वैशाली में निकाली गई भव्य कलश यात्रा के बाद शतचण्ड़ी महायज्ञ शुरु

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कलश यात्रा का फल अश्वमेघ यज्ञ के समान: भुवन चन्द्र त्रिपाठी कलश यात्रा के दर्शन से मिलता है महापुण्य : बसन्त बल्लभ त्रिपाठी
गाजियाबाद/ वैशाली में माँ भद्रकाली मंदिर के आचार्य योगेश पन्त के आवास पर आयोजित शतचण्डी महायज्ञ से पूर्व भव्य कलश यात्रा निकाली गयी सैकड़ों की संख्या में मातृशक्ति की अगुवाई में निकाली गई यह यात्रा आध्यात्म जगत की यादगार यात्रा रही।
इस यात्रा में जहां सैकड़ों मातृशक्तियों के सिरों पर क्लश शुसोभित थे।वही सैकड़ों की संख्या में भक्तजन नाचकर प्रभु की कृपा का यशोगान कर रहे थे।
इस यज्ञ के मुख्य यज्ञाचार्य भुवन चन्द्र त्रिपाठी ने कहा हिन्दू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है, तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है। बड़े अनुष्ठान यज्ञ यागादि में पुत्रवती सधवा महिलाएँ बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती हैं। उस समय सृजन और मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है।यह क्लश यात्रा की सबसे बड़ी बात है। समुद्र मंथन की कथा काफी प्रसिद्ध है। समुद्र जीवन और तमाम दिव्य रत्नों और उपलब्धियों का आपार केन्द्र है।इसी से क्लश की लम्बी कथा जुड़ी है।
कलश का पात्र जलभरा होता है। जीवन की उपलब्धियों का उद्भव आम्र पल्लव, नागवल्ली द्वारा दिखाई पड़ता है। जटाओं से युक्त ऊँचा नारियल ही मंदराचल है तथा यजमान द्वारा कलश की ग्रीवा (कंठ) में बाँधा कच्चा सूत्र ही वासुकी है। यजमान और ऋत्विज (पुरोहित) दोनों ही मंथनकर्ता हैं। पूजा के समय प्रायः उच्चारण किया जाने वाला मंत्र स्वयं स्पष्ट है कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिता।’
अर्थात्‌ सृष्टि के नियामक विष्णु, रुद्र और ब्रह्मा त्रिगुणात्मक शक्ति लिए इस ब्रह्माण्ड रूपी कलश में व्याप्त हैं। समस्त समुद्र, द्वीप, यह वसुंधरा, ब्रह्माण्ड के संविधान चारों वेद इस कलश में स्थान लिए हैं। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि जहाँ इस घट का ब्रह्माण्ड दर्शन हो जाता है, जिससे शरीर रूपी घट से तादात्म्य बनता है, वहीं ताँबे के पात्र में जल विद्युत चुम्बकीय ऊर्जावान बनता है। ऊँचा नारियल का फल ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का ग्राहक बन जाता है। मंगल कलश वातावरण को दिव्य बनाती है।सभी धार्मिक कार्यों में कलश का बड़ा महत्व है। यज्ञ, अनुष्ठान, भागवत यज्ञ आदि के अवसर पर सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है।
प्रसिद्ध यज्ञाचार्य व भागवताचार्य श्री बसंत बल्लभ त्रिपाठी ने कहा धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। देवी पुराण के अनुसार माँ भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश की स्थापना की जाती है। नवरा‍त्रि व महायज्ञों में मंदिरों तथा घरों में कलश स्थापित किए जाते हैं तथा माँ दुर्गा की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है।भागवत कथा अन्य कथाओं व यज्ञों से पूर्व निकाली गई
कलश यात्रा के दर्शन से प्राणी के रोग,शोक,दुख,दरिद्रता एंव विपदाओं का हरण हो जाता है कलश पर लगाया जाने वाला स्वस्तिष्क का चिह्न चार युगों का प्रतीक है। यह हमारी चार अवस्थाओं, जैसे बाल्य, युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था का प्रतीक है
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार मानव शरीर की कल्पना भी मिट्टी के कलश से की जाती है। इस शरीररूपी कलश में प्राणिरूपी जल विद्यमान है। जिस प्रकार प्राणविहीन शरीर अशुभ माना जाता है, ठीक उसी प्रकार रिक्त कलश भी अशुभ माना जाता है।
यही कारण है। कलश में दूध, पानी, पान के पत्ते, आम्रपत्र, केसर, अक्षत, कुंमकुंम, दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प, सूत, नारियल, अनाज आदि का उपयोग कर पूजा के लिए रखा जाता है। इसे शांति का संदेशवाहक माना जाता है।
आचार्य योगेश पन्त के आवास पर आयोजित शत चण्ड़ी महायज्ञ से पूर्व धर्म,आध्यात्म,शांति का यही संदेश वैशाली में निकाली गई कलश यात्रा में दिया गया

इस अवसर पर संत श्री सर्वेश्वर गिरी महाराज प्रसिद्ध वैष्णव संत स्वामी मोहनाचार्य योगाचार्य मोहन सिंह बिष्ट मुख्य यजमान श्रीमती जानकी पंत श्रीमती ज्योति पंत श्री योगेश पंत श्रीमती हिमानी पंत श्री धीरज पंत श्रीमती मीना जोशी श्री चन्द्र प्रकाश जोशी श्रीमती हर्षिता जोशी श्री रोहित जोशी काव्यांश श्रीमती गिरिजा उप्रेती श्री बसन्त बल्लभ उप्रेती अंकित श्रीमती ममता पंत श्री भुवन चन्द्र पंत देवांश सौर्याश रिद्विम् रिलिका पंत गुंजन पंत सहित अनेकों मौजूद रहे
यज्ञ आदि आध्यात्मिक कार्यक्रम यहाँ प्रसिद्ध विद्वान भुवन चन्द्र त्रिपाठी मोहन चन्द्र त्रिपाठी जगदीश चन्द्र कोठारी महेश लखचौरा योगेश जोशी मनोज काण्डपाल नन्दन परगाई हरीश परगाई गणेश चन्द्र पत सहित अनेको मौजूद रहे

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