्रयोग करती हैं।
नुपुर अशोक … पचहत्तर वाली भिंडी उनका व्यंग्य संग्रह है और मेरे मन का शहर उनकी कविता की प्रकाशित पुस्तकें हैं।
आरिफा एविस अपने व्यंग्य उपन्यास नाकाबन्दी के संदर्भ में लिखती हैं ” पिछले दिनों कश्मीर में जो हुआ उसे लेकर भारतीय मीडिया की अलग-अलग राय है। ऐसे में कश्मीर के जमीनी हालात को करीब से देखना,जहाँ फोन नेटवर्क बंद हो, कर्फ्यू लगा हुआ हो एक मुश्किल काम था। मैं कश्मीर की मौजूदा स्थिति पर लेख, व्यंग्य, कहानी लिखने की सोच रही थी लेकिन उपरोक्त माध्यमों से पूरी बात कहना बड़ा ही मुश्किल था. इसलिए मैंने कश्मीर के नये हालात और उनसे उपजी कश्मीर की राजनीतिक, आर्थिक और मनोस्थिति बयान दर्ज करते हुए इसे उपन्यास की शक्ल में लिखा है। मास्टर प्लान उनका एक और उपन्यास है। राजनीतिक होली , जांच जारी है उनके व्यंग्य संग्रह हैं।
अनीता श्रीवास्तव का व्यंग्य संग्रह – बचते- बचते प्रेमालाप , कविता संग्रह- जीवन वीणा , कहानी संग्रह- तिड़क कर टूटना , बालगीत संग्रह- बंदर संग सेल्फी छप चुके हैं। वे संभावनाशील व्यंग्यकार हैं।
अंशु प्रधान का व्यंग्य संग्रह हुक्काम को क्या काम , उपन्यास रक्कासा और कहानी संग्रह कफस प्रकाशित है।
इंद्रजीत कौर का संग्रह ” चुप्पी की चतुराई” प्रकाशित है, मठाधीशी और कठमुल्लापन के विरोध में लिखना साहस पूर्ण होता है। वे स्वयं सिक्ख धर्म से होते हुये भी अपने ही धर्म की कमियों पर बहुत साहस के साथ पंजाबी पत्रिका ‘पंजाबी सुमन ‘ में स्तम्भ लिखती रहीं हैं। उन्होंने एक अन्य व्यंग्य संग्रह ईमानदारी का सीजन, तथा पंचतंत्र की कथायें भी लिखे है।
अनामिका तिवारी जबलपुर से हैं …उन का प्रकाशित व्यंग्य संग्रह एक ही है ‘ दरार बिना घर सूना ‘ 2005 में दिल्ली शिल्पायन से प्रकाशित हुआ था। नाटक ‘शूर्पनखा ‘ भी उन्होंने लिखा है।
अलका पाठक की पुस्तक – किराये के लिए खाली है।
पल्लवी त्रिवेदी पुलिस अधिकारी हैं। उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं-‘अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा’ (व्यंग्य-संग्रह); ‘तुम जहाँ भी हो’ (कविता-संग्रह)। उनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रही हैं। लेखन के अतिरिक्त वे यात्राओं, संगीत व फ़ोटोग्राफ़ी का शौक रखती हैं। ‘तुम जहाँ भी हो’ पुस्तक के लिए उन्हें 2020 में मध्यप्रदेश के ‘वागीश्वरी सम्मान’ से सम्मानित किया गया।
साधना बलवटे ने समीक्षात्मक कृति “शरद जोशी व्यंग्य के आर पार ” लिखी है। उनका व्यंग्य संग्रह ” ना काहू से दोस्ती हमरा सबसे बैर ” सद्य प्रकाशित है।
अर्चना चतुर्वेदी का व्यंग्य उपन्यास गली तमाशे वाली बहू चर्चित है।
कांता राय मूलतः लघुकथायें लिखती हैं। जिनमें वे व्यंग्य का सक्षम प्रयोग करती हैं। उनकी विभिन्न विधाओं की कई किताबें प्रकाशित हैं।
शेफाली पाँडे , दलजीत कौर ,सक्रिय बहुपठित लेखिकायें हैं। सुषमा व्यास राजनिधि की यद्यपि व्यंग्य केंद्रित किताब अब तक नहीं है पर वे व्यंग्य मंचो पर सक्रिय रहती हैं,मेधा झा स्फुट व्यंग्य लिखती हैं ,वे अनेक संग्रहों में सहभागी हैं। सारिका गुप्ता स्फुट व्यंग्य लिख रही युवा व्यंग्यकार हैं,वे कानूनी विषय पर एक किताब लिख चुकी हैं। डा.शांता रानी ने हिंदी नाटकों में हास्य तत्व पुस्तक लिखी है। लक्ष्मी शर्मा मूलतः व्यंग्यकार नहीं हैं पर उनके उपन्यास , एकांकी में व्यंग्य की झलक है। सिधपुर की भक्तिनें , स्वर्ग का अंतिम उतार ,उपन्यास ,कथा संग्रह आदि लिखे हैं।
