गणाई गंगोली(पिथौरागढ़)
भगवान शिव के अखंड उपासक, हनुमान जी के परम भक्त, बाबा नीम करोली महाराज जी के शिष्य, अक्षय चमत्कारों के भण्डार,हिमालयी भूमि के महान् संतो में एक,युगों- युगों तक जिनकी कीर्ति का गायन इस वशुंधरा में होता रहेगा। जो सदैव अपनें भक्तों के हृदय रुपी मन्दिर में विराजमान होकर दिव्य रुप से उनका मार्ग दर्शन करते रहेगें। जिनकी कृपा अचल स्वरुप से सदा ही भक्तों पर विराजती है,गंगावली एंव नागभूमि के देवालयों के प्रति जिनके हृदय अखण्ड़ प्रीति थी। हिमालय के ऐसे दुर्लभ महायोगी संत श्री ऋषिकेश महाराज जी सदैव स्मरणीय रहेगें हालांकि बीते कुछ वर्ष पूर्व 101 वर्ष की आयु में नश्वर देह का परित्याग कर दिव्यलोक को किया प्रस्तान कर चुके ऋषिकेश महाराज जी बाबा नीम करौरी महाराज की भांति ही अलौकिक सिद्वियों के स्वामी थे
हिमालय भूमि में जन्में ऐसे महान् संत सिरोमणी ब्रह्मलीन श्री ऋषिकेश महाराज जी आध्यात्मिक गुणों के अक्षय भण्ड़ार थे। अपनें जीवनकाल में धर्म की ध्वज पताका को नई ऊचाईयाँ प्रदान करनें वाले परम श्रद्वेय महाराज जी महाज्ञानी संतो में एक थे, उनका सहज अंदाज बरबस ही भक्तों के लिए एक वरदान स्वरुप था। सनातन धर्म में जब जब सत्य व धर्म की रक्षा के लिए संतों के योगदान की चर्चा होती रहेगी, तब तब महान् युग पुरुष तपोनिष्ठ आध्यात्मिक जगत के अलौकिक महापुरुष ब्रहमलीन संत परम पूज्य ऋषिकेश गिरी महाराज जी का परम श्रद्वा के साथ स्मरण किया जाता रहेगा
और इनका स्मरण भक्तों में आध्यात्मिक ऊर्जा का नया संचार करेगा।और हम सभी का मार्गदर्शन भी गणाई गंगोली क्षेत्र के हनुमान मंदिर पहुंचकर जब श्रद्वालुजन जब बाबा के श्रीचरणों में अपने आराधना के श्रद्वा पुष्प अर्पित करेंगे तब सहज में ही याद आऐगे ऋषिकेश गिरी महाराज, उनका निर्मल, निष्ठामय, कर्तव्यमय, सादगी भरा जीवन, क्षमा, व दया की प्रतिमूर्ति, मर्यादा के महान् रक्षक, महान् गौ भक्त, एक आत्मनिष्ठ, निष्काम कर्मयोगी, आध्यात्म जगत की जितनी भी उपमाएं है वे सब उनमें झलकती थी, लोग उनसे मिलकर अपने सौभाग्य की सराहना करते थें, उनका दर्शन उनकी वाणी जीवन के कई अनसुलझी गुत्थियों को बरबस ही सुलझा देती थी। जो सच्चे हदय से उनके निकट आकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करता था, वह ज्ञान की नई अनुभूतियां पाकर अपने जीवन को धन्य समझता था पूज्य गुरुदेव जी की कृपा का वर्णन शब्दों में नही किया जा सकता है, उनकी कृपा निष्कंटक जीवन यात्रा के लिए बहुत बड़ा वरदान है*
शरीर तो सभी का जाता है चाहे अवतारी पुरुष हो या अन्य कोई एक दिन सभी काल के इस चक्र में व्यतीत हो जाते है, लेकिन महापुरुष जिस सच्चाई को लेकर चलते है, वो तीनों कालों तक रहने वाली सच्चाई है, उसका कभी अन्त नही होता ब्रहमलीन ऋषि गिरी महाराज जी भी ऐसी ही सच्चाई के साथ थे आत्मा की अमरता व शरीर की नश्वरता से वे अपने भक्तों को सजग कर सदैव कर्तव्य पथ पर चलने की प्ररेणा दिया करते थे, आजीवन शिव व शक्ति के साथ हनुमान जी की आराधना एवं भक्ति में तल्लीन रहकर उन्होनें सनातन धर्म की जो सेवा की उसे शब्दों में नही समेटा जा सकता है
नीम करौली महाराज जी के शिष्य ब्रह्मलीन संत ऋषिकेश गिरी महाराज जी को कोटि-कोटि प्रणाम* ///// रमाकान्त पन्त////
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