वैदिक घड़ी (विक्रमादित्य वैदिक घड़ी) विश्व की पहली ऐसी घड़ी है जो भारतीय पंचांग (पारंपरिक कालगणना प्रणाली) के आधार पर समय प्रदर्शित करती है। यह उज्जैन के जंतर-मंतर वेधशाला परिसर में एक 85 फुट ऊंचे टावर पर स्थापित है । यह घड़ी भारत की खगोलीय विरासत को पुनर्जीवित करने का प्रतीक है। भारत की खगोलीय इस विरासत को पुनर्जीवित करने का काम मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव कर रहे हैं। वह इस घड़ी को प्रचलन में लाने के लिए भी लगातार प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने इस घड़ी की प्रतिकृति भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सहित अन्य मंत्रियों और प्रमुख लोगों को भेंट भी की है।
वैदिक घड़ी का सिद्धांत सूर्य से समय का निर्धारण पर आधारित है। वैदिक घड़ी दो सूर्योदयों के बीच के समय को 30 भागों (मुहूर्त) में विभाजित करती है। प्रत्येक मुहूर्त 48 मिनट का होता है, इस प्रकार एक दिन 24 घंटे के बजाय 30 “वैदिक घंटों” का होता है ।
*स्थानीय सूर्योदय आधारित*
यह घड़ी जीपीएस द्वारा वर्तमान स्थान के सूर्योदय के समय के आधार पर स्वतः समय की गणना करती है ।
*गतिशील समय प्रणाली*
मौसम के अनुसार सूर्योदय का समय बदलने से वैदिक घड़ी का दिनांक और तिथि भी स्वतः समायोजित हो जाती है ।
*वैदिक अंक प्रणाली*
संख्याओं का दार्शनिक अर्थ – वैदिक घड़ी में 1 से 12 तक के अंकों को परंपरागत संस्कृत नामों से प्रदर्शित किया गया है, जो हिंदू दर्शन के प्रतीक हैं ।
उज्जैन भारत की खगोलीय राजधानी है। यह कर्क रेखा (Tropic of Cancer) और शून्य देशांतर रेखा के काल्पनिक प्रतिच्छेदन पर स्थित है। 18वीं सदी तक यह भारत की मानक समय रेखा मानी जाती थी ।
*उज्जैन की जंतर-मंतर वेधशाला*
1724 में महाराजा जयसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित यह वेधशाला खगोलीय गणनाओं का केंद्र थी। वैदिक घड़ी इसी परिसर में स्थापित है ।
*पंचांग का स्रोत*
विक्रम संवत और विक्रम पंचांग का प्रकाशन उज्जैन से होता है, जो इसके खगोलीय महत्व को रेखांकित करता है ।
*परंपरा और टेक्नोलॉजी का समन्वय*
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के प्रयासों से मध्यप्रदेश में परंपरा और टेक्नोलॉजी को समन्वित करने केप्रयास किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में उज्जैन की इस वैदिक घड़ी को भी आधुनिकीकृत किया गया है।
*मोबाइल एप्लिकेशन*-“विक्रमादित्य वैदिक घड़ी” नामक ऐप प्ले स्टोर पर उपलब्ध है, जो वास्तविक समय में तिथि, मुहूर्त, नक्षत्र और ग्रहों की स्थिति दर्शाता है ।
वैदिक घड़ी के पृष्ठभूमि में प्रत्येक घंटे द्वादश ज्योतिर्लिंग, राशि चक्र और नासा से प्राप्त खगोलीय घटनाओं (जैसे सूर्य ग्रहण) की छवियाँ प्रदर्शित होती हैं ।
*वेधशाला एकीकरण* -टावर पर लगे टेलीस्कोप के माध्यम से रात्रि में खगोलीय घटनाएँ देखी जा सकती हैं।
*इससे मुहूर्त भ्रम दूर होगा* -सामान्य लोग अब तीज-त्योहारों की तिथियाँ, शुभ मुहूर्त और चौघड़िया बिना ज्योतिषियों पर निर्भर हुए स्वयं जान सकते हैं ।
*शिक्षा का साधन*- यह घड़ी भारत की प्राचीन खगोलीय उन्नति को दर्शाती है, जहाँ सूर्य सिद्धांत के आधार पर सटीक गणनाएँ की जाती थीं ।
*पर्यटन आकर्षण का केंद्र* – यह घड़ी उज्जैन में एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन गई है, जो भारत की वैज्ञानिक विरासत को वैश्विक पहचान दे रही है ।
यह समय के साथ सभ्यता की यात्रा है। वैदिक घड़ी केवल एक यंत्र नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक स्मृति और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का जीवंत प्रमाण है। यह हमें याद दिलाती है कि जब पश्चिम में ग्रीनविच की अवधारणा भी नहीं थी, तब उज्जैन के खगोलशास्त्री सूर्य की गति से समय निर्धारित कर रहे थे। आधुनिक तकनीक से युक्त यह घड़ी हमारी भावी पीढ़ियों को प्रेरित करेगी कि वे अपनी विरासत पर गर्व करें और उसे नवीन रूपों में सँवारें । सूर्य का स्पंदन ही इसकी टिक-टिक है, और ब्रह्मांड का ज्ञान इसकी सुईयाँ हैं। वैदिक घड़ी भारत की वैज्ञानिक चेतना का पुनर्जागरण है।
(विवेक रंजन श्रीवास्तव-विनायक फीचर्स)










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