देवराहा बाबा के परम स्नेही थे स्वामी सिद्वनाथ रहस्य रोमांच व श्रद्वा का अनूठा संगम : सोनपथरी

ख़बर शेयर करें

सोनपथरी/श्रावस्ती। आस्था व ओज की धरती सोनपथरी सौंदर्यं की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है इस क्षेत्र का भ्रमण करते हुए जो आध्यात्मिक अनूभूति होती है वह अपने आप में अद्भूत है ।पर्यटन की दृष्टि से भी यह भूभाग महत्वपूर्ण है यहां का भ्रमण श्रेष्ठ एंव सन्तोष प्रदान करने वाला है।यह क्षेत्र अपने आप में असीम प्राकृतिक सौदर्य समेटे हुए बरबस पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।धर्म दर्शन और अध्यात्म के साधक यहां आकर मनोशांति प्राप्त करते है। अटूट आस्था की धरती सोन पथरी से अनेकों दंतकथाये जुड़ी हुई है।एक बार यहां आकर आगन्तुक सदा के लिए सोन पथरी को हृदय में बसा कर अमिट यादें लेकर लौटता है।

नेपाल सीमा पर रमणीक सौदर्यशाली पर्वतमालाओं के मध्य सोनपथरी आश्रम अनेकों सिद्व सन्तों की तपोभूमि के रुप में प्रसिद्व रही है।दूर दराज इलाकों से भक्तजन यहां आते जाते रहते है।बियावान जंगलों के मध्य स्थित इस आश्रम के चारों ओर भातिं भांति के वृक्ष वन्यजीर्वों की चहलकदमी का नजारा प्रकृति प्रेमियों को आपार सकून प्रदान करता है।यहां की शान्त वादियों में साधक अपनी साधना की गति को नई ऊंचाइयो की ओर ले जाते है समुद्र तट से लगभग ढाई हजार फिट की ऊंचाई पर स्थित इस मनभावन आश्रम की महिमा भी अलौकिकता व दिव्यता को अपनें आंचल में समेटे हुए है। इस पावन स्थल के दर्शन हेतु जहां बनारस,बलरामपुर,बहराइच,विहार, उत्तराखण्ड़ सहित देश के अनेक हिस्सो से लोग यहां पधारते है वही पड़ौसी देश नेपाल से भी भक्तों का यहां आना जाना लगा रहता है मार्ग की जटिलता के बावजूद उत्साह के साथ लोग सोनपथरी आश्रम की रमणीकता व महत्ता से यहां खीचें चले आते है।यदि इस स्थान तक आवागमन की सुविधा व बेहतर मार्ग का निर्माण हो जाएं तो यह आश्रम आध्यात्मिक जगत में काफी लोकप्रियता की ऊंचाइंयों को छू सकता है।
नेपाल की सीमा में स्थित सोनपथरी आश्रम में समय समय पर राजनितिक क्षेत्र से जुड़ी हस्तियों का आना जाना भी लगा रहता है।लेकिन यहां का सुधलेवा कोई नजर नहीं आता है।वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी जन भी यहां दर्शनार्थ आते जाते रहते है।फिर भी यह क्षेत्र उपेक्षा का दशं झेल रहा है।आश्रम से कुछ ही दूरी पर नेपाल की सीमा आरम्भ हो जाती है
यहां वन देवी का प्राचीन मदिरं भी स्थित है।जिसके दर्शन बड़े ही फलदायी माने जाते है।

