वीर सावरकर जयंती 28 मई पर विशेष लेख : दो बार आजीवन कारावास पाने वाले एकमात्र भारतीय थे वीर सावरकर

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सात अक्टूबर उन्नीस सौ पांच विजयदशमी पर्व। पुणे के प्रमुख मार्गो से होते हुए विदेशी वस्त्रों को लेकर एक बैलगाड़ी आगे बढ़ रही थी और हजारों व्यक्ति विदेशी वस्त्रों को इस बैलगाड़ी में लादते जा रहे थे । यह बैलगाड़ी लकड़ी के पुल तक पहुंची और असंख्य नागरिकों के सामने इसे प्रचंड अग्नि के हवाले कर दिया गया । धू-धू करती इस ज्वाला को वीर सावरकर ने *गोरे रावण का दहन* का नाम दिया और अपने जोशीले भाषण से नागरिकों के हृदय में देश प्रेम की ज्वाला जला दी । इस अवसर पर तिलक और परांजपे के भी भाषण हुए। इस प्रकार विदेशी वस्त्रों का प्रथम होलिका दहन करने वाले वीर सावरकर थे। तब महात्मा गांधी ने भी दक्षिण अफ्रीका के अपने पत्र इंडियन ओपिनियन में विदेशी वस्त्रों के इस होलिका दहन की भरपूर आलोचना की थी। फिर 16 वर्ष बाद 11 जुलाई को परेल मुंबई में महात्मा गांधी ने स्वयं ही विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। इतिहासकारों ने भी विदेशी वस्त्रों की पहली होली जलाने का श्रेय महात्मा गांधी को दिया जबकि प्रथम विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले वीर सावरकर थे।
विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के कारण कॉलेज प्रबंधन ने इनको कॉलेज से निष्कासित कर दिया और ₹ दस का जुर्माना लगाया । जिस पर नगर में जन आक्रोश उमड़ पड़ा और अंत में विद्यालय को इनका निष्कासन वापस लेना पड़ा लेकिन स्नातक पूर्ण करने के बाद कॉलेज प्रशासन ने इनकी डिग्री को जब्त कर लिया ।
जी हां हम बात कर रहे हैं वीर विनायक राव दामोदर
सावरकर उर्फ तात्या राव की ,जिनका जन्म 28 मई 1883 को प्रातः 10 बजे नासिक जिले के भंगुर ग्राम में हुआ था।इनके पिता का नाम दामोदर राव पंत और माता का नाम राधाबाई सावरकर था। इनके एक बड़े भाई बाबा गणेश राव सावरकर थे। वीर विनायक दामोदर सावरकर दूसरे नंबर पर थे । तीसरे नंबर पर इनकी एक बहन मैना बाई थी । सबसे छोटे भाई बाल नारायणराव सावरकर दांतों के डॉक्टर थे। जब विनायक 9 वर्ष के थे तभी माता जी का देहांत हो गया था और जब मात्र 16 वर्ष के थे तो इनके पिता जी का देहावसान हो गया था । इसके बाद इनके पालन पोषण का जिम्मा इनके बड़े भाई बाबा गणेश ने उठाया । इनकी शादी यमुनाबाई सावरकर से हुई थी। इनके एक पुत्र विश्वास और एक पुत्री प्रभात चिपलुणकर हुई ।
विनायक दामोदर सावरकर ने लंदन के ग्रेज इन विधि विद्यालय से 1909 में विधि ( बैरिस्टर ) की परीक्षा उत्तीर्ण की पर उसका प्रमाण पत्र उन्हें कभी नहीं मिला l उसका कारण था उपाधि ग्रहण करते समय एक शपथ पत्र पर ब्रिटिश संविधान के प्रति स्वामी भक्ति का वचन देना होता था और हस्ताक्षर करने होते थे और सावरकर ने ऐसा करने से मना कर दिया । बैरिस्टर की यही उपाधि मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, कैलाश नाथ काटजू , भूलाभाई देसाई , सर तेज बहादुर सप्रू , जिन्ना और महात्मा गांधी जैसे लोगों ने भी शपथ पत्र पर अंग्रेजी संविधान और महारानी के प्रति अपनी स्वामी भक्ति के पत्र पर हस्ताक्षर करके ही पाई थी।
