कुमाऊँ की धरती में यहाँ है, श्री बद्रीनाथ जी का मन्दिर, अपनी बहन के सानिध्य में रहते है यहाँ, बद्रीनाथ जी की चलती है डोली

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गंगोलीहाट के कनारा गूथ गाँव में स्थित भगवान श्री बद्रीनाथ जी का मन्दिर प्राचीन समय से परम पूज्यनीय है माँ कनारा देवी के आँचल में स्थित बद्रीनाथ जी के इस मन्दिर के बारें मे अनेकों दंत कथाएँ प्रचलित है बारहाल इस मंदिर की भव्यता आध्यात्म की विराट आभा को दर्शाती है यहाँ आने वाले आगन्तुक बरबस ही यहॉ की आध्यात्मिक आभा में पहुंचकर स्वयं को धन्य मानते है कुमाऊँ मण्डल के गंगोलीहाट क्षेत्र में स्थित भगवान बद्रीनाथ जी का यह मन्दिर हालांकि तीर्थाटन की दृष्टि से गुमनामी के साये में गुम है लेकिन जिन भक्तों को यहाँ के बारें मे जानकारी है वे अक्सर भगवान बद्रीश की कृपा प्राप्त करने के लिए यहाँ पधारते है
भगवान बद्रीनाथ जी का यह मन्दिर रामगंगा के किनारे स्थित है
मान्यता है कि तमाम पौराणिक मंदिरों की भांति ही नारायण का यह दरबार प्राचीन गाथाओं को समेटे हुए है

इस गाँव के निवासी सूरज सिंह भण्डारी ने बताया सैकड़ो वर्ष पूर्व कुमाऊँ की धरती पर जब राजाओं का शासन हुआ करता था उस दौर में नेपाल के राजा की प्रेरणा से कुमाऊं के राजा ने यह भूमि भगवान बद्रीनाथ जी को दान में दी थी इस गाँव के निवासी भण्डारी उपजाति के लोग है कभी नेपाल से बद्रीनाथ जी को भोग लगानें जिसे स्थानीय भाषा में नैनाक कहा जाता है

बद्रीनाथ जी को अर्पित करने नेपाल से कुमाऊँ के रास्ते बद्रीनाथ जाया करते थे नेपाल के राजा की प्रेरणा से कुमाऊँ के राजा ने उन्हें यह भूमि प्रदान कर इस भूमि में एक परिवार को बसाया ओर यह भूमि भगवान बद्रीनाथ को समर्पित की, और कहा आप लोग इस भूमि में सुखपूर्वक रहकर अन्न उत्पन्न करें और उपज का पहला भोग नैनाक भगवान बद्रीनाथ को समर्पित करें, राजाज्ञा के पश्चात् भगवान बिष्णु की कृपा से बद्रीश भक्त भण्डारी परिजनों ने इस भूमि में भगवान बद्रीनाथ धाम की स्थापना की और प्राचीन भोग परम्परा आज भी कायम है मान्यता है कि भगवान बद्रीनाथ माँ कनारा के भाई है

प्रत्येक वर्ष चैत्र की पहली नवरात्र को भगवान बद्रीनाथ अपनी बहन माता भगवती को भिटौली देने जाते हैं, जो इस भूमि की कुलदेवी हैं। परम कल्याणिका देवी के रूप में यहाँ माँ कानारा देवी की पूजा होती है संकट हरणी मंगल करणी देवी के रूप में भक्तजन इन्हें पूजते है कुमाऊँ के वीरों की गौरव गाथा को भी कनारा गाँव अपनें आप में समेटे हुए है
वीर चक्र विजेता माँ काली के परम भक्त स्वर्गीय श्री शेर सिंह भंडारी ने इसी भूमि पर जन्म लेकर भारतीय सेना का मान बढ़ाया हाट काली के शक्ति स्थल पर पहली मूर्ति की स्थापना सन् 1950 में पहले गणतंत्र दिवस के अवसर पर वीर चक्र से सम्मानित स्व० श्री भण्डारी ने ही स्थापित करवायी