इस पावन स्थल तक पहुचनें के लिए श्रावस्ती जिला मुख्यालय से सिरसिया होते हुए लोग यहां आते है।श्रावस्ती से यह दूरी लगभग40 किलोमीटर के आसपास है।सिरसिया से10 किमी की दूरी पर सोनपथरी है।बहराइच से यहां भिनगा सिरसिया होते हुए भी पहुच सकते है।बहराइच से भिनगा की दूरी36 किमी व भिनगा से सिरसिया 24 किमी एंव सिरसिया से सोनपथरी 10 किमी की दूरी पर है।यहां के वियावान वन नयनाभिराम दृश्य के लिए काफी प्रसिद्व है। अक्सर इन वन क्षेत्रों में आवागमन के दौरान वन्य जीव जन्तुओं के दर्शन होते रहते है।आश्रम के पास बहनें वाली नदी जिसे पापनाशिनी गंगा के नाम से पुकारा जाता है।लोग इसमें स्नान कर पुण्य के भागी बनतें है।

सोनपथरी का आश्रम सदियों से आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम रहा है।यह आश्रम महान् सिद्व संत सन्यासी सिद्वनाथ जी की तपोभूमि के रुप में प्रसिद्व है।बाबा सिद्धनाथ जी के बारे में कहा जाता है कि वे दिव्य व अलौकिक चमत्कारिक शाक्तियों के ज्ञाता थे लोककल्याण ही उनका उद्वेश्य था दस महाविद्याओं में से एक माता तारा के वे अनन्य उपासक थे सदैव ही लोगों को सन्मार्ग की प्रेरणा देने वाले सिद्वनाथ जी सीता राम की भी अनन्य भक्ति किया करते थे आज भी उनके आदेशानुसार उनके भक्तजन आश्रम प्रांगण में नियमित रुप से प्रातः काल व सायंकाल के समय सीता राम का निरंतर जाप करते है।माँ वनदुर्गा के प्रति भी उनके हृदय में गहरी निष्ठा थी आश्रम परिसर में नदी के उस पार स्थित वनदेवी का प्राचीन मंदिर बाबा सिद्वनाथ की माँ के प्रति अटूट भक्ति की निशानी है।स्थानीय वासिदों का कहना है।देवी के इस मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई मनौती अवश्य पूर्ण होती है।जो कोई भी यहां आकर वनदेवी के चरनों में पवित्र भावनाओं के साथ आराधना के श्रद्वापुष्प अर्पित करता है।वह परम सम्मान का भागी बनता है।बाबा के प्रति परम आस्था रखने वाले भक्त सत्यदेव बाजपेयी बताते है।कि इस आश्रम की स्थापना लगभग1960 के दशक में सन्यासी बाबा श्री सिद्वनाथ जी के द्वारा की गई थी।बाबा के बारे में वे बताते है कि वे फतेहपुर के शिवराज पुर के रहने वाले थे तथा अन्धें थे।इस गाँव में एक बार घूमते हुए महायोगी बाबा वन विहारी जी पहुचें उन्होनें इनके माता पिता से भगवान की सेवा के लिए इन्हें मांग लिया माता पिता ने बाबा की निश्छलता देखकर उन्हें बताया कि ये अन्धें है किस प्रकार ईश्वर की सेवा कर सकतें है इस पर वन विहरी बाबा बोले में ईश्वरीय इच्छा से ही यहां आया हूँ यह सुनकर स्वामी सिद्वनाथ जी के हृदय में अनायास ही उनके प्रति श्रद्वा का सैलाब उमड़ आया उन्होने तत्काल बाबा के चरण छुए बाबा ने उनके सिर पर हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद देते हुए अपना शिष्य बनाया सिद्वनाथ जी के सर पर बाबा का हाथ पड़ते ही उन्हें सब कुछ दिखाई देने लगा इस चमत्कारिक घटना के पश्चात् माता पिता से आज्ञा व आशीर्वाद लेकर बाबा सिद्वनाथ अपने गुरु वन विहारी की शरणागत हो गये बताते है कि उसी क्षण वन विहारी बाबा जी सिद्वनाथ जी को अपने कधें पर बिठाकर वायु मार्ग से सीधे अमरकंटक ले गये वहां उन्हें दीक्षा दी इस घटना के चार वर्ष पश्चात् वनविहारी जी शरीर त्यागकर दिव्य लोक को प्रस्तान कर गये।