पाकिस्तान का भूभाग प्राचीन काल से ही समृद्ध हिंदू सभ्यता का केंद्र रहा है। यहाँ की मिट्टी में सिंधु घाटी की सभ्यता के बीज हैं । यह क्षेत्र सदियों तक शक्तिशाली हिंदू राजवंशों के अधीन रहा है। 1947 में भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण ने इस ऐतिहासिक परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया। जहाँ अधिकांश हिंदू आबादी भारत चली गई, वहीं कुछ शाही परिवार ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी पैतृक भूमि पर बने रहने का निर्णय लिया, तथा वहीं बने रहे। आज, मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में इन हिंदू राज परिवारों की कहानी, विशेष रूप से उमरकोट के सोढा राजपूतों की पाकिस्तान में उपस्थिति, न केवल इतिहास के एक अनूठे अध्याय को दर्शाती है, बल्कि धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप में उनके संघर्ष, प्रभाव और पहचान को भी बयां करती है।
मां हिंगलाजदेवी का मंदिर, भगवान राम के पुत्र लव के नाम पर बसा लाहौर, अनेक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर , करतारपुर गुरुद्वारा आदि पाकिस्तान के मुस्लिम राष्ट्र होने के कारण हाशिए पर हैं।
वर्तमान पाकिस्तान का क्षेत्र कभी गांधार और सिंध जैसे समृद्ध हिंदू राज्यों का हिस्सा था। विभाजन से सदियों पहले, यहाँ कई हिंदू राजवंशों का शासन रहा था। एक समय था जब हिंदूशाही वंश (850–1021 ईस्वी) ने काबुल, गंधार और खैबर पास तक के बड़े क्षेत्र पर शासन किया था। इस वंश के अंतिम प्रमुख राजा त्रिलोचनपाल थे। इसके अलावा, सिंध क्षेत्र में अन्य हिंदू रियासतें भी थीं।
सन 1947 के विभाजन के समय तक, पाकिस्तान बनने वाले क्षेत्रों में केवल कुछ ही रियासतें थीं, जिनमें से लगभग प्रायः मुस्लिम शासकों के अधीन थीं। अपवाद में उमरकोट (पूर्व में अमरकोट) की रियासत सबसे महत्वपूर्ण थी, जहाँ हिन्दू राजा सोढा राजपूतों का शासन था। उमरकोट का सोढा राजवंश , विभाजन के बाद भी अस्तित्व में बना रहा ।
उमरकोट, जो अब पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है, एकमात्र ऐसी रियासत थी जिसके हिंदू शासकों ने विभाजन के बाद भी पाकिस्तान में रहने का फैसला किया था । सोढा राजपूत, परमार वंश की एक शाखा हैं। वे 13वीं शताब्दी से इस क्षेत्र पर शासन कर रहे थे। उनका इतिहास इस बात से भी जुड़ा है कि मुगल सम्राट अकबर का जन्म भी 1542 ईस्वी में उमरकोट के किले में ही हुआ था, जब उनके पिता हुमायूं को तत्कालीन राणा अमर सिंह ने शरण दी थी। सोढा शासकों ने आक्रमणकारियों के सामने कभी समर्पण नहीं किया और उनकी रियासत ने अपनी हिंदू पहचान बनाए रखी। पाकिस्तान में बने रहने का उनका निर्णय सरल नहीं था। विभाजन के समय, उमरकोट के शासकों ने अपने पैतृक घर और वहाँ की मिश्रित आबादी के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए भारत आने से इनकार कर दिया। इस निर्णय ने उन्हें एक मुस्लिम राष्ट्र में एक अभूतपूर्व स्थिति प्रदान की।
वर्तमान स्थिति में भी उनका प्रभाव, राजनीति और चुनौतियाँ अभूतपूर्व है। आज, उमरकोट का सोढा परिवार पाकिस्तान में एकमात्र ऐसा हिंदू शाही परिवार है जिसका न केवल ऐतिहासिक महत्व है, बल्कि वह राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में भी प्रभावशाली है।
इस परिवार के सदस्यों ने पाकिस्तान की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई है। राणा चंद्र सिंह, जो सोढा कबीले के प्रमुख थे, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और उन्होंने सात बार राष्ट्रीय असेंबली में उमरकोट का प्रतिनिधित्व किया। बाद में, उन्होंने अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए ‘पाकिस्तान हिंदू पार्टी’ की भी स्थापना की।
वर्तमान में, कुंवर करणी सिंह सोढा इस परिवार के प्रमुख और 27वें राणा हैं। वे अपने पिता राणा हमीर सिंह की विरासत को आगे बढ़ाते हुए सक्रिय राजनीति में हैं और थार के गर्वित पुत्र के रूप में संस्कृति, सद्भाव और वहां अल्पसंख्यक हिन्दू समुदायों के सशक्तिकरण को बढ़ावा देते हैं। उनका प्रभाव इतना गहरा है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र में भी उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।
सोढा परिवार ने भारत के शाही परिवारों के साथ वैवाहिक संबंध भी स्थापित किए हैं, जो दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को जीवित रखने में महत्वपूर्ण है।
एक मुस्लिम राष्ट्र में हिंदू राज परिवार की विशेष स्थिति बनाए रखना चुनौती है। वहां सोढा परिवार एक सम्मानित परिवार है, लेकिन पाकिस्तान में हिंदू राज परिवारों का वर्तमान अस्तित्व व्यापक हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय की स्थिति से अलग नहीं है। विभाजन के बाद, अधिकांश हिंदू संपत्तियाँ और धार्मिक स्थल या तो नष्ट कर दिये गए या उपेक्षित रहे। सोढा परिवार को छोड़कर, अन्य ऐतिहासिक हिंदू राजपरिवारों के वंशज या तो भारत चले गए या अब उनके पास नाममात्र का शाही शीर्षक ही बचा है । कोई वास्तविक राजनीतिक सत्ता हिन्दुओं के पास अब नहीं रही ।
संक्षेप में, पाकिस्तान में अन्य हिंदू राज परिवारों का इतिहास विशाल और प्राचीन है, लेकिन वर्तमान में पाकिस्तान में हिंदू उपस्थिति की यह कहानी मुख्य रूप से मात्र उमरकोट के सोढा राजवंश के चारों ओर केंद्रित रह गई है। यह परिवार एक ऐसे सांस्कृतिक और राजनीतिक पुल का काम करता है जो सदियों पुरानी विरासत को आधुनिक राज्य की सीमाओं के पार ले जाता है, और एक मुस्लिम बहुल देश में अल्पसंख्यक होने के बावजूद अपनी जड़ों और सम्मान को किसी तरह कायम रख रहा है।
(विवेक रंजन श्रीवास्तव-विभूति फीचर्स)











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