उल्लेखनीय है कि वनों में श्रेष्ठ है बद्रीवन अपरंपार है ,जगत के पालनहार भगवान बद्रीश की महिमा
भगवान शिव के मुख से प्रकट हुआ सर्वप्रथम ‘बदरीवन माहात्म्य और महादेवी माता पार्वती ने सुनी सबसे पहले भागवत भूमि बद्रीनाथ की महिमां
तीनों लोकों के स्वामी त्रिभुवनेश्वर श्री बद्रीश की महिमा अपरम्पार है। ये आदि व अनादि से रहित हैं, जगत के पालनहार के रूप में इनकी स्तुति परम कल्याण को प्रदान करती है। हिमालय की गोद में बसे देवभूमि उत्तराखण्ड में स्थित इनका पावन धाम ‘बद्रीनाथ’ परम पूज्यनीय है चार धामों में प्रमुख बद्रीनाथ भगवान के स्मरण मात्र से मनुष्य सभी पापों से छुटकारा पा जाता है। फिर दर्शन की तो बात ही क्या है।
स्कंद पुराण के केदारखण्ड में बदरीनाथ महात्म्य में इस तीर्थ की महिमा विस्तृत वर्णन आता है। देवाधिदेव महादेव जी ने सर्वप्रथम श्री हरिनारायण के इस तीर्थस्थल की अलौकिक महिमा का बखान माता पार्वती को सुनाया।
बदरीवन माहात्म्य कथयामास पार्वतीम
तत्तेरहं सम्प्रवक्ष्यामि पुण्यं पापविनाशम्।
(केदारखण्ड बद्रीनारायण महात्म्य 57/10)
सुनाते हुए कहा कि इस भूतल पर पापनाशक व पुण्यदायक तीर्थों में बदरीवन जैसा स्थान अन्यत्र कहीं भी नहीं है। महर्षि वशिष्ठ ने माता अरुन्धती को बद्रीनारायण की महिमा से अवगत कराते हुए बताया कि जो लोग सच्चे मन से विनयपूर्वक बद्रीनाथ का स्मरण करते हैं वे धन्य हैं। कलयुग में इस स्थान के दर्शन से कोटि यज्ञ फल की प्राप्ति प्राणी को होगी। इस क्षेत्र के तमाम दुर्लभ स्थानों का वर्णन करते हुए महर्षि माता अरून्धती से कहते हैं कि *जो बद्रीनाथ की मूर्ति का मन से भी स्मरण करता है वह महाभागी होता है। जिसने वहां पितरों के निमित्त एक बूंद भी जल अर्पित की उसके पितर मुक्ति के अधिकारी हो जाते हैं। मैं बदरिकाश्रम जाउंगा। इस प्रकार जो सतत कहता है वह भी बद्रीनाथ के दर्शन का फल पाता है। घोर कलयुग में मनुष्य को सब प्रकार का यत्न प्रयत्न कर इनकी शरण लेनी चाहिए। काशी, कांची, मथुरा, गया, प्रयाग, अयोध्या, अवन्ति, कुरूक्षेत्र और अन्य तीर्थ भी कलिनाशिनी बदरी के समान नहीं हैं। यह परम पुण्यदायिनी स्थली है। पुराणों में भी यह स्पष्ट है-
प्रयागश्च तथा काण्ची मथुरा न गया तथा
प्रयागश्च तथा अयोध्या नावन्ती कुरुजांगलम।
अन्यान्यपि च तीर्थानि यथासौ कलिनाशिनी।
बदरीतरुणा या वै मण्डिता पुण्यगास्थली।।
(34/35 केदारखण्ड)
इस क्षेत्रको आप चाहे आध्यात्मिक दृष्टि से देखें। तीर्थान या पर्यटन की दृष्टि से हर स्थिति में नारायण की यह नगरी आपका मन मोहने में पूर्णतया समर्थ है। इस क्षेत्र तक पहुंचने से पहले अनेक दुर्लभ नदियों व तीर्थस्थलों के दर्शन से यात्रा धन्य हो जाती है। नन्दा व अलकनन्दा के संगम स्थित महाप्रतापी राजा नन्द की नगरी नन्दप्रयाग यहां से उत्तर दिशा में सकल पापों की हरण करने वाली बिरही नदी, विरही नामक स्थान से होकर बहती है जो भगवान बद्रीश की विशालता का एक रूप मानी जाती है। यह पापमोचनी नदी के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस स्थान का नाम विरही क्यों पड़ा, इस विषय में कहा जाता है कि माता सती के वियोग में भगवान भोलेश्वर ने हिमालय के अनेक भागों में तप किया, जिनमें से एक स्थान जनपद अल्मोड़ा के झांकर सैम, दण्डेश्वर क्षेत्र भी है। विरही नामक इस स्थान पर तप करते समय उनके वियोग की सीमा न रही। व्याकुल महादेव को इस स्ािान पर मॉं दुर्गा ने दर्शन देकर उनसे कहा, मैं हिमालय के घर उत्पन्न हंूगी और पुनः आपकी पत्नी बनंूगी, इसके पश्चात भगवान शंकर कैलाश को चले गये, किन्तु एक अंश से इसी स्थान पर रह गये और बिरहेश्वर महादेव के रूप में पूजित हुए अलकनन्दा के उत्तरी तट पर स्थित बिल्वेश्वर महादेव जी का मंदिर शिव भक्तों के लिए भगवान शिव का अनुपम उपहार है।
बद्रीनाथ यात्रा पथ में स्थित गरुड़गंगा भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की महान तपस्या का प्रताप है। इस क्षेत्र में आकर गरुड़ की आराधना करने वाले प्राणी को सर्पभय व विषभय से मुक्ति मिलती है इस क्षेत्र की महिमा के विषय में कहा जाता है कि विषय से ग्रस्त मनुष्य यदि श्रद्धा पूर्वक गरुड़ गंगा की शिला को जल में घिसकर पी ले तो विषय का प्रभाव समाप्त हो जाता है। गणेश नदी, चर्मवती नदी, पुरुषोत्तम शिवालय, विष्णुकुण्ड जोशीमठ स्थित भगवान नरसिंह जी का दरबार सहित अनेकों रमणीक तीर्थ स्थल यात्रा पथ की शोभा बढ़ाते हैं।
