पोखरी गाँव में बदहाल प्रमुख राज्य आन्दोलनकारी स्व०निर्मल पंडित का घर, बृद्व माँ खा रही दर – दर की ठोकर

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पिथौरागढ़, उत्तराखंड की धरती में माता महाकाली के आंचल गंगावती के पोखरी गांव निवासी स्वर्गीय श्री निर्मल पंडित की 25 वीं पुण्य तिथि पर उनका राज्य के अनेक क्षेत्रों में भावपूर्ण स्मरण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई लेकिन हैरत की बात यह है राज्य आन्दोलनकारियों में सबसे प्रमुख रहे निर्मल पंडित के परिवार की आज तक किसी ने सुध नहीं ली उनकी बृद्ध माता की गहन पीड़ा की ओर किसी भी सरकार का ध्यान नहीं गया

उल्लेखनीय है कि राज्य आन्दोलन के पुरोधा रहे पिथौरागढ़ निवासी मूल रूप से पोखरी गाँव के निवासी स्व० निर्मल पण्डित ने पृथक उत्तराखण्ड राज्य के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी थी।
राज्य को बने दो दशक से भी अधिक समय बीत चुका है। पृथक राज्य के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले बलिदानी वीर को अपेक्षित सम्मान आज तक नहीं मिल पाया।
हर सरकार द्वारा राज्य आन्दोलन में शहीद हुए नागरिकों को उचित सम्मान देने तथा उनके परिजनों का ध्यान रखने को लेकर बड़ी बड़ी बातें की जाती रही, बहुत से आन्दोलनकारीयों को सम्मान मिला भी है, लेकिन निर्मल जैसे महान पुरोधा के बलिदान को आज तक भुलाया जाता रहा है।

धामी सरकार से राज्य प्रेमियों को उम्मीद थी कि उनकी 25वीं पुण्य तिथी पर बलिदानी निर्मल पण्डित के सम्मान में अवश्य कुछ घोषणाएं होंगी, लेकिन इस बार भी निराशा ही हाथ लगी।
यहां यह बताते चलें कि पृथक राज्य के लिए प्राणों की आहूति देने वाले निर्मल पण्डित की माँ तभी से बेसहारा हो गयी थी। किसी सरकार ने एक लाचार- बीमार माँ की कभी सुध लेने की जरूरत नहीं समझी। वर्तमान में निर्मल की माँ हल्द्वानी में अपनी पुत्री के घर में रहकर किसी तरह जीवन जी रही है। उम्र के अन्तिम पड़ाव में उनकी लाचारी को समझा जा सकता है। क्या धामी सरकार निर्मल की माँ की कोई खैर खबर लेगी, यह एक बड़ा सवाल है। पृथक राज्य निर्माण के लिए महासंघर्ष करते हुए शराब विरोध में अपनी जान गंवा देने वाले स्व० निर्मल पंडित ने ऐसे राज्य की परिकल्पना तो कभी नहीं की होगी जहाँ आज शराब से संस्कृति खतरें में है

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उत्तराखण्ड के जनसरोकारों से जुडे मुद्दों पर आवाज बुलंद करके सरकार को हिलानें वाले महान् क्रान्तिकारी छात्र नेता स्व० निर्मल जोशी ” पण्डित” उत्तराखंड की बुलंद आवाज थे 1994 के राज्य आन्दोलन के दौर में जब वह सिर पर कफन बांधकर आन्दोलन में कूदे तो आन्दोलन को विराट गति मिली
जनपद पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट तहसील के अन्तर्गत 1970 में पोखरी गांव में जन्में स्व० पण्डित वर्ष 1991 में पहली बार पिथौरागढ महाविद्यालय में छात्रसंघ के महासचिव चुने गये थे कर्म निष्ठा के बल पर वे लगातार तीन बार इस पद पर रहे बाद में पिथौरागढ़ छात्र संघ अध्यक्ष भी रहे
अपने जीवन काल में निस्वार्थ भाव से जन सेवा में सलग्न रहे प्रमुख राज्य आन्दोलनकारी की उपेक्षा सोचनीय
है शराब माफिया, खनन माफियाओं को जिन्होनें हिलाकर रक्खा वह निर्मल पण्ड़ित ही थे माँ महाकाली के ऑचल गंगोलीहाट के, पोखरी गांव में श्री ईश्वरी प्रसाद जोशी व श्रीमती प्रेमा जोशी के घर 1970 में जन्मे निर्मल की भावनाएं राज्य के प्रति बड़ी ही निर्मल थी शराब मुक्त राज्य का सपना देखने वाले निर्मल का सपना हालांकि सपना ही बनकर रह गया लेकिन उनकी विराट सोच आज भी लोगों के हृदय में आदरणीय रूप से अंकित है वर्ष 1993 में नशामुक्ति अभियान के तहत उन्होने एक सेमिनार का आयोजन भी किया था

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निर्मल पंडित को अपने गांव पोखरी के अलावा अपने नैनिहाल चिटगल से भी विशेष लगाव था समय-समय पर वहां आकर वे युवाओं के साथ संवाद कायम करते थे यहां उन्हें पप्पू दा के नाम से ख्याति प्राप्त थी और राज्य के भीतर इनका इतना जबरदस्त प्रभाव था कि प्रशासन के बड़े – बड़े अधिकारी इनके सामने आने को कतराया करते थे राज्य आन्दोलन के समय समानान्तर सरकार का गठन किया गया था, जिसका नेतृत्व स्व० निर्मल पण्डित अर्थात् पप्पू दा के हाथों मे ही था वे जिला पंचायत सदस्य भी रहे थे शराब माफियायों और अवैध खनन माफियाओं के खिलाफ उन्होने जो मुहिम चलायी थी वह आज भी लोगों के जेहन में तरोताजा है 27 मार्च 1998 को नशा मुक्त उत्तराखण्ड के लिए शराब के ठेकों के खिलाफ अपने पूर्व घोषित आन्दोलन के अनुसार उन्होने आत्मदाह किया जिसमें वे बुरी तरह झुलस गये थे पिथौरागढ में कुछ दिनों के इलाज के पश्चात् उन्हें दिल्ली ले जाया गया जहाँ आज ही के दिन 16 मई 1998 को जिन्दगी मौत के बीच झूलते हुए अंततोगत्वा वे दिव्य लोक को प्रस्थान कर गए उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी वृद्ध माता की सुध लेने वाला आज तक कोई भी नहीं दिखा वर्तमान भाजपा सरकार व उसके मुखिया भी इस मामले में गंभीर नजर नहीं आए हैं

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