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गरीबी तथा घोर अभावों के बावजूद स्वतंत्रता संग्राम एवं बाद के कालखण्ड में बड़ा ही सरल व सरस था जीवन, मगर आज बड़ी चुनौतियां खड़ी हैं : खड़क सिंह धामी
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सनिउडियार ( बागेश्वर ), भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान तथा आजादी के बाद भी अस्सी के दशक तक के कालखण्ड में बेशक! देशभर में गरीबी, बेरोजगारी व अशिक्षा के अलावा मूलभूत नागरिक सुविधाओं की भारी कमी थी ।यानी आम लोगों को जीवन के हर क्षेत्र में अनेकानेक अभावों का सामना करना पड़ता था । परन्तु तमाम मुश्किलों के बावजूद तब आम जन-जीवन बड़ा ही सरल व सरस था, परस्पर सहयोग व सौहार्द सर्वत्र देखा जाता था और लोग एक-दूसरे के दुख-तकलीफों में मदद करने को तत्पर दिखते थे। मगर आज वह सब कुछ एक स्वप्न का लगता है।
दरअसल तमाम सुख- सुविधाओं, संसाधनों की बहुतायत एवं सन्तोषजनक समृद्धि के बाद भी जीवन अब अत्यधिक कठिन व नीरस सा लगता है । जीवन के हर क्षेत्र में बड़ी चुनौतियां खड़ी दिखाई पड़ती हैं।
दिल को झकझोर देने वाले ये भावुक विचार आज यहाँ आयोजित एक कार्यक्रम में क्षेत्र के वयोवृद्ध किन्तु अत्यधिक जागरूक नागरिक खड़क सिह धामी ने व्यक्त किये ।
84 वर्षीय खड़क सिह धामी पुत्र स्व० बची सिह धामी, सरकारी सेवा से अवकाश प्राप्त हैं और वर्तमान में अपने मूल गॉव सनिउडियार, जनपद बागेश्वर में निवास करते हैं। एक कार्यक्रम में हुई मुलाकात में उन्होंने इच्छा व्यक्त की, कि आजादी से पूर्व जन्मे लोग, जो आज भी जीवित हैं, उनके जीवन के अनुभवों को नई पीढ़ी के साथ साझा करने की दिशा में अलग-अलग राज्य सरकारें यदि कोई कार्यक्रम बनाये तो निश्चित रूप से जीवन तब और अब के अन्तर को समझकर आज की पीढ़ी जीवन में संघर्ष करने और अपना भविष्य बेहतर तरीके से संवारने के लिए नई प्रेरणा प्राप्त कर सकती है।
श्री खड़कसिंह धामी ने कहा कि सरकारें पहले तो सर्वेक्षण के आधार पर आजादी से पूर्व जन्मे लोगों का एक डाटाबेस तैयार करें, जिसमें उनका संघर्ष, अभावग्रस्त जीवन, उपलब्ध संसाधन, सामाजिक अनुभवों तथा सफलता की कहानियों को समाचार पत्रों व अन्य तमाम मीडिया प्लेटफार्म के जरिये प्रचारित करें और फिर नई पीढ़ी को उनके संघर्षपूर्ण जीवन शैली तथा महत्वपूर्ण अनुभवों का लाभ उठाकर जीवन में आगे बढ़ने के लिए लगातार प्रेरित करती रहें।
खड़क सिंह धामी ने कहा कि आज की पीढ़ी के ज्यादातर बच्चे बेहतर सुख- सुविधाओं के चलते आराम तलब होते जा रहे हैं और अत्याधुनिक तकनीकि का अपेक्षित लाभ उठाने में असमर्थ देखे जाते हैं। दरअसल आज के बच्चे या तो अपनी क्षमताएं खोते जा रहे हैं या फिर सही दिशा में अपनी क्षमताओं का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। परिणाम स्वरूप एक कर्मठ, सामर्थ्यवान एवं जिम्मेवार नागरिक के रूप में बच्चे समाज व राष्ट्र के प्रति अपनी भूमिका तय नहीं कर पा रहे हैं।
