आम जनता की सुविधाओं एवं ग्रीन परिवहन के नाम पर लगभग सभी राज्य सरकारों द्वारा देश के हर छोटे- बड़े शहरों व कस्बों में सड़कों पर बड़े पैमाने पर ई-रिक्शा उतारे गये थे। ये ई- रिक्शे उन लोगों को थमाए गये , जो या तो तांगा, इक्का चलाते थे या हाथ रिक्शा। इतना ही पर्यावरण के मद्देनजर खटारा और धुआं उगलने वाले टेंपो का विकल्प भी ये ई- रिक्शे समझे गये थे । बेआवाज ये ई रिक्शे शुरू में तो सभी को अच्छे लगे, लेकिन अब यही ई रिक्शे धीरे- धीरे देशभर के घरेलू परिवहन के लिए एक नई तरह की मुसीबत बनते जा रहे है ।
पर्यावरण हितैषी परिवहन के नाम पर प्रयोग में लाए जा रहे ये ई रिक्शे यातायात व्यवस्था के लिए नित नई चुनौती बनने लगे हैं। इनका न ढंग से पंजीयन हुआ, न चालकों का प्रशिक्षण, न इनके लिए स्टापेज बने और न मार्गों का निर्धारण किया गया । फलस्वरुप इन ई रिक्शा वालों को जहां सवारी ने हाथ दिया, वहीं रिक्शा रोक दिया, चाहे पीछे से आ रहे वाहन चालक दुर्घटना का शिकार हो जाएं। महानगरों और छोटे शहरों से लेकर कस्बों तक भले ही दो पहिया वाहन चलाने की जगह न हो, लेकिन इन्हें जगह- जगह पर अपने ई रिक्शे खड़े करने की जैसे अघोषित आजादी मिली हुई है।
ई रिक्शा चलाने वाले ज्यादातर लोग न यातायात के नियम जानते हैं न इनके चालकों के पास कोई नागरिक सुरक्षा का बोध है। ऊपर से दिनों-दिन इनकी अराजकता भी सामने आ रही है।
लगभग हर शहर में प्रशासन द्वारा इन पर सख्ती कर ई रिक्शों के लिए रूट तय किए गए, रंग लगाकर पहचान देने की भी कोशिश की गई। ई रिक्शों को पालियों में भी चलवाने का प्रयास किया गया, लेकिन इनमें बढ़ रही बेलगाम प्रवृत्ति को देखते हुए कहा जा सकता है कि प्रशासन की सारी कसरत जाया हो रही है।
बता दें कि ई रिक्शा संचालकों के विरोध के बाद प्रशासन की तमाम सख्ती हवा हो गई। इतना ही नहीं प्रशासन, यातायात पुलिस व आरटीओ भी इनके आगे बेबस साबित हो रहे हैं । अब सुविधा और पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए लाये गये ये ई रिक्शे सिरदर्द बन गये हैं और खामियाजा आम जनता भुगत रही है।
भारत में ई-रिक्शा की संख्या लाखों में हो सकती है, जिसमें पंजीकृत और गैर पंजीकृत दोनों शामिल हैं। 2022-23 तक के आंकड़ों के आधार पर, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कम से कम 3 लाख पंजीकृत ई-रिक्शा हैं, और गैर-पंजीकृत ई-रिक्शा की संख्या कहीं अधिक हो सकती है। बीते दो वर्षों में तो इनकी संख्या अनुमान से भी कहीं अधिक बढ़ चुकी है।
शहरों में पिछले कई वर्षों से वन-वे घोषित मार्गों पर ई-रिक्शा वाले बिना रोक टोक, बेधड़क दौड़ते हैं। यातायात पुलिस एवं पुलिस खड़ी रहती हैं। जहां पहले तांगों, टेम्पो के कारण आम लोगों को परेशानी होती थी, अब इसकी जगह ई-रिक्शा ने ले ली है। हर शहर में ई-रिक्शा के अघोषित अस्थायी स्टैंड बन गये है। इससे बार-बार ट्रैफिक जाम होता रहता है। पैदल निकलने तक की जगह नहीं रहती है। ई रिक्शा वाले परम स्वतंत्र हैं। जहां से इच्छा हुई, वहीं से सवारी बैठा ली। कोई रोकने वाला नहीं है। रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, घनी आबादी वाले क्षेत्र इनके पसंदीदा जगह बनते जा रहे हैं।
सवाल ये है कि इन ई रिक्शा चालकों की बढ़ती अनुशासन हीनता व अराजकता का इलाज क्या है?
दुनिया के अनेक गरीब, अमीर देशों में भी आज सड़कों पर ई रिक्शे देखे जा सकते हैं , लेकिन वहाँ इनकी मनमर्जी जैसी हरकतें शायद ही मिलेंगी ।वे नियमों का पालन करते हैं और उनमें भरपूर नागरिकता बोध भी देखा जाता है । भारत में तो ई रिक्शा समस्या का दूसरा नाम बनते जा रहे हैं। हकीकत ये है कि ई रिक्शों की बाढ़ से पर्यावरण सुधरने के बजाय तेजी से बिगड़ रहा है। पर्यावरण के लिए ई रिक्शों का ई कचरा भी आने वाले दिनों में एक गंभीर समस्या होने वाला है । इसलिए इनका व्यावहारिक हल खोजा जाना नितान्त आवश्यक हो गया है।
राकेश अचल (विनायक फीचर्स)*



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