दुबई के एयर शो की चमकदार दुनिया में तेजस दुर्घटना की दर्दनाक कहानी

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एयर शो उस गगन भेदी चमकीली दुनिया का नाम है जहाँ हवाई जहाज आकाश में रंग भरते हैं और दर्शक सांस रोककर उन क्षणों का आनंद लेते हैं । ये विस्मय भरे दृश्य विज्ञान और पायलट के साहस के संगम से पैदा होते हैं। पर यही मंच वह जगह भी है जहाँ जोखिम अपने सबसे तीखे रूप में मौजूद रहता है। रफ़्तार, कोण, ध्वनि और गुरुत्वाकर्षण के खेल में एक मामूली छोटी सी चूक भी आसमान को अचानक गहरे धुएँ के बादल में बदल सकती है। दुबई एयर शो में तेजस के हादसे ने इसी कड़वी सच्चाई को फिर उजागर किया है।

तेजस के क्रैश की छवि जितनी दर्दनाक है, उससे भी भारी वह क्षति है जो एक प्रशिक्षित भारतीय पायलट के रूप में देश ने झेली है। प्रदर्शन उड़ान के दौरान कम ऊँचाई पर तेजस ने वह तीखा मोड़ लिया जिसमें नकारात्मक गुरुत्व बलों का दबाव पायलट की सहनशीलता की सीमा को छूता है। ऐसे मैन्युवर में पायलट की आंखों के सामने दुनिया उलट सकती है। ठंडी हवा के उस एक पल में, जब विमान का पेट आसमान की तरफ हो और जमीन सिर पर, मानव शरीर का अपना प्रतिरोध कमज़ोर पड़ जाता है। जो प्रारंभिक विशेषज्ञ रिपोर्ट सामने आई हैं वे बताती हैं कि मैन्युवर पूरा होते ही विमान को स्थिर करने का प्रयास किया जा रहा था पर अचानक ऊंचाई खो गई और बचाव का समय हाथ से निकल गया।

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यह घटना किसी अकेले विमान, पायलट या तकनीक की कमजोरी नहीं बल्कि उस जटिल दुनिया की कहानी है जिसे आधुनिक सैन्य विमानन कहते हैं। दुनिया ने देखा है कि सबसे अत्याधुनिक विमान भी हादसों से सुरक्षित नहीं हैं। एविएशन कभी जोखिम मुक्त नहीं होता। फ्रांस का रफाल भी हवा में भिड़कर टूट चुका है। अमेरिका का एफ पैंतीस अपने विशाल बजट और प्रतिष्ठा के बावजूद कई दुर्घटनाओं से गुजरा है। बी टू स्पिरिट जैसे अभेद्य माने जाने वाले स्टील्थ विमान भी सेंसर की एक गलती से रनवे पर ध्वस्त हुए हैं। सुखोई विमानों ने तकनीकी कारणों और युद्ध संबंधी स्थितियों में कई कमजोरियों का सामना किया है। चीन के आधुनिक जेट भी प्रशिक्षण उड़ानों में दुर्घटनाओं से बच नहीं सके।

दुर्घटनाएँ किसी देश की तकनीकी क्षमता की हार नहीं होती। वे उस सूक्ष्म जटिलता का संकेत हैं जिसे उच्च गति के उड़ान विज्ञान में शामिल होना पड़ता है। हादसा चाहे जहां भी हो उसकी जड़ें या तो तकनीकी त्रुटि में मिलती हैं या मानवीय चूक में और कई बार दोनों मिलकर चेन रिएक्शन बनाते हैं। पर असली पैमाना यह नहीं कि दुर्घटना हुई या नहीं बल्कि यह है कि उससे सीख कैसे ली गई। दुनिया में जहां भी ऐसी घटनाएँ हुई हैं वहां जांच का ढांचा ही आधार बना। पारदर्शिता और सुधार की क्षमता ही किसी भी विमान की वास्तविक विश्वसनीयता को गढ़ती है।
दुबई एयर शो की इस दुर्घटना ने एक बार फिर याद दिलाया है कि प्रदर्शन उड़ानें रोज़मर्रा की हवाई गतिविधियों से कहीं ज़्यादा जोखिम लेकर चलती हैं। कम ऊँचाई पर तीव्र मोड़ लेना, दर्शकों के सामने हर सेकंड को दृश्यात्मक रूप से प्रभावशाली बनाना, नकारात्मक गुरुत्व बलों का सामना करना और फिर सीमित दूरी में रिकवरी करना एक ऐसा गणित है जिसमें गलती का मूल्य घातक होता है। पर यही मंच वह कसौटी भी है जहाँ पायलट अपनी शारीरिक क्षमता और विमान अपनी वास्तविक सीमा का परिचय देते हैं।
तेजस की दुर्घटना को इसी वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखना ज़रूरी है। यह घटना न तेजस की क्षमता को कम करती है न HAL की इंजीनियरिंग को और न भारतीय वायुसेना की पेशेवरिता को। तेजस अपनी ढेर सारी सफल उड़ानों के जरिए यह साबित करता रहा है कि भारत अब उन देशों की पंक्ति में खड़ा है जो उन्नत सैन्य एविएशन के सबसे चुनौतीपूर्ण मानकों को छू रहे हैं।यह दुर्घटना उस उपलब्धि को नहीं मिटा सकती पर यह अवश्य बताती है कि सुधार की यात्रा कभी पूरी नहीं होती।
तेजस के हादसे के बाद तत्काल जांच प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। डेटा विश्लेषण, उड़ान रिकॉर्ड, तकनीकी पैनल की रिपोर्ट और उड़ान सुरक्षा मानकों की समीक्षा इन सबके जरिए यह समझने की कोशिश होगी कि उस दोपहर क्या हुआ था। इसी प्रक्रिया में वह विश्वास जन्म लेता है जो किसी भी तकनीकी कार्यक्रम को मजबूत बनाता है। अमेरिका, फ्रांस, रूस या चीन ने भी यही रास्ता अपनाया है और भारत भी यही करने जा रहा है। विमानन की दुनिया में असली प्रतिष्ठा हादसों की संख्या से नहीं बल्कि उन पर की गई प्रतिक्रिया की गुणवत्ता से तय होती है।
इस दुर्घटना को एक त्रासदी की तरह याद किया जाएगा पर इसे तकनीकी हार नहीं माना जाएगा। तेजस आज भी उसी आधुनिक दुनिया का हिस्सा है जहाँ हर उड़ान जोखिम और विज्ञान के संगम में जन्म लेती है। पायलट के बलिदान को नमन करते हुए यही उम्मीद की जानी चाहिए कि जांच निष्पक्ष होगी और उससे निकले निष्कर्ष आने वाली उड़ानों को और सुरक्षित बनाएँगे।

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(विवेक रंजन श्रीवास्तव -विनायक फीचर्स)

(न्यूयॉर्क से)

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