” समय की अंगूठी जब घिसकर अप्रासंगिक हो जाती है,तब उसे नए नगीने के साथ बदल दिया जाता है।” पंजीकृत डाक के साथ भी अब ऐसा ही होने जा रहा है । डाक विभाग भी अब आधुनिकता की राह पर निकल पड़ा है और जल्द ही पंजीकृत यानी रजिस्टर्ड चिट्ठी – पत्रों की अब विदाई होने जा रही है। दशकों से जो डाक व्यवस्था भरोसे और सुस्त धीमी दुनिया का प्रतीक रही, अब 1 सितंबर 2025 से एक आधुनिक, तेज़, डिजिटल स्पीड पोस्ट में समाहित होने जा रही है।
ब्रिटिश काल से ही भारतवर्ष में रजिस्टर्ड पोस्ट प्रचलन में चली आ रही थी । हमेशा महत्वपूर्ण दस्तावेज़ इसी सेवा से भेजे जाते थे। ये पत्र अदालतों में मान्य, ग्रामीण इलाकों में भरोसेमंद, और शहरों में एक पक्की पहचान वाले माने जाते थे । जैसे-जैसे डिजिटल युग का प्रभाव बढ़ा, इसकी खपत में दस वर्षों में लगभग 25 प्रतिशत की गिरावट आई है । रजिस्टर्ड पत्रों की संख्या 2011-12 के 244.4 मिलियन से घटकर 2019-20 में यह 184.6 मिलियन रही ।
डाक विभाग ने घोषणा की है कि एक सितंबर से रजिस्टर्ड पोस्ट सेवा बंद नहीं की जा रही, बल्कि इसे स्पीड़ पोस्ट में परिवर्तित किया जा रहा है । यानी सुरक्षा और ट्रैकिंग की बेहतर सुविधा ग्राहकों को मिल सकेगी ।
विज्ञान और आधुनिकता, परंपरा और भावनात्मकता, यह द्वन्द्व ही ऐसे परिवर्तनों का मूल आधार बनता है। रजिस्टर्ड पोस्ट,जो दस्तावेज़ों के सम्प्रेषण में समय की कसौटी था, अब नए डिजीटल स्वरूप में तब्दील हो रहा है। लेकिन क्या उस शुद्ध दृश्यता, उस कागज़ के स्पर्श, उस पत्र के साहचर्य का अभाव हमें भावनात्मक रूप से खाली नहीं करता?
हम गुजर रहे हैं एक ऐसे पुल से जहाँ पारंपरिक विश्वास का खटारा उपक्रम ढह रहा है, और आधुनिक गति की चमक उस पर झिलमिला रही है। रजिस्टर्ड पोस्ट विदा ले रही है, लेकिन पुराने पत्रों में, उसकी ख़ुशबू, उसकी मुहर, उसकी शांति बनी रहेगी। जैसे टेलीग्राम विदा हो गया, बुक पोस्ट विदा हो गई, उसकी जगह ज्ञान पोस्ट ने ले ली, रजिस्ट्री भी स्पीड पोस्ट में घुल मिल ही जाएगी,इस विश्वास के साथ कि अब संदेशों के आदान-प्रदान व दस्तावेजों के आवा- गमन में लेट लतीफी नहीं होगी, परन्तु भावनात्मक लगाव सम्भवतः खो जाएगा
( विवेक रंजन श्रीवास्तव -विनायक फीचर्स)



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