सावरकर ने लंदन में बैरिस्टरी करते हुए इंडिया हाउस को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया हुआ था। अंग्रेजों ने अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति को गदर का नाम दिया , उसे नकारते हुए वीर सावरकर ने इसे स्वातंत्र्य समर नाम से गौरवान्वित किया । एक जुलाई उन्नीस सौ नौ को इनके एक साथी मदन लाल ढींगरा ने विलियम कर्जन वायली को गोली मार दी, जिस पर इन्होंने लंदन टाइम्स में एक लेख लिखा। इससे कर्जन वायली की हत्या की योजना में शामिल होना मानकर और पिस्तौल भारत भेजने के आरोप में इन्हें 13 मई 1910 को लंदन में गिरफ्तार कर लिया गया । 8 जुलाई 1910 को मोरिया नामक जहाज से भारत लाते हुए आप बाथरूम के रास्ते से भाग निकले , पर पकड़े गए और इन्हें 24 दिसंबर 1910 को प्रथम बार आजीवन कारावास की सजा दी गई। इसके बाद नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के षड्यंत्र में 31 जनवरी 1911 को दोबारा आजीवन कारावास की सजा दी गई और अंडमान की सेल्यूलर जेल में भेज दिया गया। सेल्यूलर जेल में इनके साथ बड़ा अमानवीय व्यवहार किया गया। हाथ पैर गले में बेड़ियाँ ड़ाली गयी। कोल्हू में बैल की तरह जोता गया। जेल के बाहर लगे जंगल और दलदली भूमि और पहाड़ी क्षेत्र को समतल करवाया गया। खाने को भोजन तक नहीं दिया जाता था रोज पीटा जाता था। सावरकर जुलाई 1911 से मई 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। ब्रिटिश इतिहास और भारत के इतिहास में यह पहले व्यक्ति थे जिसे दो दो बार आजीवन कारावास की सजा दी गई । आजीवन कारावास की दूसरी सजा पर आपने जज से कहा चलो आपने भारत के पुनर्जन्म की बात को तो स्वीकार किया।
1921 में पोर्ट ब्लेयर जेल से रिहा होने के बाद उन्हें 3 साल तक जेल में रखा गया जिस दौरान इन्होंने हिंदुत्व पर एक शोध ग्रंथ लिखा । अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष भी बने।नागपुर विद्यापीठ ने 23 अगस्त 1943 को वीर सावरकर को उनके साहित्यिक सेवाओं के लिए पीएचडी की उपाधि से विभूषित किया था l
आप भारत के दो टुकड़े किए जाने के प्रबल विरोधी थे और अखंड भारत के पक्षधर थे। गांधी जी का और सावरकर बन्धुओं का यूं तो आपसी संपर्क रहता था पर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधी जी का और सावरकर का दृष्टिकोण एकदम अलग था। सावरकर ने भारत विभाजन का विरोध किया था। सावरकर बीसवीं सदी के सबसे बड़े हिंदूवादी नेता थे और यही कारण है कि आज की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियां वीर सावरकर को हिंदूओं का समर्थक होने के कारण , उनकी अंग्रेजों से माफी का मुद्दा बनाकर जो कि सावरकर ने सरदार बल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर एक योजनाबद्ध तरीके से रिहा होकर स्वतंत्रता संग्राम को तेज करने के लिए लिखा था , को देशद्रोही कहते है।
वीर सावरकर ऐसे प्रथम क्रांतिकारी थे जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने गांधी जी की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाकर मुकदमा चलाया और उनके निर्दोष शामिल होने पर उनसे माफी मांगी थी ।
वीर सावरकर ने 1 फरवरी 1966 से मृत्युपर्यंत व्रत करने का निर्णय लिया और 26 फरवरी 1966 को मुंबई में भारतीय समय अनुसार प्रातः 10 बजे अपना पार्थिव शरीर छोड़ दिया l इस प्रकार उन्होंने मृत्यु के लिए भारतीय जैन परंपरा संथारा या संल्लेखना का मार्ग अपनाया,इससे पता लगता है सावरकर का अध्ययन कितना गहन था। आइए हिंदुत्ववादी सावरकर को याद करें जाति भेद , अगड़ा- पिछड़ा, अमीर गरीब भूल कर सभी एक हिन्दुत्व की राह पर चलें राष्ट्र को शक्तिशाली बनाये यही वीर सावरकर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी l 

(अतिवीर जैन पराग-विनायक फीचर्स)

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*(लेखक पूर्व उपनिदेशक, रक्षा मंत्रालय हैं।)*

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