व्यंग्य :विस्फोट करती अबला चिड़ियाएं

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कभी किसी ने कोई कविता लिखी थी, कि चिड़िया बम नहीं बनाएगी, मुझे वह चिंतन कभी नहीं भाया, तर्क हो या कुतर्क मैंने प्रतिप्रश्न किया कि क्यों नहीं बनाएगी चिड़िया बम ? फिर चिड़िया को बम बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ेगी, जैसे प्रश्न पर मंथन किया तथा प्रत्युत्तर में कविता लिखी गई, कि चिड़िया बम भी बनाएगी और विस्फोट भी करेगी। समाज में असहिष्णुता इतनी बढ़ गई है, कि क्रोध, आक्रोश सातवें आसमान पर रहता है। तनिक सा कोई बात बुरी लगी नहीं, कि आक्रोश की अभिव्यक्ति करने में संकोच नहीं किया जाता। नाजुक कलाई कब किसी पर रिवाल्वर तान कर खुद को वीरांगना सिद्ध कर दे, इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता।
यूँ तो इतिहास में अनेक वीरांगनाओं के क़िस्से नारी की शौर्य गाथा सुनाते रहे हैं। वीर माता जीजा बाई की शौर्य गाथा से लेकर देशभक्त पन्ना धाय की बलिदानी कथा तक व स्वतंत्रता संग्राम में महारानी लक्ष्मीबाई के अंग्रेजों से युद्ध करने की कहानी से लेकर शहीद भगत सिंह की दुर्गा भाभी के स्वतंत्रता संग्राम में दिए योगदान तक अनेक अध्याय देश में नारियों के सबला होने के प्रमाण प्रस्तुत करते रहे हैं ।भले ही मध्ययुगीन व्यवस्था में नारी को अबला मानकर प्रताड़ित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी जाती रही हो तथा पुरुष प्रधान समाज की बर्बरता को दृष्टिगत करते हुए कवि मैथिलि शरण गुप्त यह लिखने के लिए विवश हो गए हों, कि – “अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी आँचल में है दूध और आँखों में पानी।” उस समय शायद यह पता नहीं था, कि युग से साथ अबला भी सबला बनकर अपने उत्पीड़न का गिन गिन कर हिसाब लेगी। वह अपनी शौर्य गाथा लिखकर यह सिद्ध करेगी कि वह अबला नहीं चिंगारी है, जिसे छूने की गलती करने से भस्म होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। समाज में आजकल समाज को पुरुष प्रधान कहना नारियों का अपमान है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में सीएनजी पेट्रोल पंप पर ऐसी ही एक वीरांगना की शौर्यगाथा प्रकाश में आई है, जिसमें वीरांगना ने पेट्रोल पंप के कर्मचारी पर इसलिए रिवाल्वर तान दिया, क्योंकि कर्मचारी ने सुरक्षात्मक दृष्टि से गैस रिफिल करने से पहले उनसे अनुरोध किया था कि वे सपरिवार कार से बाहर आ जाएं। यह नारी की शौर्यगाथा व दबंगई का एक अकेला किस्सा नहीं है। डिजिटल युग में कैमरे की नजरों में यदा कदा ऐसी घटनाएं कैद हो ही जाती हैं। जो समाज में आ रहे परिवर्तन का बोध कराती हैं। बरसों पहले वीरांगनाओं की शौर्य गाथाएं अधिक प्रचलन में थी। ऐसी दबंगई को सम्मानित दृष्टि से देखा जाता है। दो दशक पहले एक वीरांगना में अपने विवाह स्थल पर जयमाला के समय दूल्हे पर दहेज़ का लालची होने का आरोप लगाते हुए बेइज्जत किया था। दूल्हे को जेल की हवा खिलवाई थी, उसका करियर चौपट करके समूचे देश में उसे बदनाम किया था तथा स्वयं का देश भर में सार्वजनिक अभिनंदन कराया था। बाद में उस वीरांगना की सच्ची कहानी जब सबके सामने आई तो सभी ने अपने दांतों तले ऊँगली दबाई, कि उसने किसी अन्य के प्रेम प्रसंग में किसी की भावनाओं से खिलवाड़ किया था। भले ही कुछ कहे, यह जागृति है। अबला अपनी कमजोरी से उबर चुकी है। वह किसी भी स्थिति में किसी से कम नहीं है। सामाजिक रिश्ते नाते और उनकी मर्यादा आखिर वह कब तक ढोती। उसका भी तो स्वतंत्र अस्तित्व है। वह आखिर कब तक दहेज़ के लिए अग्निदाह को अपनी नियति मानती। कब तक पुरुष के हाथों अपने शरीर को लहूलुहान होते हुए देखती। आखिर कब तक चुप बैठती, कब तक अबला बनी रहती। अब उसने भी सबला का रूप धारण कर लिया है। वह कभी मुस्कान बनकर क्रूर अट्टहास करती है, कभी सोनम बनकर अपने पति को मौत के घाट उतारने में सहायक बनती है। उसकी प्रेरणा से अनेक मुस्कान और अनेक सोनम अपनी मनमानी करने के लिए स्वच्छंद हो गई हैं। यदि आज के दौर में मैथिली शरण गुप्त होते तो उन्हें अपनी कविता की पंक्तियाँ बदलने के लिए अवश्य विवश होना पड़ता। और यह कहते कि सबला जीवन सफल तुम्हारी यही कहानी, चेहरा है अति क्रूर रचता नित नई कहानी।

(सुधाकर आशावादी -विनायक फीचर्स)

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*(विनायक फीचर्स)*

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