हमारे देश में ऋतुओं को ध्यान में रखकर जीवन शैली, त्यौहार और परंपराएँ बनायी गयी हैं। श्रावण मास, वर्षा ऋतु का प्रतीक है। इस मास की अमावस्या को “हरियाली अमावस्या” कहते हैं। यह पर्व भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण, लोक आस्था और आध्यात्मिक चेतना का एक सुंदर संगम है। हरियाली अमावस्या केवल पर्व नहीं, प्रकृति से आत्मीय संबंध का उत्सव है।
“हरियाली” शब्द से ही स्पष्ट है कि यह पर्व प्रकृति की हरियाली, हरितिमा और उसकी समृद्धि का उत्सव है। श्रावण की अमावस्या को “हरियाली अमावस्या” इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इस समय खेतों, जंगलों और बाग-बगीचों में हरियाली ही हरियाली होती है। परंपरा के अनुसार इस दिन वृक्षारोपण, नदी-तालाबों की पूजा, देवी-देवताओं के पूजन और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कई काम किए जाते हैं। इस दिन शिव, पार्वती और नागदेवता की भी पूजा की जाती है। महिलाएं और किसान बड़े उत्साह से इसे मनाते हैं।
हरियाली अमावस्या हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से मनायी जाती है। उत्तर भारत में तो यह पर्व हरियाली अमावस्या के नाम से मनाया जाता है। राजस्थान में इसे श्रावणी अमावस्या,गुजरात में वनों महोत्सव,मध्य भारत में हरियाली पूजा और दक्षिण भारत में यह आषाढ़ अमावस्या कहा जाता है।
यह दिन कृषि की दृष्टि से बहुत ही शुभ माना जाता है। पुराने समय में राजा-महाराजा इस दिन वृक्षारोपण करवाते थे और नगरों में तालाब, बावड़ियाँ, कुएँ आदि की सफाई व संरक्षण करते थे। हरियाली अमावस्या के दिन लोग सुबह स्नान कर पूजा करते हैं। महिलाएँ विशेष रूप से उपवास रखती हैं और शिव-पार्वती की पूजा कर अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन अलग अलग जगहों पर अपने परिवार एवं कुल की मान्यताओं के अनुसार पूजा की विधियाँ प्रचलित हैं। इस दिन कई जगह वट वृक्ष (बरगद), पीपल, नीम आदि वृक्षों की पूजा की जाती है। नदी, तालाब, कुएं या जलाशयों की साफ-सफाई कर उन्हें सजाया जाता है। नवविवाहित महिलाएँ इस दिन मायके जाती हैं और झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं। नागदेवता और शिवलिंग की जलाभिषेक कर पूजा की जाती है। तुलसी के पौधे की विशेष पूजा कर दीया जलाया जाता है।
मेरी मॉं इस दिन दरवाजे पर हरे रंग से कुछ आकृतियां बनाती हैं और खीर पूड़ी से उनकी पूजा करती हैं। इसे हरियाली कहा जाता है।
हरियाली अमावस्या का एक प्रमुख उद्देश्य है पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण। यह पर्व याद दिलाता है कि मनुष्य और प्रकृति का संबंध एक-दूसरे पर निर्भर है। वृक्षों के बिना जीवन असंभव है – वे हमें ऑक्सीजन, फल, छाया और औषधियाँ प्रदान करते हैं।
शासकीय एवं सार्वजनिक रुप से हरियाली अमावस्या को वन महोत्सव का रूप भी दिया गया है। सरकारी और निजी संस्थानों द्वारा इस दिन लाखों पेड़ लगाए जाते हैं। विद्यालयों, कॉलेजों और सामाजिक संस्थाओं में वृक्षारोपण अभियान चलते हैं। इससे समाज में पर्यावरण के प्रति चेतना उत्पन्न होती है।
हरियाली अमावस्या केवल धार्मिक पर्व नहीं है,बल्कि यह लोकजीवन में रंग भरने वाला उत्सव है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में यह महिलाओं और युवाओं के लिए उल्लास का दिन होता है। झूले पड़ते हैं, तरह तरह के लोकगीत गाए जाते हैं।
हमारे पूर्वजों का दृष्टिकोण कितनी वैज्ञानिक सोच लिए हुए था यह इसी पर्व की महत्ता से समझ आ जाता है। वर्षा ऋतु के मध्य का समय पेड़ लगाने के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है। इस समय पर्यावरण में नमी अधिक होने के कारण पौधों की जड़ें आसानी से जम जाती हैं। मिट्टी में उपजाऊपन अधिक होता है। इस समय लगाए गए वृक्ष वर्षभर में परिपक्व हो जाते हैं। ऐसे समय में इस पारंपरिक आयोजन को धार्मिक रुप दिए जाने से संपूर्ण जन मानस पूरी आस्था, विश्वास और ताकत से पर्यावरण संरक्षण एवं वृक्षारोपण में जुट जाता है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आज की भाषा में कहें तो एकदम परफेक्ट है। तो आइए हम भी इस अवसर पर प्रकृति को प्रणाम करें और एक वृक्ष अवश्य लगाएं।
( पवन वर्मा- विनायक फीचर्स)



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