बीकानेर की मंजू गुप्ता के संपादन में भी एक पुस्तक व्यंग्य समालोचना पर आई है। जबलपुर के महाविद्यालय में हिन्दी की विभागाध्यक्ष डॉ. स्मृति शुक्ल ने व्यंग्य आलोचना सहित , साहित्यिक समालोचना के क्षेत्र में बहुत काम किया है। उन्हें म प्र साहित्य अकादमी से आलोचना पर पुरस्कार भी मिल चुका है। उन्होंने ” विवेक रंजन के व्यंग्य समाज के जागरुख पहरुये के बयान ” शोध आलेख लिखा है। स्वाति शर्मा,डॉ. नीना उपाध्याय के निर्देशन में विवेक रंजन के व्यंग्य के सामाजिक प्रभाव पर जबलपुर विश्वविद्यालय से शोध कार्य कर रही हैं। आशा रावत की पुस्तक – हिंदी निबंध-स्वतंत्रता के बाद शीर्षक से प्रकाशित है, जिसमें महिला व्यंग्य समालोचना पर भी लिखा गया है।
दीपा गुप्ता ने अब्दुल रहीम खानखाना पर विस्तृत कार्य किया है। उनकी कई किताबें प्रकाशित हैं। यद्यपि व्यंग्य केंद्रित पुस्तक अभी तक नहीं आई है। इसके अतिरिक्त भारती पाठक, गरिमा सक्सेना, पूजा दुबे, ऋचा माथुर ,आदर्श शर्मा, अनीता भारती, विभा रश्मि, जयश्री शर्मा, पुष्प लता कश्यप, निशा व्यास, मीरा जैन, प्रभा सक्सेना , रेनू सैनी, डॉ. निर्मला जैन, उषा गोयल, पूनम डोगरा, नीलम जैन, ललिता जोशी,अर्चना सक्सेना, कुसुम शर्मा, सीमा जैन, विदुषी आमेटा , दीपा स्वामीनाथन आदि लेखिकायें राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सोशल मीडिया प्लेटफार्मस् एवं पत्र पत्रिकाओं में जब तब स्फुट रूप से सक्रिय मिलती हैं। भले ही इनमें से कई पूर्णतया व्यंग्य संधान नहीं कर रही किन्तु अपनी विधा कविता , कहानी , ललित लेख , लघु कथा आादि में व्यंग्य प्रयोग करती हैं।
व्यंग्य-लोचन पुस्तक में डा.सुरेश माहेश्वरी ने रीतिकालीन कवियों के मार्फत उपालम्भ के रूप में महिलाओं द्वारा किये जाने वाले व्यंग्य को विस्तार दिया है। इसी प्रकार व्यंग्य चिन्तना और शंकर पुणताम्बेकर विषयक पुस्तक में भी काफी विस्तार से महिला व्यंग्य की चर्चायें की गई है। डॉ.बालेन्दु शेखर तिवारी ने भी महिला व्यंग्य लेखन पर अपने विचार दिए हैं।
अस्तु , सीमित संदर्भों को लेकर कम शब्दों में आज सक्रिय व्यंग्य लेखिकाओ के कृतित्व के विषय में यह आलेख एक डिस्क्लैमर चाहता है , मैंने यह कार्य निरपेक्ष भाव से महिला व्यंग्य लेखन को रेखांकित करने हेतु सकारात्मक भाव से किया है,उल्लेख , क्रम , कम या ज्यादा विवरण मात्र मुझे सुलभ सामग्री के आधार पर है , त्रुटि अवश्यसंभावी है जिसके लिये अग्रिम क्षमा। कई नाम जरूर छूटे होंगे जिनसे अवगत कराइये ताकि यह आलेख और भी उपयोगी संदर्भ बन सके।
महिला व्यंग्य लेखन स्वच्छंद रुप से विकसित हो रहा है , और संभावनाओं से भरपूर है। महिला व्यंग्यकार राजनीति , घर परिवार ,मोहल्ला, पड़ोस,रिश्ते नाते , बच्चे , परिवेश , पर्यावरण , स्त्री विमर्श , लेखन , प्रकाशन , सम्मान की राजनीति आदि सभी विसंगतियों पर लिख रही हैं। महिला लेखन में विट है, ह्यूमर है, आइरनी है , कटाक्ष, पंच आदि सब मिलता है। हर लेखिका की रचनाओं का कलेवर उसकी अभिव्यक्ति की क्षमता और अनुभव के अनुरूप सर्वथा विशिष्ट है। व्यंग्य लेखन को ये लेखिकायें पूरी संजीदगी से निभाती नजर आती हैं। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि महिला व्यंग्य लेखन में कहीं प्राक्सी नहीं है जैसा महिलाओं को लेकर अन्य क्षेत्रों में प्रायः होता दिखता है। उदाहरण के लिये गांवों में महिला सरपंच की जगह उनके पति भले ही सरपंचगिरी करते मिलें किन्तु संतोष है कि महिला व्यंग्य लेखन में पूर्ण मौलिकता है। महिलायें व्यंग्य के पंच की अपने आप में सक्षम सरपंच स्वयं हैं।(विभूति फीचर्स)



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