बचपन से सुनते-सुनते एक भ्रामक कथा मेरे मन में ऐसा स्थान बना बैठी थी कि मैं उसी को सत्य मानने लगी थी। मैं ही क्यों भारत में बहुत से ऐसे लोग मिल जाएंगे जो इस कथा को सत्य मानते हैं। कथा सीता और राम के पुत्रों लव-कुश को लेकर कुछ यूँ है किः
एक बार सीता पालने में अपने पुत्र को सुलाकर नदी से जल लेने गई और ऋषि वाल्मीकि को बच्चे की रक्षा का भार सौंप गई। (अब यह तो सर्व मान्य है कि सीता और राम के पुत्रों का लालन-पालन इन्हीं वाल्मीकि के आश्रम में हुआ था।) ऋषि अपने लेखन में इतने मग्न थे कि इस बात को भूल ही गये। जबकि सीता उन्हें कार्यमग्न देख बालक को स्वयं ही उठा ले गईं। ऋषि को जब ध्यान आया तो उन्होंने पालना खाली देख कर सोचा कि कोई जानवर बच्चे को ले गया है अब वे सीता को क्या जवाब देंगे? अतः तत्काल उन्होंने कुशा से एक शिशु का निर्माण किया और उसे पालने में सुला दिया। लौटने पर सीता ने दूसरे बालक को भी सहर्ष स्वीकार किया और वह दो बालकों की माँ बन गई, किन्तु ऐसा है नहीं! यह लोक कथा अथवा किंवदंती युगों-युगों से प्रचलित है और खूब सुनी-सुनाई जा रही है।
ऐसी किंवदंतियाँ विषय-वस्तु का समुचित ज्ञान न होने के कारण फलती-फूलती रहती हैं। इनका प्रचार-प्रसार भी धड़ल्ले से होता रहता है। कम ही लोग इनकी सच्चाई जानने के लिए प्रयासरत देखे जाते हैं। जबकि सच यह है कि सीता के गर्भ से दो पुत्र ही उत्पन्न हुए थे। इस लोककथा अथवा किंवदंती के प्रचलन का बड़ा कारण तुलसीदास जी का इस विषय में मौन भी है। उन्होंने रामचरित मानस में भक्ति से आगे देखने की चेष्टा ही नहीं की बस ‘‘दुई-दुई सुत सब भाइयन केरे’’ से काम चला लिया। जबकि वाल्मीकि इस विषय में मौन नहीं रहे। इतना ही नहीं वाल्मीकि के अनुसार लक्ष्मण और शत्रुघ्न तो यह भी जानते थे कि सीता कहाँ हैं और ये बालक किसके हैं। लक्ष्मण ने तो सीता को वन में छोड़ते समय कहा भी था कि महर्षि बाल्मीकि मेरे पिता राजा दशरथ के मित्र हैं अतः अब से तुम इन्हीं के आश्रम में रहो। वे सीता को वाल्मीकि आश्रम के निकट छोड़कर आश्वस्त लौटे थे।
लोक कथाओं के अनुसार वन में सीता का असली परिचय नहीं दिया गया किन्तु वाल्मीकि रामायण इस तथ्य से भी इन्कार करती है। वाल्मीकि दृष्टा थे, साक्षी थे और इतिहास रचयिता थे। उन्होंने जो लिखा है सत्य को साक्षी बना कर लिखा है उसमें राम की प्रशंसा हो या निन्दा। वे लिखते हैंः
‘‘ततो अर्धरात्र समये बालका मुनिदारकाः
वाल्मीकेः प्रियमाचख्युः सीतायाः प्रसवं शुभम्।।2।।
भगवन् ‘‘राम पत्नी’’ सा प्रसूता दारक द्वयम्
ततो रक्षां महातेजः कुरु भूत विनाशिनीम्।।3।।
(वाल्मीकि रामायण, उत्तर काण्ड )759 पृष्ठ
आधी रात को मुनिकुमारों ने वाल्मीकि जी को सीता के प्रसव की सूचना दी और कहा, ‘‘भगवन्! ‘श्री राम जी की पत्नी’ ने दो पुत्रों को जन्म दिया है। आप चलकर उनका बालग्रह जनित, (जातक कर्म) आदि भूतबाधा रक्षा हेतु कर्म करें। उपरोक्त श्लोक से न केवल यह सिद्ध होता है कि सीता ने दो पुत्रों को जन्म दिया बल्कि वहाँ उन्हें रजमहिर्षी का मान-सम्मान भी प्राप्त था। बाल्मीकि रामायण से यह भी सिद्ध होता है कि बाल्मीकि ने उन्हें तुरन्त पहचान लिया था और कुछ वृद्ध तपस्वी महिलाओं के संरक्षण में उन्हें रखा गया था उस समय सीता का पूर्ण परिचय उन तपस्विनियों को दिया गया था और रजोचित सम्मान का निर्देश भी साथ ही दिया गया था अतः सद्यप्रसूता सीता को नदी से जल भरने जाने जैसी बात सिरे से ही अनर्गल प्रतीत होती है।
वाल्मीकि मुनि ने भीतर जाकर उन दोनों बालकों को देखा और वृद्धा स्त्रियों को कुशाओं का मुट्ठा देते हुए एवं भूतबाधा निवारण और बालकों के नामकरण का आदेश देते हुए कहा,
