भद्रकाली के गुप्त रहस्य

ख़बर शेयर करें

 

*सप्तम देवी कालरात्रि स्वरुपा माँ भद्रकाली*
धर्म की रक्षा तथा अर्धम के विनाश के लिए देवी समय समय पर विभिन्न रुपों में अवतार धारण करती है।अर्धमियों के आतंक से त्राहिमाम होकर जब जब भक्तों ने ईश्वर को पुकारा है। तब परमपिता परमात्मा ने शक्ति का रुप धारण कर जगत का कल्याण किया है। ऐसे ही कल्याण की देवी परम शक्ति माँ जगदम्बा की उत्पत्ति ईश्वरीय स्वरुप का ममतामयी रुप है। माँ के इस रुप में अनेक देवी देवताओं की शक्ति समाहित है। माँ श्री दुर्गा भवानी की सांतवी मूर्ति देवी माँ कालरात्रि का प्रगटीकरण सातवीं नवरात्रि को हुआं। देवी का यह स्वरुप पावन को भी पावन करनें वाला है। जो सदैव ही अपनें भक्तों पर कल्याण की वर्षा करती है। प्राचीन काल में इस बसुंधरा में महिषासुर, शुम्भ, निशुम्भ जैसे महाभयानक दैत्यों ने जन्म लेकर पृथ्वी पर तांडव मचाना शुरु कर दिया तीनों लोकों में हाहाकार मच गया राक्षसी प्रवृतियां हावीं होनें लगी अधर्म के बोलबाले से धर्म इस धरा से गायब होने लगा। सर्वत्र राक्षसी प्रतृत्तियों का बोल बाला होने लगा। यज्ञ, दान, परोपकार, धर्म, दया, क्षमा जैसे यशस्वी गुण अस्त होनें लगे दैत्यों के बढ़ते अत्याचार से बचाने के लिए साक्षात् जगदम्बा कालरात्रि के रुप में प्रकट हुई। जो कल्याण की देवी के रुप में सर्वत्र पूज्यनीय है।जिनकी शरण में भक्तजन आनन्दित व देवसमुदाय अभयता की छांव में रहता है। मातेश्वरी काली माँ का यह नाम उनके शक्ति के कारण पड़ा है। जो सबको मारने वाले काल की भी रात्रि है अर्थात् काल को भी पल भर में समाप्त करनें की शक्ति रखती है। काल की विनाशिका होने से देवी के इस मंगलमयी स्वरुप का नाम काल रात्रि पड़ा। काल का अर्थ समय से है और समय को भी काल के रूप में जाना जाता है। जिसका अर्थ मृत्यु से है। काल जो सभी को एक दिन अपना ग्रास बना लेता है। उससे भी महाभयानक शक्ति का स्रोत माँ काली हैं। जिनके सम्मुख दैत्य क्या? साक्षात् काल! भी नतमस्तक है। वही माँ काली सर्वस्वरुपा रुप से इस संसार की रक्षा करती है। और अपने श्रद्धालु भक्तों को आनन्द प्रदान करती है। दुर्गा के इस सातवें रूप को कालरात्रि के नाम से जाना जाता है जो इस संसार में आदि काल से परम पूज्यनीय है। माँ का यह रुप दुष्टों के लिए जितना बिकराल है। भक्तों के लिए उतना ही निर्मल है। माँ की चार भुजाएं जिसमे दाहिने हाथ में ऊपर वाला हाथ वर मुद्रा धारण किए हुए जो संसार में भक्त लोगों को उनकी इच्छा के अनुसार वरदान देता है तथा नीचे वाला अभय मुद्रा धारण किए हुए लोगों को निर्भय बना रहा है। बांये हांथ में ऊपर वाले हाथ में कटार और नीचे वाले में लोहे का काटा नुमा अस्त्र धारण किए है। इनके बाल घने काले और बिखरे हुए रौद्र रूप में दिखाई देते हैं। और तीन आंखें हैं, जो अत्यंत भयंकर व अतिउग्र और ब्रह्माण्ड की तरह ही गोलाकार है जिसमें बादल की विजली की तरह ही चमक हैं, यह घने काले अंधकार की तरह प्रतिभासित हो रही है। इनकी नासिकाओं सांस से अग्नि की अति भयंकर ज्वालाएं निकल रही है। कालि रात्रि के गले में दिव्य तेज की माला शोभित हो रही है इनकी अर्चना से सभी प्रकार के कष्ट रोग दूर होते है कालि रात्रि की पूजा स्तुति नवरात्रि के सातवें दिन करने का विधान