(मातृ मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता सप्ताह 01 से 07 मई 2025) :माताओं के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना आवश्यक*

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*माताओं के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना आवश्यक*

(प्रशांत शर्मा-विनायक फीचर्स)
मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में प्रसव पूर्व और प्रसवकालीन मानसिक स्वास्थ्य (गर्भावस्था और प्रसव के बाद की अवधि) एक गंभीर लेकिन उपेक्षित मुद्दा बना हुआ है। हाल के वर्षों में प्रसवोत्तर अवसाद (Postpartum Depression) और चिंता विकारों के मामले बढ़े हैं, लेकिन इनसे निपटने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता है । विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सही समय पर मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराई जाएँ, तो माताओं और नवजात शिशुओं की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।

*वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. रविन्द्र अग्रवाल* जी के अनुसार, “गर्भावस्था और प्रसव के बाद महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ आम हैं, लेकिन जागरूकता के अभाव में उनका सही समय पर इलाज नहीं हो पाता। इससे माँ और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।”

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*आर्थिक असुरक्षा और सामाजिक दबाव बढ़ा रहे हैं समस्या*

विशेषज्ञों का मानना है कि ग्रामीण परिवारों में आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण मानसिक स्वास्थ्य उपचार को प्राथमिकता नहीं दी जाती। इसके अलावा, सामाजिक और पारिवारिक दबाव के कारण महिलाएँ खुलकर अपनी मानसिक स्थिति पर चर्चा करने से भी हिचकती हैं।

*मनोवैज्ञानिक तनुश्री शर्मा* बताती हैं, “ग्रामीण समाज में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को कलंक के रूप में देखा जाता है। कई महिलाएँ अवसाद और तनाव से गुजरने के बावजूद किसी से मदद नहीं मांगतीं, जिससे स्थिति और बिगड़ जाती है।”

*प्रसवकालीन मानसिक स्वास्थ्य के प्रभाव*

माँ पर असर: प्रसवोत्तर अवसाद और तनाव से महिलाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।

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बच्चे पर असर: मानसिक तनाव का असर नवजात के विकास पर पड़ता है, जिससे शारीरिक वृद्धि में बाधा आ सकती है।

*समाधान के लिए उठाए जा रहे कदम*

राज्य सरकार द्वारा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) के तहत मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को ग्रामीण स्तर तक पहुँचाने की कोशिश की जा रही है। इसके अलावा, कई गैर-सरकारी संगठन भी जागरूकता अभियान चला रहे हैं।राज्य स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, “हम मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं का हिस्सा बनाने पर काम कर रहे हैं। टेलीमेडिसिन सेवाओं और ऑनलाइन काउंसलिंग को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।”

*क्या किया जाना चाहिए?*

स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार: ग्रामीण अस्पतालों में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की नियुक्ति।

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जागरूकता अभियान: रेडियो, टीवी और सोशल मीडिया के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य पर जानकारी प्रसारित करना।सस्ती और सुलभ उपचार सेवाएँ: सरकारी योजनाओं के तहत निःशुल्क परामर्श सेवाएँ उपलब्ध कराना।

समुदाय आधारित सहयोग: महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups) बनाना, ताकि वे अपनी समस्याएँ साझा कर सकें।

 

निष्कर्ष

मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में प्रसवकालीन मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति में सुधार की सख्त जरूरत है। सरकार और समाज को मिलकर ऐसी व्यवस्था बनानी होगी, जहाँ हर माँ को मानसिक रूप से स्वस्थ जीवन जीने का अवसर मिले। जागरूकता और सही समय पर इलाज से ही इस गंभीर समस्या का समाधान संभव है।(विनायक फीचर्स)

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