ये है सोर की भगवती

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आध्यात्म की विराट भूमि पिथौरागढ़ की पावन चोटी में स्थित माँ उल्का देवी का दरबार आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है ,इस देवी के दरबार में पहुंचकर जो अद्भुत आनंद की प्राप्ति होती है उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है यहां से चारों ओर की छटाओं के मनोहारी दर्शन होते है दूरदराज क्षेत्रों से भी भक्तजन यहां पहुंचकर माता उल्का देवी के चरणों में अपने आराधना के श्रद्धा पुष्प अर्पित करके माँ से मनौती मांगते हैं कहा जाता है कि माता उल्का देवी के दरबार में माँ से की गई मनोती अवश्य पूर्ण होती है जरुरत है सिर्फ श्रद्धा विश्वास की 10 महाविद्याओं में एक माँ पीतांबरी के भक्तजन इन्हें माँ पीतांबरी का स्वरुप मानकर माँ उल्का देवी की बड़े ही निष्ठा और श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करते हैं

कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण गोरखोंओ ने किया यह देवी पिथौरागढ़ की रक्षक देवी के रुप में भी पूजित है अर्थात् यहां की रक्षा करती है ऊँचे पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर का नजारा काफी भव्य है पिथौरागढ़ मुख्यालय से एक किमी की दूरी पर चंडाक जाने वाले मार्ग पर यह दरबार स्थित है खासतौर से सेरा गाँव के लोगों की यहां विशेष श्रद्वा बतायी जाती है यहाँ का जीर्णोद्वार भी यहाँ के मेहता परिवार द्वारा किया गया था मंदिर के पुजारियों द्वारा नित्य ही यहाँ पूर्ण रीति रिवाज के साथ प्राचीन काल से चली आ रही पूजन परम्पराओं का निवर्हन किया जा रहा है पाण्डे गांव के पुनेठा लोगों द्वारा यहां पूजा-अर्चना का कार्य किया जाता है

चैत के महिने लगने वाले चैतोल के उत्सव पर यहां विशेष उत्सव होता है. इस मंदिर के पिथौरागढ़ शहर में बहुत मान्यता है. यहां प्रत्येक वर्ष नवरात्रि के अवसर पर भंडारे का आयोजन भी किया जाता है  पवित्र पहाड़ी के सिखर पर स्थित इस मंदिर के मुख्य मंदिर के दोनों और शेर की मूर्तियां लगीं हैं सीढ़ियों के शानदार सफर के बाद माॅ के भव्य दर्शन होते है

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