है। इन्हें भद्रकाली, दक्षिण काली, मातृ काली व महाकाली भी कहा जाता है। इनका यह प्रत्येक रूप नाम समान रूप से शुभ फल देने वाला है, जिससे इन्हें शुभंकारी भी कहते हैं। अर्थात् भक्तों का सदा शुभ करने वाली हैं। दुर्गा सप्तशती में महिषासुर के बध के समय माँ भद्रकाली की कथा का विराट वर्णन मिलता है। कि युद्ध के समय महाभयानक दैत्य समूह देवी को रण भूमि में आते देखकर उनके ऊपर ऐसे बाणों की वर्षा करने लगा, जैसे बादल मेरूगिरि के शिखर पर पानी की धार की बरसा रहा हो। तब देवी ने अपने बाणों से उस बाण समूह को अनायास ही काटकर उसके घोड़े और सारथियों को भी मार डाला। साथ ही उसके धनुष तथा अत्यंत ऊॅची ध्वजा को भी तत्काल काट गिराया। धनुष कट जाने पर उसके अंगों को अपने बाणों से बींध डाला। और भद्रकाली ने शूल का प्रहार किया। उससे राक्षस के शूल के सैकड़ों टुकड़े हो गये, वह महादैत्य प्राणों से हाथ धो बैठा।
इसी प्रकार चण्ड और मुण्ड के वध के लिए माँ विकराल मुखी काली प्रकट हुई। जिसकी कथा के कुछ अंश इस प्रकार हैं ऋषि कहते हैं – तदन्तर शुम्भ की आज्ञा पाकर वे चण्ड -मुण्ड आदि दैत्य चतुरंगिणी सेना के साथ अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित हो चल दिये। फिर गिरिराज हिमालय के सुवर्णमय ऊॅचे शिखर पर पहॅंचकर उन्होंने सिंह पर बैठी देवी को देखा। उन्हें देखकर दैत्य लोग तत्परता से पकड़ने का उद्योग करने लगे। तब अम्बिका ने उन शत्रुओं के प्रति बड़ा क्रोध किया। उस समय क्रोध के कारण उनका मुख काला पड़ गया। ललाट में भौंहें टेढ़ी हो गयीं और वहाँ से तुरंत विकराल मुखी काली प्रकट हुई, जो तलवार और पाश लिये हुए थी। वे विचित्र खट्वांग धारण किये और चीते के चर्म की साड़ी पहने नर-मुण्डों की माला से विभूषित थीं। उनके शरीर का मांस सूख गया था। केवल हड्यिों का ढ़ाचा था, जिससे वे अत्यंत भंयकर जान पड़ती थी। उनका मुख बहुत विशाल था, जीभ लपलपाने के कारण वै और भी डरावनी प्रतीत होती थीं। उनकी आंखें भीतर को धॅसी हुई और कुछ लाल थीं, वे अपनी भयंकर गर्जना से सम्पूर्ण दिशाओं को गुंजा रही थी। बड़े-बड़े दैत्यों का वध करती हुई वे कालिका देवी बड़े बेग से दैत्यों की उस सेना पर टूट पड़ीं और उन सबको भक्षण करने लगीं।
*माँ भद्रकाली के मंत्र*
माँ काल रात्रि भद्रकाली माता के अनेकों उपयोगी मंत्र यथा स्थान संबंधित ग्रथों में उपलब्ध होते हैं। जिसमें प्रत्येक मंत्र का अपना महत्व है। जिसमें विभिन्न प्रकार के भय, शत्रु भय, जल भय, रोग भय आदि को दूर करने के मंत्र है। माँ अपने श्रद्धालु भक्तों को सभी वांछित वस्तुएं प्रदान करने वाली हैं। जो इस प्रकार है।
*दंष्ट्राकरालवदने शिरोमालाविभूषणे । चामुण्डे मुण्डमथने नारायणि नमोऽस्तु ते* ।।
*या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः*।।
*काल रात्रि में भद्रकाली पूजन का महात्म्य*
माँ भद्रकाली के काल रात्रि के महात्म्य को दुर्गा सप्तशती व देवी भागवत के अनेक स्थानों पर वर्णित किया है। भक्तों को अभय देने व विभिन्न प्रकार के भयों से मुक्ति देने वाली भद्रकाली की पूजा का बड़ा ही महात्म्य है। अतः श्रद्धालुओं को वैदिक रीति द्वारा अनुष्ठान व व्रत का पालन करते हुए माँ कालरात्रि भद्रकाली की पूजा श्रद्वापूर्वक करनी चाहिए।

Ad
Ad Ad Ad Ad
Ad