उत्तराखण्ड में बढ़ती सड़क दुर्घटनाएँ बनी चिंता का विषय

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उत्तराखण्ड। पर्वतीय भूभागों से भरे उत्तराखण्ड में सड़क दुर्घटनाएँ अब एक गंभीर सामाजिक संकट का रूप लेती जा रही हैं। हर सप्ताह कहीं न कहीं से खाई में वाहन गिरने, यात्रियों के घायल होने या मृत्यु की सूचना मिलती रहती है। बीते दिवस कुमाऊँ में हुई घटना, जिसमें तीन शिक्षक नेताओं का दर्दनाक निधन हुआ, ने एक बार फिर पहाड़ी सड़कों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।

पहाड़ी सड़कों पर खतरे का सफर

राज्य की अधिकांश सड़कें संकरी, जर्जर और तीखे मोड़ों वाली हैं। गहरी खाइयों, लगातार भूस्खलन, टूटते पहाड़ों और अचानक बदलते मौसम के कारण हालत और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। परिवहन विभाग के अनुसार, पर्वतीय सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं में मौत का प्रतिशत मैदानी इलाकों की तुलना में कई गुना अधिक है।

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लगातार बढ़ रहे हादसों के प्रमुख कारण

सड़क की खराब स्थिति: कई मार्गों पर वर्षों से चौड़ीकरण और मरम्मत का कार्य पूरा नहीं हो पाया है।ओवरस्पीड और लापरवाही: तेज गति, गलत ओवरटेक और थकान के साथ ड्राइविंग हादसे का बड़ा कारण है।

वाहन फिटनेस की कमी: पुराने और तकनीकी खराबी वाले वाहन पहाड़ों के लिए जोखिमपूर्ण साबित होते हैं।मौसम की मार: बरसात, कोहरा, बादल फटना और भूस्खलन अचानक स्थिति बिगाड़ देते हैं।अपर्याप्त सुरक्षा प्रबंध: कई स्थानों पर पैराफिट, चेतावनी बोर्ड और स्ट्रीट लाइट तक नहीं हैं।

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रेस्क्यू टीमों के सामने बड़ी चुनौतियाँ

SDRF, पुलिस और स्थानीय लोग जान जोखिम में डालकर गहरी खाइयों में उतरते हैं। रात का अंधेरा, घना कोहरा और कठिन भूभाग रेस्क्यू कार्य को बेहद मुश्किल बना देता है। कई बार अस्पताल दूर होने के कारण घायल समय पर उपचार नहीं पा पाते।

सरकार और समाज दोनों को मिलकर करना होगा प्रयास

राज्य सरकार द्वारा सड़क चौड़ीकरण, ब्लाइंड कर्व पर सुरक्षात्मक उपाय, सोलर लाइटिंग, और वैज्ञानिक कटान पर कार्य किया जा रहा है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
जानकारों का मानना है कि—स्पीड कंट्रोल मॉनीटरिंग और ऑटोमैटिक चेतावनी सिस्टम लगाए जाएँ।सभी टैक्सी और सार्वजनिक वाहनों की समय-समय पर फिटनेस जांच हो।पहाड़ी क्षेत्रों में आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाएँ और एम्बुलेंस उपलब्धता बढ़ाई जाए। उत्तराखण्ड की सुंदरता जितनी मोहक है, यहाँ की सड़कें उतनी ही संवेदनशील भी हैं। हर दुर्घटना न सिर्फ एक परिवार की खुशियाँ छीन लेती है, बल्कि राज्य के विकास की राह में भी दर्दनाक सवाल छोड़ जाती है।
जरूरत इस बात की है कि सड़क सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता बनाते हुए सड़क निर्माण, वाहन संचालन और जनता की जागरूकता—तीनों स्तरों पर ठोस कदम उठाए जाएँ।

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सुरक्षित सड़कें ही सुरक्षित उत्तराखण्ड का आधार हैं।

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