पहलगाम की बैसरन घाटी, जिसे ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ के नाम से जाना जाता है, एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यहॉं हुए हमले की टाइमिंग कई मायनों में महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, यह हमला तब हुआ जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत के दौरे पर थे। दूसरा, यह अमरनाथ यात्रा के शुरू होने से ठीक पहले हुआ, जो कश्मीर में पर्यटन और धार्मिक गतिविधियों का प्रमुख समय होता है। तीसरा, पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के हालिया बयान, जिसमें उन्होंने कश्मीर को पाकिस्तान की ‘जुगुलर वेन’ (जीवन रेखा) बताया था, ने इस हमले को एक सुनियोजित भू-राजनीतिक कदम के रूप में देखने का आधार दिया।
इस हमले का तरीका भी चिंताजनक है। आतंकियों ने पर्यटकों को निशाना बनाया, उनकी धार्मिक पहचान पूछी, और हिंदू नामों वाले लोगों पर गोलियां चलाईं। यह रणनीति न केवल सांप्रदायिक तनाव को भड़काने की कोशिश थी, बल्कि कश्मीर के पर्यटन उद्योग को नुकसान पहुंचाने और भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करने का प्रयास भी था। यह हमला 2000 के छत्तीसिंहपुरा नरसंहार और 2023 में हमास द्वारा इजरायल पर किए गए हमले की याद दिलाता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय आतंकी गठजोड़ की आशंका बढ़ी है।
पहलगाम हमले को राजनीतिक चश्मे से देखने की प्रवृत्ति स्वाभाविक है, खासकर तब जब भारत में हर घटना को सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच वोट बैंक की राजनीति से जोड़ा जाता है। कुछ नेताओं ने इस हमले को धार्मिक आधार पर सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की, जबकि अन्य ने सरकार की सुरक्षा नीतियों पर सवाल उठाए। हालांकि, इस दृष्टिकोण से केवल अल्पकालिक राजनीतिक लाभ हो सकता है, लेकिन यह दीर्घकालिक रणनीतिक अवसरों को नजरअंदाज करता है।
यह हमला भारत के लिए एक रणनीतिक अवसर है सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने का। पहलगाम हमले ने भारत की सुरक्षा व्यवस्था में खामियों को उजागर किया। खुफिया जानकारी की कमी, पर्यटक स्थलों पर अपर्याप्त सुरक्षा, और आतंकियों की घुसपैठ की आसानी ने सवाल उठाए। यह भारत के लिए अपनी खुफिया एजेंसियों, जैसे रॉ और आईबी, को और सशक्त करने का अवसर है। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) और अन्य आतंकवाद-रोधी इकाइयों को पर्यटक स्थलों और संवेदनशील क्षेत्रों में स्थायी रूप से तैनात करने की रणनीति पर विचार किया जा सकता है। इसके अलावा, ड्रोन और सैटेलाइट निगरानी जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग बढ़ाया जा सकता है।
इस हमले की निंदा अमेरिका, ब्रिटेन, और यहां तक कि तालिबान ने भी की। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को आतंकवाद के खिलाफ पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया। यह भारत के लिए एक अवसर है कि वह वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को आतंकवाद के प्रायोजक के रूप में और अधिक उजागर करे। संयुक्त राष्ट्र और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) जैसे मंचों पर भारत अपने कूटनीतिक प्रयासों को तेज कर सकता है। साथ ही, हमास और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों के बीच संभावित गठजोड़ की जांच के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाया जा सकता है।
भारत ने हमले के तुरंत बाद कड़े कदम उठाए। कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक में 65 साल पुरानी सिंधु जल संधि को रद्द करने और अटारी सीमा पोस्ट को बंद करने जैसे फैसले लिए गए। यह भारत की ‘पानी की चोट’ रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कृषि पर दबाव डालना है। इसके अलावा, भारत ने पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा सेवाएं रोक दीं, जो एक सांकेतिक कदम है। यह रणनीति पाकिस्तान को आर्थिक और कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
पहलगाम हमला कश्मीर में हाल के वर्षों में स्थापित शांति और पर्यटन की प्रगति को नुकसान पहुंचाने का प्रयास है। यह भारत के लिए एक अवसर है कि वह कश्मीर में विकास परियोजनाओं, जैसे रेलवे और सड़क नेटवर्क, को और तेज करे। साथ ही, स्थानीय युवाओं को रोजगार और शिक्षा के अवसर प्रदान करके आतंकवाद के प्रति उनकी उदासीनता को और बढ़ाया जा सकता है। कश्मीरियों के बीच भारत के प्रति विश्वास को मजबूत करने के लिए सांस्कृतिक और सामुदायिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की बात दोहराई। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की मौजूदगी में हुई उच्च-स्तरीय बैठकों में थल, जल, और वायु सेना के विकल्पों पर चर्चा हुई। यह भारत के लिए सर्जिकल स्ट्राइक या अन्य लक्षित कार्रवाइयों के माध्यम से आतंकी ठिकानों को नष्ट करने का अवसर है। साथ ही, सीमा पर घुसपैठ को रोकने के लिए और सख्त कदम उठाए जा सकते हैं।
रणनीतिक अवसरों का लाभ उठाने के लिए भारत को कई चुनौतियों का सामना करना होगा। पहला, आंतरिक राजनीतिक मतभेद इस प्रक्रिया को जटिल बना सकते हैं। विपक्षी दलों द्वारा हमले को सरकार की विफलता के रूप में चित्रित करना रणनीतिक एकजुटता को कमजोर कर सकता है। दूसरा, अंतरराष्ट्रीय समुदाय से निरंतर समर्थन प्राप्त करना कठिन हो सकता है, खासकर तब जब पाकिस्तान अपने कूटनीतिक प्रयासों को तेज करेगा। तीसरा, कश्मीर में स्थानीय आबादी के बीच विश्वास बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इस तरह के हमले सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा सकते हैं।
पहलगाम आतंकी हमला एक दुखद घटना है, लेकिन इसे केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से देखना भारत के दीर्घकालिक हितों को नुकसान पहुंचा सकता है। यह हमला भारत के लिए अपनी सुरक्षा, कूटनीति, और सैन्य रणनीति को और मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है। पाकिस्तान को आतंकवाद के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए भारत को आर्थिक, कूटनीतिक, और सैन्य दबाव बढ़ाना होगा। साथ ही, कश्मीर में शांति और विकास को प्राथमिकता देकर आतंकवाद के मूल कारणों को संबोधित करना होगा। यह समय है कि भारत इस त्रासदी को एक रणनीतिक अवसर में बदल दे, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके और कश्मीर में स्थायी शांति स्थापित हो सके।
(संदीप सृजन-विभूति फीचर्स)



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