बिन्दुखत्ता में भव्य कलश यात्रा के साथ श्रीमद्भागवत कथा शुरु

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बिन्दुखत्ता/ संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा से पूर्व आज बिन्दुखत्ता के इंदिरा नगर द्वितीय में भव्य कलश यात्रा निकाली गयी सैकड़ों की संख्या में मातृ शक्ति की अगुवाई में निकाली गई यह यात्रा आध्यात्म जगत की यादगार यात्रा रही इस यात्रा में जहां सैकड़ों मातृ शक्तियों के सिरों पर कलश शुसोभित थे वही भक्तजनों की लम्बी कतार नाचकर प्रभु की कृपा का यशोगान कर रहे थे
बिन्दुखत्ता के इंदिरा नगर द्वितीय निवासी गिरीश चंद फुलारा के निवास स्थान पर आज श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का शुभारम्भ हो गया है इससे पूर्व निकाली गयी कलश यात्रा भव्यता का केन्द्र रही कलश यात्रा ने यहाँ स्थित हाट कालिका मंदिर में भक्तों की टोली के साथ उपस्थिति दर्ज करायी इसके पश्चात् सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का शुभारंभ किया गया।
यहाँ फुलारा आवास पर आयोजित कथा का शुभारम्भ प्रसिद्ध कथा वाचक पण्डित मनोज कृष्ण जोशी ने अपनी मधुर वाणी से किया इस अवसर पर उन्होनें कहा जीवन में कभी भी श्रीमद् भागवत कथा श्रवण का अवसर मिले तो अवश्य ग्रहण करें व महापुण्य के भागी बनें। इसका श्रवण अभयत्व को प्रदान करने वाला है।श्रीमद भागवत कथा की यह महिमां बताते हुए उन्होनें कहा श्रीमद् भगवत कथा सुनने से जीवन को मुक्ति मिलती है। और आनन्द का संचार होता है।उन्होनें कहा भागवत जीवन का सार है व कलियुग का कल्प वृक्ष, जो हमें जीवन जीने की सरल व अलौकिक राह प्रदान करता है।व अभयता प्रदान करता है। जीवन का ज्ञान श्रीमद्भागवत कथा से ही प्रकट होता है।

 

इस अवसर पर श्रीमती गंगा देवी, गिरीश फुलारा, महेश फुलारा, ललित फुलारा गोविंद, बल्लभ फुलारा, कैलाश जोशी, ललित जोशी, मुकेश जोशी, बिना जोशी, जगदीश पंत, संजय भट्ट, गिरीश जोशी, खिलाफ सिंह दानू, दीपक जोशी, दीपक पाठक, पूरन धारियाल, जगमोहन जोशी व समस्त फुलारा परिवार समेत सैकड़ों की संख्या में भक्तजन उपस्थित रहे।

उल्लेखनीय है कि हिन्दू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है, तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है। बड़े अनुष्ठान यज्ञ यागादि में पुत्रवती सधवा महिलाएँ बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती हैं। उस समय सृजन और मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है।यह क्लश यात्रा की सबसे बड़ी बात है। समुद्र मंथन की कथा काफी प्रसिद्ध है। समुद्र जीवन और तमाम दिव्य रत्नों और उपलब्धियों का आपार केन्द्र है।इसी से क्लश की लम्बी कथा जुड़ी है

कलश का पात्र जलभरा होता है। जीवन की उपलब्धियों का उद्भव आम्र पल्लव, नागवल्ली द्वारा दिखाई पड़ता है। जटाओं से युक्त ऊँचा नारियल ही मंदराचल है तथा यजमान द्वारा कलश की ग्रीवा (कंठ) में बाँधा कच्चा सूत्र ही वासुकी है। यजमान और ऋत्विज (पुरोहित) दोनों ही मंथनकर्ता हैं। पूजा के समय प्रायः उच्चारण किया जाने वाला मंत्र स्वयं स्पष्ट है
कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिता
अर्थात्‌ सृष्टि के नियामक विष्णु, रुद्र और ब्रह्मा त्रिगुणात्मक शक्ति लिए इस ब्रह्माण्ड रूपी कलश में व्याप्त हैं। समस्त समुद्र, द्वीप, यह वसुंधरा, ब्रह्माण्ड के संविधान चारों वेद इस कलश में स्थान लिए हैं। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि जहाँ इस घट का ब्रह्माण्ड दर्शन हो जाता है, जिससे शरीर रूपी घट से तादात्म्य बनता है, वहीं ताँबे के पात्र में जल विद्युत चुम्बकीय ऊर्जावान बनता है। ऊँचा नारियल का फल ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का ग्राहक बन जाता है। मंगल कलश वातावरण को दिव्य बनाती है।सभी धार्मिक कार्यों में कलश का बड़ा महत्व है। यज्ञ, अनुष्ठान, भागवत यज्ञ आदि के अवसर पर सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है।

यहां यह भी गौरतलब है,धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश की स्थापना की जाती है। नवरा‍त्रि के दिनों में मंदिरों तथा घरों में कलश स्थापित किए जाते हैं तथा मां दुर्गा की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है।भागवत कथा से पूर्व निकाली गई कलश यात्रा के दर्शन से प्राणी के रोग,शोक,दुख,दरिद्रता एंव विपदाओं का हरण हो जाता है

कलश पर लगाया जाने वाला स्वस्तिष्क का चिह्न चार युगों का प्रतीक है। यह हमारी चार अवस्थाओं, जैसे बाल्य, युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था का प्रतीक है

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार मानव शरीर की कल्पना भी मिट्टी के कलश से की जाती है। इस शरीररूपी कलश में प्राणिरूपी जल विद्यमान है। जिस प्रकार प्राणविहीन शरीर अशुभ माना जाता है, ठीक उसी प्रकार रिक्त कलश भी अशुभ माना जाता है

यही कारण है। कलश में दूध, पानी, पान के पत्ते, आम्रपत्र, केसर, अक्षत, कुंमकुंम, दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प, सूत, नारियल, अनाज आदि का उपयोग कर पूजा के लिए रखा जाता है। इसे शांति का संदेशवाहक माना जाता है। बिन्दुखत्ता के फुलारा जी के आवास पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा वाचन से पूर्व धर्म,आध्यात्म,शांति का यही संदेश आज निकाली गई कलश यात्रा में दिया गया

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