विंध्यवासिनी / मिर्जापुर/ दतिया में माँ पीतांबरी की 36 दिवासीय साधना हवन यज्ञ के पश्चात् सत्य साधक श्री विजेन्द्र पाण्डे गुरु जी ने माँ विंध्यवासिनी के दर्शन कर सभी के सुख समृद्धि व मंगल की कामना की माँ विन्ध्यवासिनी देवी की महिमां का बखान करते हुए उन्होंने कहा माँ सर्व सौभाग्य को प्रदान करनें वाली परम कल्याणी स्वरुपा देवी के रुप में पूजनीय है।इनकी आराधना का फल अतुलनीय माना गया है। माँ विंध्यवासिनी का अलौकिक दरबार परम जागृत शक्तिपीठों में है। इनके दर्शन पूजन के बिना कोई भी साधना पूर्ण नही होती है उन्होनें बताया मातेश्वरी विंध्यवासिनी के दरबार में जो भी श्रद्धालु श्रद्धा पूर्वक भक्ति पूर्वक अपने आराधना को निर्मल भावनाओं को अर्पित करते है वह माँ कल्याणी देवी विंध्यवासिनी की कृपा से परम कल्याण के भागी बन कर दुर्लभ मुक्ति को प्राप्त करते है इस कलिकाल में इनकी आराधना हर एक के लिए अनिवार्य बताई गई है
यहाँ के दर्शन कर लौटे गुरुजी ने बताया विंध्यांचल में यह देवी तीनों रूपों में विराजमान है यहां देवी के तीन प्रमुख मंदिर है पहला विंध्यवासिनी जिन्हें भक्तजन कौशिकी देवी के नाम से भी पुकारते हैं दूसरा मंदिर मातेश्वरी महाकाली और तीसरा अष्टभुजा मंदिर है अर्थात यहां देवी के तीन रूपों के दर्शन का सौभाग्य यहाँ पधारनें वाले भक्तों को प्राप्त होता है।
उन्होंने कहा अनेक पुराणों में विंध्य क्षेत्र का सुन्दर शब्दों में वर्णन किया गया है। देश के प्रमुख 108 शक्तिपीठों में इस पीठ की गणना होती है। जगत का कल्याण करने वाले विन्ध्येश्वर महादेव का मंदिर भी विंध्यांचल क्षेत्र में ही है विंध्याचल की पहाड़ियों में कल- कल धुन में नृत्य करती माँ गंगा के पवित्र पावन सानिध्य में यह स्थान जगत माता की ओर से भक्तजनों अदितीय भेंट है। यहां का सौंदर्य बरबस ही आगंतुकों को अपनी ओर आकर्षित करता है त्रिकोण यंत्र पर स्थित विंध्याचल निवासिनी देवी की तीन रुपों महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती के रुप में पूजा होती है। त्रिकोण यात्रा के रूप में विंध्य पर्वत की यात्रा समस्त मनोरथ को पूर्ण करनेवाली यात्रा कहीं गई है ।यहाँ पर स्थित विंध्यवासिनी माता मधु तथा कैटभ नामक महादैत्यों का नाश करने वाली देवी के रूप में भी पूजित है। कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थान पर तपस्या करता है, उसे उसकी तपस्या का फल शीघ्र प्राप्त होता है। यही कारण है कि विभिन्न देवी-देवताओं के साधक, उपासक सबसे पहले माँ विंध्यवासिनी की ही साधना करते हैं।
माँ का यह दरबार आदि अनादि से रहित माना गया है। अर्थात इस क्षेत्र का अस्तित्व सदैव जागृत रहता है। इनका स्मरण समस्त संकल्पों को सिद्धि का सुंदर स्वरूप प्रदान करने वाला कहा गया है । ब्रह्मा जी इनकी शक्ति से ही सृष्टि उत्पन्न करते हैं ,विष्णु जी पालन ,और शंकर जी संहार करते है
गंगा नदी के पावन तट पर स्थित माँ विंध्यवासिनी का दरबार पुरातन काल से परम पूजनीय है यह मंदिर बस्ती के मध्य एक ऊंचे सुनहरे स्थान पर है मंदिर में माँ भगवती सुन्दर स्वरूप में विराजमान है मन्दिर के पश्चिम भाग में एक सुनहरा आंगन है, जिस के समीप मां की एक सुंदर मूर्ति है समीप ही दूसरे मंडप में घर पर खर्परेश्वर महादेव विराजमान है।
योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की बहिन अर्थात् कृष्णानुजा कहीं जाने वाली इस देवी की कृपा जिस पर हो जाए वह सहज में ही योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा का पात्र बन जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी द्वारा स्थापित माता मंगला देवी का मंदिर भी इसी क्षेत्र में है। हनुमान मंदिर ,शीतला मंदिर ,सप्तसागर सहित अनेकों महातीर्थ यहां की पावन भूमि में स्थित है।
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