अपने जीवन के संस्मरण व अनुभव सुनाते हुए खड़क सिंह धामी ने कहा कि उनका जन्म 30 जून 1942 को एक अत्यधिक अभावग्रस्त परिवार में हुआ था। आजादी प्राप्ति के समय मात्र पांच वर्ष की आयु होने के कारण कुछ भी स्मरण नहीं है, हाँ प्रथम आम चुनाव 1952 के दौरान की चर्चाओं की थोड़ी बहुत याददास्त है। उस कालखण्ड में चूकि हर तरफ गरीबी थी, तन ढकने को पर्याप्त कपड़े तक नहीं होते थे, स्कूलों की भारी कमी थी, आवाजाही के लिए न सड़कें थी और न कोई वाहन । हॉ तब लोगों में सौहार्द था, आपसी तालमेल से लोग जीवन की समस्याओं को कम कर पाते थे। जरूरते बहुत कम थी । हर प्रकार से अभावों से जूझते हुए भी लोग खुश रहते थे। पर्व- उत्सव- त्यौहारों में खूब आनन्द उठाते थे । जीवन बहुत ही सरल और सरस था ।तब के बुजुर्ग कहते थे कि अब देश स्वतंत्र हो गया है, देश में राम राज आयेगा, गरीबी मिट जायेगी, गॉव-गॉव में खुशहाली आयेगी, सड़क- अस्पताल- विद्यालय खुलेंगे, रोजगार तथा कारोबार बढ़ेंगे, धन-धान्य की कहीं कमी नहीं रहेगी और देश के लोगों को हर तरह की सुविधाएं सुलभ होने लगेंगी ।
उन्होंने आगे कहा कि आजादी के बाद धीरे-धीरे विकास की गति आगे बढ़ी, सड़कें बननी शुरू हुई, कहीं-कहीं विद्यालय भी खुले और देश के लोगों में एक नई उम्मीद जगी।
इसी क्रम में वर्ष 1956 में देश में बन्दोबस्ती कार्यक्रम शुरू हुआ । अल्मोड़ा में भी 1959- 60 में इस कार्य की शुरुआत हो गयी।
श्री धामी ने कहा कि तब उनको भी इस विभाग में सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने अधिकारियो के दिशा-निर्देशन में पट्टी वल्ला, पल्ला, अड्डी गांव, वेल, भेरंग, बल्दिया, रावल, सेटी, खड़ायत, खर्क देश, बाराबीसी आदि गाँवों का सर्वेक्षण कार्य किया । तहसील पिथौरागढ़, धारचूला, मुनस्यारी, डीडीहाट , मिलम यहाँ तक कि गुंजी, गर्व्यांग तक सब जगह पैदल ही जाना पड़ता था। गर्मी, सर्दी, वर्षात हर मौसम में भूखे-प्यासे दर्जनों किमी रोज पैदल चलना पड़ता था। यद्यपि यातायात के लिए कहीं-कहीं सड़कें बनने लगी थी, लेकिन वाहन नहीं थे।
उन्होंने कहा वर्ष 1965 में बन्दोबस्ती का कार्य पूर्ण होने पर कुछ चुनिंदा कर्मियों को अल्मोड़ा बुलाया गया, जहाँ पटवारी का प्रशिक्षण देकर उनको भी राजस्व विभाग में ले लिया गया।
श्री धामी ने आगे कहा कि प्रशिक्षण पश्चात अलग-अलग पट्टियों जैसे तल्ला- मल्ला दानपुर, कमस्यार, कत्यूर, नाकुरी, तहसील रानीखेत, तहसील भिकियासैण व बागेश्वर में सेवाएं दी। उन्होंने कहा तहसील बागेश्वर जिला बनने के बाद उन्होंने तहसील कपकोट में बतौर रजस्ट्रार कानूनगो सेवाएं दी और यहीं से 30 जून 2000 को सेवा निवृत्त हो गये।
खड़क सिंह धामी ने अत्यन्त भावुक होकर कहा कि तब परेशानियां बहुत थी लेकिन समाज भयमुक्त था, अपराध नहीं थे, गावों में कहीं भी रुकने ठहरने की कोई समस्या नहीं होती थी, लोग रुखा-सूखा जैसा भी हो भोजन बड़े प्रेम भाव से खिलाते थे । एक-दूसरे की हर सम्भव मदद करते थे। स्कूल, , सरकारी भवन आदि निर्माण में हाथ बंटाते थे।
परन्तु 1980 के दशक के बाद धीरे – धीरे जीवन मूल्यों में गिरावट आने लगी और आज 2025 में जहाँ देश विकास के क्षेत्र में सरपट भाग रहा है, हर तरह के संसाधन मौजूद हैं, परन्तु जीवन में चुनौतियां भी बहुत विकट हो चली हैं। आपसी सद्भाव न तो गावों में रहा और न शहरों में । सचमुच इस बदलाव में भारतीय सामाजिक मूल्यों का तेजी से हास चिन्ताजनक है।
मदन जलाल मधुकर



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