बचपन की आस्था से जनसेवा तक : माँ अवंतिका के चरणों में नतमस्तक नगर पंचायत अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह लोटनी

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लालकुआँ।
माँ अवंतिका के पावन धाम में जब भी शंख-नाद गूंजता है, वहाँ एक नाम श्रद्धा से स्वतः स्मरण हो उठता है नगर पंचायत अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह लोटनी। उनकी माँ अवंतिका के चरणों में आस्था केवल धार्मिक भाव नहीं, बल्कि जीवन की दिशा तय करने वाला वह विश्वास है, जो बचपन से उनके संस्कारों में रचा-बसा है।सुरेन्द्र सिंह लोटनी मानते हैं कि माँ अवंतिका का आशीर्वाद ही उनका सबसे बड़ा स्नेह, सबसे बड़ा संबल और सबसे बड़ी पूँजी है।
वे अक्सर कहते हैं—

 “जीवन में जो भी मिला है, वह माँ की कृपा से मिला है। जब-जब कठिन समय आया, माँ ने अदृश्य हाथ थामकर सही राह दिखाई।”

 

समय मिले या न मिले, माँ के दरबार में हाजिरी अवश्य

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नगर पंचायत अध्यक्ष की जिम्मेदारियों और व्यस्त दिनचर्या के बावजूद श्री लोटनी जब भी समय पाते हैं, माँ अवंतिका के दरबार में शीश नवाना नहीं भूलते। मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उनका भाव सामान्य दर्शनार्थी जैसा नहीं, बल्कि एक पुत्र का अपनी माँ से मिलने का भाव होता है।स्थानीय श्रद्धालुओं के अनुसार, वे मंदिर परिसर में न तो औपचारिकता निभाते हैं और न ही दिखावे में विश्वास रखते हैं—
चुपचाप माँ के चरणों में बैठकर मन ही मन संवाद करते हैं।

जनसेवा भी माँ की सेवा है” : लोटनी

माँ अवंतिका के प्रति अपनी आस्था को वे केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं रखते।
उनका मानना है :“माँ की सच्ची भक्ति वही है, जो समाज की सेवा में दिखाई दे। जनसेवा ही माँ की पूजा का विस्तार है।” इसी भाव के साथ वे नगर पंचायत की जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए नगर के विकास, स्वच्छता और जनकल्याण को अपनी प्राथमिकता मानते हैं। उनके निकट सहयोगी बताते हैं कि कोई भी बड़ा निर्णय लेने से पूर्व वे माँ अवंतिका का स्मरण अवश्य करते हैं।

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माँ अवंतिका का सानिध्य, सेवा का मार्ग

माँ अवंतिका की इस पावन भूमि को बाबा नीम करोली महाराज की तपस्थली से भी जोड़ा जाता है।
ऐसे आध्यात्मिक वातावरण में पली-बढ़ी आस्था ने सुरेन्द्र सिंह लोटनी को विनम्रता, संयम और सेवा का मार्ग सिखाया है।आज जब वे जनप्रतिनिधि के रूप में नगर का नेतृत्व कर रहे हैं, तब भी उनके लिए माँ अवंतिका का आँचल ही सबसे सुरक्षित आश्रय है।

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श्रद्धा की वह लौ जो बुझती नहीं

लालकुआँ की जनता के बीच यह आम धारणा है कि
सुरेन्द्र सिंह लोटनी की शक्ति उनके पद में नहीं, बल्कि माँ अवंतिका में अटूट विश्वास में निहित है।
उनकी यह श्रद्धा न केवल उन्हें ऊर्जा देती है, बल्कि समाज को यह संदेश भी देती है कि आस्था और कर्तव्य जब एक साथ चलते हैं, तब नेतृत्व सेवा में बदल जाता है।

माँ अवंतिका के चरणों में नमन करते हुए
यही कामना है कि माता की कृपा से यह श्रद्धा यूँ ही जनसेवा का पथ प्रशस्त करती रहे।

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