दतिया क्षेंत्र में स्थित तारा माता का मन्दिर एक ऐसा मनभावन स्थल है जहाँ पहुंचकर सांसारिक मायाजाल में भटके मानव को अलौकिक शान्ति का अहसास होता है दस महाविद्याओं में माता तारा परम पूजनीय है माना जाता है जो भी प्राणी इनकी शरणागति में रहता है वह समस्त व्याधियों से मुक्त रहता है
दतिया शहर माता पीताम्बरी की नगरी के नाम से प्रसिद्ध है लेकिन इस शहर के आसपास अनेकों पावन तीर्थ स्थलों की श्रृंखलाएं मौजूद है इन्ही स्थलों में माता तारा का मन्दिर पर्वत की चोटी में स्थित है
साधकों के लिए यह स्थान बड़ा ही उपयोगी माना जाता है खासतौर से तंत्र साधना के लिए समय- समय पर साधक यहाँ आते व जाते रहते है खासतौर से यहाँ रात्रि कालीन साधना का विशेष महत्व बतलाया जाता है नवरात्रियों के अवसर पर भक्त दूर दूर से यहां दर्शनों करने को आते हैं मान्यता है माता तारा के इस दरबार में मांगी गई मनौती कभी निष्फल नहीं होती है दस महाविद्याओं में दूसरी महाविद्या के रूप में पूजनीय तारा माता के यूं तो देश भर में अनेकों मंदिर हैं लेकिन दतिया क्षेत्र में स्थित में तारा माई की महिमां अद्वितीय व निराली कही गयी है यहां का विहंगम दृश्य बड़ा ही मनोहारी है शहर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर जंगलों के मध्य स्थित इस मंदिर की शोभा बरबस ही यहां आने वाले आगन्तुकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है इन्हें नील सरस्वती कहकर भी भक्तजन पुकारते है
घोररूपे महारावे सर्व संत्रु भंयकरि रूप में भी भक्तजन इनकी स्तुति करते है
इस यात्रा के भ्रमण के दौरान स्थानीय पुजारियों ने बताया माता पीताम्बरी के परम भक्त देवी पीतांबरा पीठ के पीठाधीश्वर स्वामी जी महाराज ने पंचम कवि की टोरिया नामक इस स्थान पर देवी तारा माता के विग्रह की लोक मंगल की कामना के साथ श्री यन्त्र पर देवी की स्थापना करवायी समय-समय पर इस स्थान पर अनेकों विराट अनुष्ठान आयोजित हुए जागृत तारापीठ के नाम से इसकी ख्याति तंत्र साधकों के बीच में विशेष रूप से प्रसिद्ध हुई आज देश भर के अनेकों भक्त व साधक काफी संख्या में यहां पहुंचते हैं
यहां यह भी बताते चलें कि दतिया में स्थित पंचम कवि की टोरिया के नाम से यह स्थान भैरव जी का प्राचीन स्थल है पौराणिक गाथाओं को अपनें आंचल में समेटे बाबा भैरव की इस पावन मनभावन स्थली से पर्वत के चारों ओर का वातावरण बड़ा ही सुरभ्य लगता है भैरव बाबा के सानिध्य में ही माता तारा विराजमान है तारा माँ के मंदिर में पहुंचने के लिए लगभग 200 सीढ़ियों को पार करना पड़ता है
देश में तारा माई के प्रसिद्ध मन्दिरों में बंगाल का मन्दिर प्रमुख मन्दिरों में एक है यह देश के 51 शक्ति पीठों में परम पूजनीय है
पश्चिम बंगाल के बीरभूमि जिले में स्थित यह तारापीठ, माँ तारा की पूजा करने के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहां तांत्रिक जन सिद्धि प्राप्त के लिए साधनारत रहते है ऐसी मान्यता है कि यहाँ माता सती की आंख गिरी थी जिस कारण यहाँ पीठ की स्थापना की यह देवी वशिष्ठ ऋषि की तपोभूमि भी कही जाती है माता तारा की अनेक गाथायें पुराणों में मिलती है इन्हें काली का स्वरूप माना गया है भगवान विष्णु के मोहिनी रूप के समय भी इनका प्राकटय माना जाता है भगवान शिव के हलाहल विष के प्रभाव को माता तारा ने ही कम किया था
बारहाल महाभारत कालीन गाथाओं को अपनें आँचल में समेटे दतिया के तारा माई का मन्दिर एक अलौकिक स्थल है यहाँ स्थित शिवालय भी परम आस्था का केन्द्र है
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