कोणार्क सूर्य मंदिर : सूर्य देव के अनंत प्रकाश की कहानी

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सूरज की आराधना में बना वास्तुकला का चमत्कार

ओडिशा के पुरी जिले के कोणार्क गाँव में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर अपनी भव्यता, वास्तुकला और पौराणिक कथा के कारण सदियों से श्रद्धालुओं और पर्यटकों का आकर्षण रहा है। इसे “ब्लैक सन टेम्पल” के नाम से भी जाना जाता है।

मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में राजा नरसिंह देव  ने करवाया था। यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है और इसका रूप एक विशाल रथ की तरह बनाया गया है, जिसमें 24 पहिए और सात अश्वों द्वारा खींची जाने वाली आकृति है। इस स्थापत्य कला में सिर्फ भव्यता ही नहीं, बल्कि सूर्य के प्रति गहरी श्रद्धा और विज्ञान का अद्भुत मेल भी झलकता है।

सूर्य के प्रकाश का दिव्य खेल

माना जाता है कि मंदिर की वास्तुकला इस प्रकार बनाई गई थी कि सूर्य की किरणें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मंदिर की प्रमुख मूर्तियों और गर्भगृह पर पड़ती हैं। सुबह और सूर्यास्त के समय मंदिर में ऐसी दिव्य छटा उत्पन्न होती है कि श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
स्थानीय पुजारी बताते हैं
“यह मंदिर केवल मूर्ति नहीं, बल्कि सूर्य के तेज का जीवंत प्रतीक है। हर पत्थर में ऊर्जा और भक्ति समाई हुई है।”

कला और शिल्प का अद्वितीय नमूना

मंदिर की दीवारें, स्तंभ और छतें जटिल नक्काशी और शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण हैं।
यहाँ देवियों-देवताओं की मूर्तियाँ, कथात्मक चित्र और यज्ञ-अर्चनाओं का चित्रण हर श्रद्धालु का ध्यान खींचता है।
विशेष रूप से नृत्यांगनाओं और संगीत वाद्यों के चित्रों में जीवन के आनंद और भक्ति का संगम देखने को मिलता है।

कथा और मान्यता

स्थानीय मान्यता के अनुसार, राजा नरसिंह देव ने सूर्य देव की कृपा और साम्राज्य की सुरक्षा के लिए यह मंदिर बनवाया।
माना जाता है कि यहाँ हर पूजा और यज्ञ के माध्यम से राजा और जनता सूर्य देव की ऊर्जा प्राप्त करते थे।
यद्यपि समय के साथ मंदिर के कुछ हिस्से क्षतिग्रस्त हुए, पर इसकी भव्यता और आध्यात्मिक महिमा आज भी लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती है।

आधुनिक युग में कोणार्क

आज यह विश्व धरोहर स्थल भी है और प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु और पर्यटक यहाँ सूर्य की आराधना और स्थापत्य कला का आनंद लेने आते हैं। सूर्य मंदिर केवल भक्ति का प्रतीक नहीं, बल्कि मानव सृजनात्मकता, विज्ञान और आध्यात्म का संगम है।

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