अपने गुरु की इच्छानुसार वे टहलते हुए लगभग 60 के दशक में सोनपथरी नामक इस स्थान पर पहुचें व इस स्थल को अपनी साधना का केन्द्र बनाया।कहा जाता है स्वामी सन्यासीं सिद्वनाथ जी ने अपने गुरु की कृपा से यहां महाविद्याओं के साथ साथ वन देवी की साधना की इन साधनाओं के प्रताप से वे अलौकिक सिद्धियों के स्वामी बने सोनपथरी क्षेत्रं के वनों में द्रोणपुत्र अश्वत्थामा के आवागमन की दंत कथायें भी प्रचलित है।कहा जाता है कि वे अक्सर बाबा जी से मिलनें यहां आते जाते रहते थे।मान्यता है कि सोनपथरी नामक इसी आश्रम में स्वामी सिद्वनाथ जी को रामभक्त हनुमान जी ने भी दर्शन देकर कृतार्थ किया था।इस बारें में कहा जाता है,कि इस वियावान क्षेत्र में एक जर्जर वट वृक्ष के नीचे बैठे एक बार स्वामी जी सीताराम,सीताराम के जापधुन में मग्न थे तभी राम भक्त हनुमान जी ने उन्हें दर्शन दिए और चांदी के गिलास से वटवृक्ष की जड़ पर दूध की धारा प्रवाहित की और यह वृक्ष हरा भरा हो गया जिसकी छाव पर बैठकर भक्तजन आज भी प्रेम के साथ समय समय पर सीताराम का जाप कर अपना जीवन धन्य करते है।आश्रम परिसर में स्थित इस वटवृक्ष के दर्शन को महाफलदायी माना गया है।कहा जाता है कि जब मनुष्य के महासौभाग्य का उदय होता है तब उसे इसकी छांव में बैठनें का सौभाग्य प्राप्त होता है।इसी वृक्ष के एक ओर सिद्वनाथ जी की समाधी है जिसके दर्शनों हेतु देश विदेश से श्रद्वालुजन यहां आते है।तथा अद्धितीय अनुपम उपहार के रुप में आशीर्वाद स्वरूप बभूति ले जाते है।दूसरी ओर यहां रहनें वाले महात्मा जनों की कुटिया बगल में भण्डारशाला है जहां पर प्रतिदिन दर्जनों की संख्या में भक्तजन प्रसाद ग्रहण करते है।आगन्तुकों के विश्राम के लिए भी छोटी कुटिया बनी है गायों के लिए गौशालाएं बनी है।हाल के दिनों में आश्रम परिसर में सौर ऊर्जा लाइट की व्यवस्था की गई है।स्वामी सिद्वनाथ जी के प्रति *🌹प्रसिद्ध संत देवराहा बाबा जी का भी गहरा स्नेह था।बताते है कि वे समय समय पर बाबा जी से दिव्य रुप में सवांद करते थे । उल्लेखनीय है कि देवराहा बाबा भारत के महान संतो में एक थे।समूचे विश्व में उनकी ख्याति है।वे विराट सिद्धियों के स्वामी थे।उनकी उम्र कितनी थी इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नही है उत्तरप्रदेश के देवरिया में देवरहा बाबा नाम से प्रसिद्ध योगी के बारे में माना जाता है कि देवरहा बाबा 250 साल तक जीवित रहे।कुछ का मानना है कि वे 500 तो कुछ मानते है कि वे 900 साल तक इस बसुंधरा पर रहे कहा तो यहां तक जाता है कि देवराहा बाबा ने आजीवन अन्न ग्रहण नही किया। बताते है कि

