चिटगल गाँव के हर आंगन में कभी गूंजते थे परुली बुआ के गीत

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अतीत की यादों के झरोखों में चिटगल की धरती पर जब-जब दया, करुणा, ममता, मानवता के मूल्यों की रक्षा करने वाली मातृ शक्तियों के महान कार्यों पर चर्चा होगी तो सहज में ही याद आएंगी परुली बुआ अर्थात् परुल बुब यानि पार्वती पाण्डे

उल्लेखनीय है, कि आध्यात्मिक जगत की महान् विराट विभूति ,लोक मंगलकारी कर्मो का सृजन करके निष्काम कर्म की प्रेरणा देकर जीवन पथ को निर्मल आभा से सवांरकर करूणा की दिव्य छाया बरसाने वाली कर्म ही जिनका महान् शब्द था , अनुशासन जिनका परम धर्म था, दया ही जिनका परम धाम था ,अलौकिक सता के प्रति हर पल जिनका रूझान था जो मानवीय रूप में साक्षात् करूणा की मूर्ति थी ,आत्मा की अमरता व शरीर की नश्वरता को जो भलि भांति जानती थी, चिटगल की भूमि व यहां के तीर्थ स्थलों के प्रति जिनके हदय में अपार श्रद्वा थी वो सरल हदय ममता व करूणा की साक्षात् मूर्ति स्व० परुली बुआ जी वर्षों पूर्व इस नश्वर संसार को छोड़ गयी उन्हें संसार से विदा हुए वर्षों बीत चुके है। लेकिन उनसे जुड़ी यादें आज भी ताजा है उनका आत्मिक रूप से मिलना जुलना उनके विशाल हदय की विराटता को झलकाता था सरल से भी सरल पार्वती बुआ जी ने अपनी जीवन यात्रा साधना को निष्काम कर्मयोगी की तरह जिया वे सच्चे अर्थो में दरियादिली की जीती जागती मिशाल थी चिटगल की पावन धरा से उनका अमिट लगाव था ।उनकी सादगी ,विनम्रता स्नेहशीलता का कोई जबाब नही था। उनका जीवन सफर धार्मिक कार्यो में बीता

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जनपद पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट क्षेत्र के अंतर्गत धड़ै गौ चिटगल गांव में रहने वाली परुली बुआ रिटायर्ड प्रधानाचार्य स्व० श्री गंगा प्रसाद पंत की छोटी बहिन थी इनका जीवन संघर्ष बड़ा ही जटिल रहा उस दौर में लगभग 12 वर्ष की आयु में इनका विवाह पिथौरागढ़ जिले के ही छाना गांव के एक पांडे परिवार में हुआ विवाह के कुछ समय पश्चात ही इनके पति का देहांत हो गया था बाल वैधव्य का दंश झेलनें के बाद यह अपने मायके चिटगल वापस आ गयी व अपना समूचा जीवन योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिया इन्हें रामायण महाभारत गीता सहित अनेकों ग्रंथ कंठस्थ याद थे आध्यात्मिक आवरण की अद्भुत छटा इनके चेहरे पर झलकती थी इन्होंने अनेक मांगलिक गीतों की रचना की जो आज भी यहां की बुजुर्ग महिलाओं की जुबां पर सुनने को मिलते हैं सनातन संस्कृति के प्रति इनका गहरा लगाव था अगाध भक्ति भाव के चलते लोग इन्हें मीराबाई कह कर भी पुकारते थे इनके द्वारा गाए जाने वाले मिठास भरे मांगलिक गीतों की मधुर धुन आज भी लोगों के कानों में यादों की महक के रूप में महकती है लगभग सन् 91 के दौर में 65 वर्ष की आयु में परुली बुआ संसार छोड़ कर चली गई थी लेकिन वर्षों बाद भी चिटगल वासियों के हृदय में ये आदरणीय भाव से विराजमान है/// रमाकान्त पन्त///

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