सानिउडियार में संस्कृति की धड़कन तीन दिवसीय जाण-पछ्याण भद्रकाली महोत्सव का भव्य शुभारंभ

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लोक आस्था, सांस्कृतिक चेतना और परंपरा के संगम का सजीव उत्सव

भद्रकाली (बागेश्वर)।
राजकीय इंटर कॉलेज सानिउडियार के खेल मैदान में तीन दिवसीय जाण-पछ्याण भद्रकाली महोत्सव का शुभारंभ पूरे उल्लास, श्रद्धा और सांस्कृतिक गरिमा के साथ हुआ। महोत्सव के पहले ही दिन क्षेत्र की लोकसंस्कृति, परंपरागत वेशभूषा और लोकनृत्यों ने वातावरण को उत्सवमय बना दिया।
महोत्सव का उद्घाटन मुख्य अतिथि विधायक सुरेश गढ़िया ने किया। इस अवसर पर उन्होंने महोत्सव के आयोजन हेतु डेढ़ लाख रुपये की सहायता देने की घोषणा करते हुए कहा कि भद्रकाली मंदिर को मानसखंड मंदिर माला से जोड़कर इसे सांस्कृतिक-धार्मिक पर्यटन का केंद्र बनाया जाएगा।

रंगारंग कार्यक्रमों ने बांधा समां

महोत्सव के मंच पर विभिन्न विद्यालयों के छात्र-छात्राओं एवं स्थानीय कलाकारों ने पारंपरिक नृत्य, लोकगीत और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से दर्शकों का मन मोह लिया। कुमाऊँनी लोकधुनों पर थिरकते कलाकारों ने यह संदेश दिया कि हमारी लोकसंस्कृति आज भी जीवंत है और नई पीढ़ी इसे आत्मसात कर रही है।

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महिलाओं की कलश यात्रा आस्था का अनुपम दृश्य

रविवार प्रातः क्षेत्र के विभिन्न गांवों की महिलाओं ने पारंपरिक परिधानों में भद्रकाली मंदिर से महोत्सव स्थल तक कलश यात्रा निकाली। यात्रा के दौरान पूरा क्षेत्र माँ भद्रकाली के जयकारों से गूंज उठा। यह दृश्य लोक आस्था और सामूहिक सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक बन गया।

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संस्कृति ही महोत्सव की आत्मा

भद्रकाली महोत्सव केवल मनोरंजन का मंच नहीं, बल्कि संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन का सशक्त माध्यम है। जाण-पछ्याण की परंपरा लोक पहचान, देवी उपासना और सामूहिक सामाजिक चेतना से जुड़ी हुई है। इस महोत्सव के माध्यम से लोककला, लोकगीत, लोकनृत्य और पारंपरिक मूल्यों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का सार्थक प्रयास किया जा रहा है।

महोत्सव समिति के अध्यक्ष केवलानंद पांडे ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि यह आयोजन ग्रामीण अंचल की कला और संस्कृति को सहेजने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। समिति के सदस्यों ने बताया कि आगामी दिनों में भी विविध सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, लोक कलाकारों के कार्यक्रम और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाएंगे।

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लोकसंस्कृति का उत्सव, पहचान का प्रतीक

भद्रकाली महोत्सव यह संदेश देता है कि जब समाज अपनी जड़ों से जुड़ता है, तभी संस्कृति जीवित रहती है। कांडा क्षेत्र सनिउडियार में आयोजित यह तीन दिवसीय आयोजन लोक आस्था, सांस्कृतिक गौरव और सामाजिक एकता का जीवंत उदाहरण बनकर उभरा है।

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