यह भी पढ़ें 👉  दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद दर्शन

बाबा देवराहा ने मई 1990 में देह का परित्याग किया परन्तु बाबा जी का जन्म कब और कहां हुआ इस बारे में कुछ भी ज्ञात नही है।उन्हें एक बार में कई स्थानों पर दर्शन देने की विलक्षण क्षमता थी।
बाबा देवरहा के बारे में कहा जाता है कि उनको कहीं भी आवागमन की विशेष सिद्धि प्राप्त थी इसी सिद्धी के बल पर वे कही भी प्रकट हो जाया करते थे।वे एक मचान पर बैठकर पांव से आशीर्वाद देते थे।बड़ी बड़ी राजनितिक हस्तियां इनके दरबार में आशीर्वाद लेने के लिए ललायित रहती थी।ऐसे महान् संत का परम स्नेह स्वामी सिद्वनाथ जी के प्रति था।इससे सहज में ही अदांजा लगाया जा सकता है कि स्वामी सिद्वनाथ वास्तव में कितने महान संत थे। सन्यासीं स्वामी सिद्वनाथ जी ने वर्ष 1993 में 115 वर्ष की उम्र में देह का परित्याग किया उनके अनुनायी बताते है देह त्याग से दो वर्ष पूर्व उनका स्वभाव बच्चों जैसा हो गया था।भक्तजन इस अवस्था को गुणातीत से पार की अवस्था मानते थे।जिसे ब्रह्मनिष्ठ अवस्था कहते है।इस अवस्था को प्राप्त करने के बाद मनुष्य मात्र 18 दिन तक धरती पर रहता है।इस अवस्था को पाने के बाद वे मात्र तेरह दिन धरती पर रहे इस स्थान पर जल की उत्पत्ति उनका ही प्रताप माना जाता है।इन्हें भोजन भी कुदरती रुप से प्राप्त होता था

यह भी पढ़ें 👉  अनुमति मिलते ही नगर पंचायत लालकुआं करवाएगी 300 से 400 गौवंश के लिए शेड का निर्माण ,क्षेत्र को मिलेगी निराश्रित गौवंश से निजात

आस्था,भक्ति, का अलौकिक संगम सोनपथरी आश्रम अद्भूत रहस्यों को अपने आप में समेटे हुए है इस आश्रम से जुड़े हुए भक्तजन बताते है कि कभी कभार मध्यरात्री के आसपास वियावान पहाड़ियों से हारमोनियम बजने की आवाज के साथ सीताराम सीताराम की धुन सुनाई पड़ती है।मणीधारी नागराज के पूर्व में यहां लोगों को दर्शन भी हुए है।वन देवी के पास स्थित दो समाधीनुमा स्थान आज भी महान् रहस्यों को अपने आप में समेटे हुए है।सिद्व साधकों को इस क्षेत्र में रात्रिकाल में हवा में तैरते दीपकों के दर्शन भी होते है।पहले यहां पर गिने चुने भक्त ही मार्ग की जटिलताओं को पार करके यहां तक पहुंचते थे।लेकिन धीरे धीरे नेपाल की इस सीमा क्षेत्रं में
सशस्त्र सीमा सुरक्षा बल की 62वीं बटालियन की स्थापना के बाद से मार्ग थोड़ा सुगम हुआ व भक्तों की आवाजाही बढ़ी।लोग अपने अपने साधनों से यहां पहुंचनें शुरू हुए।अब यहां पहुचनें वाले भक्तों की तादात बढ़ते जा रही है।आश्रम के मुख्य व्यवस्थापक स्वामी हरिशरणानन्द महाराज यहां पधारने वाले भक्तजनों को भक्ति व ज्ञान की शिक्षा देते है उनका मृदृल व्यवहार सभी लोगों का मन मोह लेता है।जो एक बार यहां आ जायें तो अपने साथ स्वामी जी के स्नेह की मधुर यादें लेकर लौटता है।स्वामी हरिशरणानन्द जी का मानना है कि परोपकार से बढ़कर कोई धर्म नही है।इसलिए सदा ही दूसरों के हित की बात सोचनी चाहिएं।वे कहते है कि मानव जीवन का उद्वेश्य परमात्मा को प्राप्त करना है