चमोली जिले में अलकनन्दा के तट पर स्थित बद्रीनाथ धाम एक महापावन तीर्थ है। नर और नारायण पर्वतों से घिरा और नीलकंठ पर्वत श्रृंखलाओं के सामने स्थित बद्रीनाथ प्राचीन काल में जंगली बेरो का जंगल था इसलिए इसे बदरीवन भी कहा जाता था। इस तीर्थराज के बारे में यह भी कहा जाता है। राजा भागीरथ की घोर तपस्या के बाद गंगा जब धरती पर अवतरित हुई तो भगवान शिव ने उसके वेग से पृथ्वी की रक्षा करने के लिए उसे जटाओं में धारण किया। इस तरह से गंगा उनकी जटाओं से बारह भागों में बट गयी। उन्हीं बार धाराओं में से एक अलकनंदा है। तब इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण ने आकर गंगा के दर्शन किए और लोकमंगल के लिए यही अपना निवास स्थान बना लिया। 8वीं सदी में जब जगतगुरू शंकराचार्य यहां आये तो उन्होंने यहां अलगनन्द से मूर्ति निकाल कर यहां स्थित की। समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भगवान बद्रीनाथ के पांच स्वरूप और कहे गये हैं। जो पंच बद्री के नाम से प्रसिद्ध हैं जिनमें आदि ब्रदी जो कर्णप्रयाग से 19 किमी की दूरी पर सिथत है। योगध्यान बद्री यह स्थान बद्रीनाथ से 35 किमी. पहले है। यहां नारायण की ध्यानावस्था में प्रतिमा है। बुद्ध बद्री जोशीमठ से 8 किमी. दूर पूर्व दिशा की ओर तपोवन के पास भविष्य बद्री स्थित है। यहां भगवान नृसिंह की अलौकिक प्रतिमा है। ये तमाम तीर्थ
दैवीय और सांसारिक दोनों ही दृष्टियों काफी महत्वपूण्र है। बद्रीनाथ मंदिर में प्रवेश से पहले गर्भ स्थित तप्त कुण्ड जो गर्म पानी का एक कुण्ड है, इस कुण्ड में स्नान का बड़ा महत्व है। अलकनन्दा के तट पर स्थित ब्रह्मकपाल नामक चबूतरा परम आस्था का केन्द्र है। कहा जाता है कि जिन मनुष्यों ने ब्रह्म कपाल में पितरों के निमित्त तर्पण कर लिया है उनके पितर विष्णुलोक के भागी बनती हैं। ‘कृतते विष्णुलोकाय गच्छति स्मरणादपि’। बद्रीनाथ मंदिर की पृष्ठभूमि में स्थित नीलकंठ पर्वत सम्पूर्ण मंदिर परिसर को मनभावन छवि प्रदान करता है। चांदनी रात में तो यहां की मनोहारी आध्यात्मिक छटा बरबस ही मन को हरने वाली होती है। पुराणों में वर्णन आता है कि महात्मा नारद को देवत्व की प्राप्ति बद्रीनाथ में ही हुई। यहां की यात्रा धन, आयु व महापुण्य को बढ़ाने वाली है ।
महापुण्यं धनायुष्यप्रवर्द्धनम्’ बद्रीविशाल के महात्म्य व महाभारत के श्रवण से ही राजा जनमेजय लोक चक्र के भ्रमण से मुक्त हुए। यह भी मान्यता है कि जो भक्तिपूर्ण बदरीनाथ के नैवेद्य को धारण करता है, वह समस्त दोषों से मुक्त हो जाता है। उसके लिए संसार रूपी समुद्र गौर के खुर के समान हो जाता है।
रमारमणं बदरीपते हरे नृहरे श्री परमेश।
भवाब्धितरणचरणेश प्रभो परम विचरेश।
मामवच मामाव दुरिताम्बु धौ निमज्जन्तम्
धरणिधरण शुभकरण नारायन सुखनिकेत।।
जन धरतनौ सुमनोम्भर्चितचरण तरणेऽवनः। मामव
हे लक्ष्मीपते! बदरीपते! हरे! नृहरे! श्री परमेश संसार सागर से पार करने वाले चरणों वाले ईश! प्रभो! परम विचरण करने वालों के स्वामी मेरी रक्षा कीजिए। पापरूपी समुद्र में डूबते हुए मुझे बचाइये। पृथ्वी को धारण करने वाले, शुभ करन ेवाले नारायण सुख के घर! मेघ के समान स्थामल शरीर वाले पुष्पों से सुपूजित चरणरूपी नौका वाले हमारी रक्षा करें। श्री नारद ऋषि द्वारा भगवान बदरीनाथ की स्मृति में रचित यह यह स्त्रोत श्री हरि के विराट वैभवता का प्रतीक है।
बद्रीनाथ धाम 5 किमी. आगे सुन्दर माणा गांव स्थित है। इस गांव के एक छोर स निकलती सरस्वती नदी गणेश व व्यास गुप्ता के पास अलकनन्दा में समाहित हो जाती है। इस गांव में ही श्रीमद भागवत की रचना हुई। कुल मिलाकर भगवान बद्रीनाथ की महिमा अपरम्पार है जिसे शब्दों में कोई नहीं समेट सकता
कुमाऊँ की धरती में बद्रीनाथ जी का एक प्राचीन मन्दिर सोमेश्वर क्षेत्र में भी है जहाँ श्री बद्रीनाथ जी की भांति ही यहाँ प्राचीन मूर्ति के दर्शन होते है कहा जाता है कि बद्रीश जी की यह मूर्ति स्वय विश्वकर्मा जी ने बनाई गंगोलीहाट के कनारा गूंथ का बद्रीनाथ मंदिर भी मुख्य मंदिर बद्रीनाथ की भांति परम पूजनीय है

