लोक पर्व, लोक कला,लोक परम्परा व लोक देव गाथाओं को शिद्दत से पिरोया है अपने गीतों में बिन्दुखत्ता के इस लोक गायक ने

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बिन्दुखत्ता- लालकुआं ( नैनीताल ), कुमाऊ की समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा को सजाने, संवारने व आगे बढ़ाने में बेशक!अनेकानेक कलाकारों ने समय – समय पर अपना सर्वोत्तम योगदान दिया है,परन्तु कई ऐसे कलाकार भी रहे हैं, जिन्होंने पुरातन सांस्कृतिक मूल्यों के साथ- साथ आधुनिक समाज की भावनाओं के अनुरूप अलग-अलग किन्तु मोहक विधाओं को अपने गायन व रचनाओं में विशेष महत्व दिया है। ऐसे ही एक प्रसिद्ध कुमाउँनी गायक हैं शेरसिंह दानू , जिनकी गायन शैली, गायन विधा, गीत लेखन व रचनाओं में समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ ही प्रकृति प्रेम, जन-जीवन की विकास यात्रा, पलायन की पीड़ा, बदले हुए परिवेश की चुनौतियों व आधुनिक पीढ़ी की भावनाओं, जरूरतों और सपनों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है।
मूलरूप से जनपद पिथौरागढ़ अन्तर्गत धारचूला विकासखण्ड के खुमती गॉव में जन्मे लोकगायक शेर सिंह दानू वर्तमान में यहाँ बिन्दुखता में निवास करते हैं और यहीं से अपनी सांस्कृतिक साधना की सिद्धि हेतु निरन्तर चिन्तन, मनन, लेखन, गायन व अन्यान्य रचनात्मक कार्य- विधियों में जुटे हुए हैं।
अन्य तमाम कलाकारों की तरह ही शेरसिंह दानू को भी आमतौर पर अक्सर अभावों से दो- चार होना पड़ता है ।दरअसल सरकार व संस्कृति विभाग से किसी भी लोक कलाकार को आर्थिक संरक्षण देने सम्बन्धी कोई ठोस व्यवस्था देखने को नहीं मिलती है जिस कारण कलाकारों को अपने हुनर व प्रतिभा को निखारने- संवारने में आर्थिक चुनौतियो का सामना करना पड़ता है।
यहाँ यह बताते चलें कि लोकगायक शेर सिंह दानू की प्रारम्भिक शिक्षा पैतृक गांव खुमती में ही हुई। एक मुलाकात में उन्होंने संघर्ष की गाथा सुनाते हुए कहा कि उनके पिता स्व० श्री जय सिंह दानू और माता स्व० श्रीमती देवकी देवी, स्वयम् भी पर्वतीय संस्कृति से गहरा लगाव रखते थे और सभी आठ भाई बहनों को पढ़ाई के साथ साथ सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक समारोहों में गायन- कीर्तन-भजन आदि में सहभाग करने को प्रेरित व प्रोत्साहित करते रहते थे।
श्री दानू आगे कहते हैं कि वर्ष 1984 में उन्होंने रामलीला में छोटी – छोटी भूमिका में मंच पर आना आरम्भ किया और पर्व, उत्सव, त्यौहार आदि अवसरों पर स्कूल में और स्कूल के बाहर भी एक बाल गायक के रूप में अपनी प्रस्तुतियां देना शुरू किया। धीरे – धीरे यह क्रम आगे बढ़ता रहा और कुमाउनी संस्कृति के प्रति जुड़ाव तथा जागरुकता भी बढ़ती चली गयी।
शेर सिंह दानू ने बताया कि बाद में अपनी सांस्कृतिक अभिरूचि को विस्तार देने के लिए वह अनेक ग्रुपों व संस्थाओ के साथ मिलकर कार्य करने लगे तत्पश्चात ” हिमालय कला केन्द्र” नाम से स्वयम की एक संस्था बनाई । बतौर अध्यक्ष वह इस संस्था के माध्यम से कुमाउंनी संस्कृति पर लगातार कार्य कर रहे हैं।
श्री दानू ने बताया कि अब तक वह सैकड़ों गीतों को स्वर दे चुके हैं और तकरीबन तीन दर्जन स्वरचित गीतों को भी अलग अलग मंचों के जरिये प्रस्तुत कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि स्वरचित गीतों को तीन कैसेट्स में रिकार्ड किया गया है, जिनमें ” गलबन्द में लाल धागा” गीत लोगों द्वारा सबसे अधिक पसंद किया गया ।
शेर सिंह दानू ने कहा कि उनकी संस्था हिमालय कला केन्द्र में फिलहाल 25 कलाकारों की टीम है ।संस्कृति विभाग उत्तराखण्ड सरकार से समय समय प्रस्तुति देने के अवसर प्रदान किये जाते हैं और अपने स्तर पर भी संस्था सांस्कृतिक आयोजनो में कार्यक्रम प्रस्तुत कराती रहती है ।उन्होंने कहा कि संस्था का उद्देश्य हिमालय व पहाड़ की सुन्दरता, पर्व उत्सव, त्यौहार, रीति-रिवाज, सामाजिक व सांस्कृतिक परम्परा, ग्रामीण जन-जीवन, समस्याएं, चुनौतियां, पलायन की पीड़ाएं आदि विषयो पर निष्ठापूर्वक कार्य करते रहना है।
प्रसिद्ध कुमाउँनी लोक गायक स्व० श्री प्रहलाद मेहरा को अपना गुरु बताते हुए श्री दानू कहते हैं कि उनके निरन्तर प्रोत्साहन व मार्गदर्शन का ही परिणाम है कि आज वह अपनी संस्कृति की सेवा कर पाने में समर्थ हो पा रहे हैं।
युवाओं के नाम संदेश के बाबत श्री दानू ने कहा कि किसी भी प्रकार के नशे व दुर्व्यसन से दूर रहकर युवा अपना बेहतर भविष्य बनाने की तरफ बढ़े और जहाँ कहीं भी रहें अपनी जड़ों से जुड़े रहें तभी संस्कृति बचाई जा सकेगी।/ मदन मधुकर

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