जनपद पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट तहसील के अंतर्गत कोठेरा गाँव में स्थित आदि शक्ति माँ अम्बिका देवी का दरबार आध्यात्मिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण स्थान है। सदियों से परम आस्था का केन्द्र रही देवी की यह पावन भूमि परम पूज्यनीय है। सुन्दर मनोहारी पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में स्थित इस मन्दिर के चारों ओर का आभामण्डल बरबस ही यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है
शैल पर्वत वासिनी कालिका माता के प्रसंग में माँ अम्बिका देवी की महिमां का वर्णन वर्णित है पुराणों के अनुसार हाट कालिका के दर्शन व पूजन के पश्चात माँ अम्बिका के दर्शन व पूजन का महत्व समस्त सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है इस देवी के दर्शन व पूजन का फल अभिष्ट बताया गया है।
अंबिका माता को देवी दुर्गा का एक रूप माना जाता है, इन्हें आदिशक्ति, शक्ति, और ब्रह्मांड की माँ के रूप में भी पूजा जाता है।
शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक के रूप में भी इन्हें जाता है। यहाँ देवी की शिव व शक्ति दोनों रूपों में पूजा होती है इस स्थान पर पिण्डी स्वरूप में देवी के दर्शन होते है
साकार स्वरूप में माँ आठ भुजाओं वाली देवी के रूप में प्रतिष्ठित है, इनके हाथों में नाना प्रकार के अस्त्र – शस्त्र विराजमान है। अंबिका माता को अम्बा, भगवती, ललिताम्बिका,भवानी,और महामाया जैसे नामों से भी जाना जाता है।
माता पार्वती से सम्बध रखने वाले स्थानों के बारे में महर्षि व्यास जी ने कहा है ‘शैल’ पर्वत के उत्तम प्रदेश पर कालिका विराजमान हैं। ये वे ही कालिका है जिन्होंने पहले ‘कौशिकी’ नाम से ‘चण्डमुण्ड’ वध तथा ‘रक्तबीज’ का रुधिर-पान किया था। वह काल को भी कवलित करने वाली एवं दैत्यों का नाश करने वाली ‘काली’ ‘शैल’ पर्वत पर विराजमान हैं। देवी ‘त्रिशूल’, ‘पट्टिश’, ‘पाश’, ‘मुद्दगर’, ‘शक्ति’ आदि धारण करने वाली घोररूपा विशालाक्षी होने के साथ ही भक्तों के लिए वरदा ‘काली’ हैं। उहोंने ‘शैल’ पर्वत के पूर्व भाग में वास किया है। वह देवताओं की मुख्य शक्तियों’, सोलह ‘मातृकाओं’ तथा ‘विद्याधरों’ से सेवित हैं। उनके समक्ष पापात्मा नहीं जा सकते। उन ‘कालिका’ के स्मरण-मात्र से कलि-कल्मषों का नाश, बालग्रहों तथा बलवान् ग्रहों का निरा-करण हो जाता है। राक्षस भाग जाते हैं। मानवों को सिद्धि प्राप्त हो जाती है। वह देवों से सेवित हैं। प्रसन्न होने पर अभीष्ट प्रदान करती हैं। रुष्ट होने पर विनाश भी कर देती है।वही देवताओं को भी वर देती हैं। उनका माहात्म्य कहाँ तक कहें वही चर-अचर को व्याप्त कर, शक्तिशाली दैत्यों का युद्धक्षेत्र में विनाश कर, विराजमान हैं
कालिका माता व माँ अम्बिका देवी के विभिन्न रूपों से शोभित शैल पर्वत पर पहुंचकर ‘शुम्भ’ दैत्य से पराजित देवगणों ने यही आकर भगवती की स्तुति की स्तुति से प्रसन्न माँ काली ने विभिन्न रूपों में अवतार लेकर दैत्यों का वध किया माँ अम्बिका इन्हीं अवतारों में एक है यह स्तुति मानसखण्ड में सुन्दर शब्दों में वर्णित है
जिन्हें देखकर ‘शेष’ भगवान् भी अपने असंख्य फनों को नीचे झुका कर नम्र हो जाते हैं, वह देवी अम्बिका सदा अपने भक्तों पर कृपा बनाये रखती है शैल पर्वत पर विराजमान देवी कालिका की महिमां के वर्णन के साथ व्यासजी ने अम्बिका देवी की महिमां का वर्णन करते हुए कहा है ‘शैल’ पर्वत के प्रकृष्ट प्रदेश में निवास करने वाली इन्द्र से पूजित चन्द्रवदनी ‘अम्बिका महादेवी का विधिपूर्वक पूजन कर मनुष्य निःसन्देह इष्टसिद्धि प्राप्त कर लेता है।
ततोअम्बिका महादेवी शैलो देश निवासिनिम् सेवितां देवराजेन चन्द्राबिम्ब निभाननाम्
सम्पूज्य विधिवद विप्रा गन्धपुष्पाक्षतैः शुभै :।
मानवोऽभीप्सितान् कामानवाप्नोति न संशयः ॥
कुल मिलाकर भगवती अम्बिका का पौराणिक स्थल जनपद पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इस स्थान पर एक बार देवी का पूजन कर लेने से प्राणी की सम्पूर्ण ब्याधियां शान्त हो जाती है तीर्थाटन की दृष्टि से यह स्थान मार्ग निर्माण के अभाव में गुमनामी के साये में गुम है
रमाकान्त पन्त



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