यस्तो पूवर्जो जातः स कुशैर्मन्त्र सत्कृतैः
निर्मार्जनीयस्तु तदा कुश इत्यस्य नाम तत्।।7।।
यश्रचावरो चवेत् ताम्यों लवेन सुसमाहितः
निर्मार्जनीयो वृद्ध मिर्लवेति चस नामतः।।8।। उपरोक्त
अर्थात जो बालक पहले पैदा हुआ है उसका नाम कुश रखो और जो बाद में हुआ है उसका नाम लव। इससे सिद्ध होता है कि वाल्मीकि ने जन्म के समय ही दोनों बालकों का नामकरण किया यानि दोनों ही सीता के गर्भ से उत्पन्न बालक थे।
वाल्मीकि ने न केवल दोनों बच्चों के जन्म की पुष्टि की है अपितु उस समय को भी रेखांकित किया है जिस समय वे पैदा हुए थे।
‘ततो अर्धरात्रि समये’ के साथ ही वाल्मीकि जी ने ऋतु काल का भी निर्धारण कर दिया है। शत्रुघ्न को लवणासुर वध के लिए भेजते समय राम ने उसे कहा था
स ग्रीष्म अपयाते तु वर्षारात्र उयागते
हन्यास्त्वं लवणं सौम्य सहिलालोडस्य दर्भतेः
अर्थात् ‘‘हे सौम्य! जब ग्रीष्म रितु निकल जाए और वर्षारितु हो उस समय तुम लवणसुर का वध करना। क्योंकि यही समय उचित है उस के विनाश के लिए।’’ वा.रामायण उत्तरकाण्ड (पृष्ठ 756)
ऐसा लगता है कि राम के मन में सीता के बारे में जानने की इच्छा का भी इस आदेश में समावेष है। क्योंकि लवणासुर को मारने इसी मार्ग से होकर जाया जाता और राम के आदेश से शत्रुघ्न उस रात वाल्मीकि के आश्रम में रुके थे जिस रात सीता ने दो पुत्रों को जन्म दिया था। आश्रम में पहुँच कर शत्रुघ्न ने यह स्पष्ट भी कर दिया था।
भगवन् वस्तु मिच्छामि गुरोः कृत्यादिहागतः
श्रवः प्रभाते गमिष्यामि प्रतीचीं वारुणीं दिशम् (वहीं पृष्ठ 757)
‘‘भगवान! मैं अपने बड़े भाई श्री रघुनाथ जी के कार्य से इधर आया हूँ और रात ठहर कर प्रातः वरुण देव द्वारा रक्षित-पालित पश्चिम दिशा को चला जाऊँगा।
निश्चित ही राम को आभास रहा होगा कि इन दिनों में उनके पिता बनने की अपेक्षा की जा सकती है इसी कारण से उन्होंने शत्रुघ्न को वर्षा काल में जाने का सुझाव दिया था। यह भी हो सकता है कि शत्रुघ्न इसी उद्देश्य से वहाँ रुके हों।
यामेव रात्रिं शत्रुघ्नंः पर्णशाला समाविशत्
तामेव रात्रिं सीतामि प्रसूता दारक द्वयम् (वही)
जिस रात्रि शत्रुघ्न ने पर्णकुटी में प्रवेश किया उसी रात्रि संयोग से सीता ने दो पुत्रों को जन्म दिया। वे पर्णकुटी के उस भाग पर भी कान लगाये रहे जिधर सीता का निवास था तथा
तां क्रियामाणां च वृद्धाभिर्गोत्र नाम च
संकीर्तन च रामस्य सीतायाः प्रसवौ शुभौ
सीता के प्रसव के समय आधी रात को सीता-राम ने नाम गोत्र उच्चारण की ध्वनि शत्रुघ्न के कान में पड़ी तब वे स्वयं पर संयम न रख सके और मुनि से आज्ञा लेकर सीता व दोनों बच्चों को देखने पहुँच ही गये और सीता को माताजी कह कर बधाई भी दी।
अर्धरात्रे तु शत्रुघ्नः सुश्राव सुमहत प्रियम
पर्णशाला ततो गत्वा माता र्दिष्टयेति चाब्रवीत्।।12।। (पृष्ठ 760) सर्ग66
तदा तस्य प्रहृष्टस्य शत्रुघ्नस्य महात्मनः
व्यतीता वार्षिकी रात्रिः श्रावणी लघुविक्रमा।। 13।।
महात्मा शत्रुघ्न इतने प्रसन्न हुए कि सावन की रात बात की बात में बीत गई।
उपरोक्त उद्धरणों से यह तथ्य पूर्ण तथा स्पष्ट हो जाता है कि सीता ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था जिनका पता रघुकुल में सबको था और अश्वमेघ यज्ञ में रामायण का गान भी योजना बद्ध ही था किन्तु स्वाभिमानिनी सीता को एक और परीक्षा स्वीकार नहीं हुई, हाँ उसके दोनों पुत्र स्वीकारे गये, प्रजा द्वारा भी और पिता द्वारा भी।
आशा शैली
सम्पादक शैलसूत्र
इन्दिरा नगर-2, लालकुआँ
जिला नैनीताल-262402 (उत्तराखण्ड)



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