ग्राम बरगादही बहराइच के प्रसिद्ध सत्यसाधक विजेन्द्र पाण्डेय’गुरुजी’ ने इस स्थान को अपनी साधना का केन्द्र बनाया है।समय समय पर वे यहां साधना करते रहते है।यहीं से वनदेवी व सिद्वनाथ का आशीर्वाद लेकर वे हिमालयी भूभाग में भी समय समय पर साधना करने आते है। इस पावन धरती के गर्भ में आपार सम्पदा का भण्डार होने का अंदेशा भी लोगों को है।
सोनपथरी वह क्षेत्रं है। जहां हरियाली का अखण्ड साम्राज्य है। प्राचीन समय में ऋषि-मुनियों ने इन्हीं वनों से आच्छादित घने वृक्षों के नीचे बैठकर परम-तत्व के साथ आत्मसात किया। वनदेवी की यह पावन भूमि पुरातन काल से पूज्यनीय मानी जाती है।मान्यता है,कि यहां पर वन देवी परम शक्ति के रूप में विराज मान है।वनों एंव वन देवियों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य श्री अखिलेश चमोला कहते है। वनों में तरह-तहर की देवियां निवास करती हैं। जिन्हें हमारी लोक प्रचलित भाषा में ‘बन-देवी’ के नाम से जाना जाता है जिनका स्मरण करने मात्र से ही सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ण हो जाती है। वन देवियों की उत्पत्ति किस तरह से हुई? इस संदर्भ में कई तरह की जनलोक कथाएं सुनने को मिलती हैं। कहा जाता है कि ‘त्रेता युग’ में रावण ने शिव भगवान से वर प्राप्ति के लिये कठोर तपस्या की। अपना सब कुछ शिव भगवान को अर्पित किया। शेष कुछ न रहने पर अन्ततः अपनी सुंदर अलौकिक दिव्य कन्याओं को भी शिव भगवान को समर्पित कर दिया। ये दिव्य कन्यायें ही ‘वन देवी’ के रूप में प्रकटित हुई। इन कन्याओं ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की अराधना की। शिव भगवान इनकी तपस्या से खुश होकर इन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिये। कहा तुम जो चाहो वह दान मुझसे मांग सकते हो। मैं तुम्हारी निष्ठा व तपस्या से खुश हूं। इन देवियों ने कहा- हे प्रभु आप तीनों लोकों के स्वामी हैं, आपसे कोई भी बात अछूती नही है। हमने मनुष्य रूपी काया त्याग दी है। अब आपके पास ही आ गये हैं। आपको जो भी वर उचित प्रतीत होता है उसे आप हमें दें, हम उसे सहर्ष रूप से स्वीकार करेंगी, तब महादेव जी ने कहा कि तुम मृत्युलोक की विभिन्न दिशाओं में जाओं वहां किसी को किसी तरह से कष्ट मत देना। जन समुददाय में तुम्हारी पूजा वन देवियों के रूप में होगी।वन देवियों के संदर्भ में
दूसरी कथा इस तरह से है, दागुड़ा गांव में एक रावत परिवार रहता था। उसकी सात सुंदर अद्वितीय बहिनें थी, एक दिन ये घास लेने के लिये नदी पार अपने खेत में गये। सहसा भयंकर आंधी तूफान आने लगा। चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा दिखने लगा। ये घबराने लगी। तभी एकाएक हुणियां नाम की दैवीय शक्ति इनके प्राणों को हर लेती है। ये अंछरी बन जाती हैं। इस प्रकार अंछरिया ही ‘बन देवी’ का पर्याय बन गयी। इन देवियों को सुन्दरता की प्रतिमूर्ति के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि हर कन्या को शादी से पहले और बाद में इन देवियों का पूजन करना अनिवार्य होता है। यदि संयोगवश या भूलवश इन देवियों की पूजा न की जाय तो ये सुन्दरता को कुरूपता में बदल देती हैं। जिसे ‘छाया’ के नाम से जाना जाता है। इन्हें सुंदर लाल रंग की व चमकीले रंग की वस्तुएं प्रिय लगती हैं। सुंदर स्त्री व पुरूष पर अपना प्रभाव जल्दी दिखाती हैं। इनकी पूजा न करने से दाम्पत्य जीवन कलुषित हो जाता है। परस्पर वैमनस्यता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जीवन में संकट के बादल आने शुरू हो जाते हैं। संतान प्राप्ति में भी बाधा आ जाती है, यश की जगह पर अपयश मिलना शुरू हो जाता है। भाद्रपद मास में इन देवियों की पूजा की जाती है। कुछ जगह इन्हें नचाया भी जाता है।