कुल मिलाकर कनारा गूंथ गाँव का आध्यात्मिक महत्व बड़ा ही निराला है यहाँ भगवान बद्रीनाथ जी की डोली हर वर्ष चैत्र माँह की पहली नवरात्र को अपनी बहन माँ कनारा देवी से मिलने व भिटौली देने निकलती है

गंगोलीहाट से कनारा गुंथ की दुरी दस किलोमीटर है, जरमालगांव से कनारा गूंथ के लिए वीर चक्र विजेता श्री शेर सिंह भंडारी सड़क है जिसका निर्माण एक वर्ष पहले ही हुआ है यह सड़क माता देवी कनारा मां धाम की परिक्रमा करती है, इस वर्ष यह पर्व ९/०४/२०२४ को चैत्र पहली नवरात्र हिन्दू के दिन मनाया जाएगा गंगोलीहाट, पिथौरागढ़, जरमालगांव, बुरसम , बोयल , नाली अनेक गांवों से भक्त जन इस भिटोल प्रथा में आराधना के श्रद्धा पुष्प अर्पित करने व दर्शन करने आते हैं देवी कनारा धाम ओर बद्रीनाथ धाम में करीब ३ किलोमीटर परिक्रमा है , भगवान बद्रीनाथ धाम कनारा गूंथ के मध्य स्थित है, इस अवसर में साधुवाद देने साधू संतो का भी आवागमन होता है l

रिपोर्ट: रमाकान्त पन्त

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