(विवेक रंजन श्रीवास्तव-विभूति फीचर्स)
राष्ट्र की सुरक्षा और संप्रभुता के संकटकाल में केवल सशस्त्र बल ही नहीं, बल्कि आम नागरिकों की सामूहिक चेतना और कर्तव्यनिष्ठा भी निर्णायक भूमिका निभाती है। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसी विषम परिस्थिति में प्रत्येक नागरिक का दायित्व बनता है कि वह व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को प्राथमिकता दे। यह वह समय होता है जब देश की एकता, अर्थव्यवस्था, और सामाजिक सद्भावना की रक्षा करने के लिए समाज के हर वर्ग को सक्रिय होना पड़ता है।
युद्ध के दौरान सबसे पहले नागरिकों को सामाजिक एकता और शांति बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। ऐसे समय में दुश्मन देश अक्सर अफवाहों और साम्प्रदायिक विभाजन के बीज बोकर अंदरूनी अराजकता फैलाने की कोशिश करते हैं। ऐसे में धर्म, जाति, या भाषा के आधार पर किसी भी प्रकार के विवाद को हवा न देना ही बुद्धिमानी है। समाज के हर व्यक्ति को “भारतीय” होने के गौरव को सर्वोपरि रखते हुए पारस्परिक सहयोग और सौहार्द का परिचय देना चाहिए। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर फैलाई जाने वाली अफवाहों और भ्रमित करने वाली सूचनाओं से सावधान रहना आवश्यक है। केवल सरकारी या प्रमाणित स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर विश्वास करें और उसे ही आगे साझा करें। संदेहास्पद संदेशों की तथ्य-जाँच किए बिना प्रसारित करने से बचें, क्योंकि यह समाज में भय और अव्यवस्था को जन्म दे सकता है।
दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है सेना और सुरक्षा बलों का समर्थन । सीमा पर लड़ रहे जवानों का मनोबल बनाए रखने में आम जनता की भूमिका अहम होती है। सेना कल्याण कोष में योगदान देकर, सैनिक परिवारों की मदद करके, या सोशल मीडिया पर उनके प्रति आभार व्यक्त करके भी नागरिक अपना योगदान दे सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले सैनिकों के परिवारों को भावनात्मक और आर्थिक सहायता पहुँचाना समाज का नैतिक दायित्व है। साथ ही, युद्धकाल में देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने के लिए नागरिकों को विवेकपूर्ण आर्थिक व्यवहार अपनाना चाहिए। जरूरी वस्तुओं का संचय करने, कालाबाजारी में शामिल होने, या कर चोरी जैसे कृत्यों से बचना चाहिए। समय पर करों का भुगतान करके सरकार को संसाधन जुटाने में मदद करें, ताकि रक्षा और राहत कार्यों में कोई बाधा न आए। सरकारी निर्देशों का पालन करना नागरिकों की प्राथमिकता होनी चाहिए। आपातकाल में सरकार कर्फ्यू, राशनिंग, या ब्लैकआउट जैसे नियम लागू कर सकती है। इनका उल्लंघन न केवल व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए खतरनाक है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकता है। साथ ही, स्थानीय प्रशासन के साथ सहयोग करते हुए चौकीदारी, रक्तदान शिविरों में स्वेच्छासेवी कार्य, या आपातकालीन सेवाओं में सहायता जैसे कार्यों से समाज को मजबूती मिलती है।
सतर्कता और सुरक्षा की जिम्मेदारी हम पर आती है। युद्ध के दौरान दुश्मन देश जासूसी, साइबर हमले, या आतंकी गतिविधियों का सहारा ले सकता है। ऐसे में नागरिकों को अपने आसपास की संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए और तुरंत पुलिस या हेल्पलाइन को सूचित करना चाहिए। साइबर सुरक्षा का ध्यान रखते हुए अज्ञात लिंक या ईमेल को न खोलें और डिजिटल उपकरणों को सुरक्षित रखें। बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उन्हें आपातकालीन प्रोटोकॉल के बारे में जागरूक करें।
मानवीय समर्थन और मानसिक मजबूती का विशेष महत्व है। युद्ध का सबसे गहरा प्रभाव समाज के संवेदनशील वर्गो – महिलाओं, बच्चों, विकलांगों, और बुजुर्गों पर पड़ता है। ऐसे में रक्तदान करना, पड़ोसियों की मदद करना, और मनोसामाजिक सहायता प्रदान करना समाज की जिम्मेदारी है। युवाओं को अपनी ऊर्जा और तकनीकी कौशल का उपयोग सकारात्मक जानकारी फैलाने, स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन करने, या शिक्षा के माध्यम से राष्ट्रप्रेम की भावना जगाने में करना चाहिए।
इतिहास गवाह है कि 1965 और 1971 के युद्धों में आम नागरिकों ने अपनी एकजुटता और कर्तव्यनिष्ठा से देश को विजय दिलाई। आज भी, राष्ट्र की रक्षा केवल सीमा पर नहीं, बल्कि हर नागरिक के विवेक और देशभक्ति में निहित है। “जय हिन्द” की भावना से ओत-प्रोत होकर हमें संयम, सहयोग, और साहस के साथ इस चुनौती का सामना करना होगा। यही वह समय है जब हम साबित कर सकते हैं कि हम सब एक हैं, की संकल्पना केवल शब्द नहीं, बल्कि हमारे कर्मों में साकार होती है। *(विभूति फीचर्स)*



लेटैस्ट न्यूज़ अपडेट पाने हेतु -
👉 वॉट्स्ऐप पर हमारे समाचार ग्रुप से जुड़ें