यह भी पढ़ें 👉  सूबे में एनसीसी विस्तार को केन्द्र सरकार ने दी मंजूरी एनसीसी कैडेट के साढ़े सात हजार नये पदों पर होगी भर्ती

कुछ विद्वानों ने मण्डलस्थ देवताओं में षोड्स मातृकाऐं भी वन देवी के रूप में माना है। उनका मानना है कि ये देवियां कुमारी के स्वरूप में जानी जाती हैं। हर प्रकार के मांगलिक कार्यों में इन देवियों का समरण करने से सभी प्रकार की विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं। कार्य सिद्वि एवं कल्याणक की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में षोड्श मातृकाओं के नामों को इस प्रकार से स्पष्ट किया गया है-
*गौरी पदमा शची मेधा सावित्री विजयी जया*
*देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोकमातर*ः।।
धृतिः पुस्टिस्तथा तुष्टिरात्मनः कुलदेवताः।
गणेशेनाधिकार ह्वेता पूज्याश्र्च षोड़श।।
अर्थात गौरी, पद्मा, शची, मेधा, सावित्री, विजया, जया, देवसेना, स्वधा, स्वाहा, मातायें, लोकमातायें, धृति, पुष्टि, तुष्टि तथा स्वकीय कुलदेवता, ये षोड़श मातृकाएं हैं। इनका बिना ‘वन देवी’ का आवाह्न नहीं किया जाता है। ‘वन देवियों’ के साथ इनका पूजन करना भी जरूरी माना गया है। वन देवियों की महिमां अनन्त है।दुर्गा सप्तशती में भी वनदुर्गा का नाम आया है।सोनपथरी में स्थित वन दुर्गा का दरबार सदियों से पूज्यनीय है। श्रावस्ती जिले में स्थित सोनपथरी पर्यटन एंव तीर्थाटन दोनों ही दृष्टियों से आगन्तुकों का मन मोहनें में सक्षम है।जिले में इसके अतिरिक्त अनेकों तीर्थ सदियों से यहां पधारने वाले लोगों के आस्था का केन्द्र रहे है।

इस जिले का मुख्यालय भिन्गा है ।जो एक सामान्य शहर हैं। यह जिला पहले बहराइच जनपद में था।बौद्वधर्म के महापुरुष भगवान बुद्व की भी यह साधना भूमि रही है।उनके यादों की अमिट निशानी बोध वृक्ष पावन आस्था का केन्द्र है।इकौना, हरिहरपुररानी, गिलौला, जमुनहा व सिरसिया यहां के प्रमुख केन्द्र है ।राजा श्रावस्त इस नगरी का वर्णन जहां महाभारत में भी मिलता है वही भगवान श्री राम के पुत्र लव से भी इसकी गाथा जुड़ी हुई है।जो गहन सोध का विषय है। श्रावस्त के नाम पर बसी श्रावस्ती बौद्ध एवं जैन दोनों का महातीर्थ है।अचिरावती नदी जिसे राप्ती नदी कहते है।इस क्षेत्र से होकर बहने वाली पावन नदी है।इस नदी के तट पर भी साधक साधना व हवन करते है।साधना की पावन भूमि श्रावस्ती का सोनपथरी व जनपद के अन्य स्थल आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है

Ad
Ad Ad Ad Ad
Ad