ईरान-इजराइल संघर्ष के भारत पर प्रभाव

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(विवेक रंजन श्रीवास्तव -विभूति फीचर्स)

वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण बनती जा रही है। दुनियां लंबे खिंचते रूस-यूक्रेन युद्ध संकट के बीच ईरान-इजराइल संघर्ष का हालिया तनाव झेल रही है। ईरान और इजराइल के बीच तनाव चरम पर है जो विश्व युद्ध की ओर बढ़ सकता है। इजराइल ने 13 जून 2025 को ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों, विशेष रूप से तेहरान, इस्फहान और फोर्डो में हवाई हमले किए, जिसमें 138 से अधिक लोग मारे गए और ईरान की सबसे बड़ी गैस फील्ड साइट पर उत्पादन रुक गया।
जवाब में, ईरान ने ‘ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस थ्री’ के तहत 150 से ज्यादा बैलेस्टिक मिसाइल इजराइल के रिहायशी इलाकों में चला दी है। भारत की स्थिति और प्रतिक्रिया तटस्थ है । भारत ने दोनों देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखते हुए कूटनीति और बातचीत के जरिए तनाव कम करने की वकालत की है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्षों को विवाद को डिप्लोमेसी से सुलझाना चाहिए।नागरिकों की सुरक्षा को लेकर ईरान में फंसे भारतीयों, खासकर कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा के लिए भारत सरकार सक्रिय है। एडवाइजरी जारी की गई है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर से इस मुद्दे पर हस्तक्षेप की मांग की। तेहरान में तीन भारतीयों के लापता होने की खबर है, और भारतीय दूतावास उनकी तलाश में जुटा है । भारत ने अपने नागरिकों को ईरान और इजराइल की गैर-जरूरी यात्रा से बचने और स्थानीय दूतावासों के संपर्क में रहने की सलाह दी है।
इस तनाव के भारत पर आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रभाव निश्चित है। आर्थिक प्रभाव की बात करें तो इजराइल-ईरान युद्ध के कारण वैश्विक तेल की कीमतों में उछाल आया है (ब्रेंट क्रूड 75.49 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया है), जिससे भारत जैसे तेल आयातक देशों पर महंगाई का दबाव बढ़ा है। भारतीय शेयर बाजार में भी गिरावट देखी गई, जिसमें पांच दिनों में 1.65 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
भारत के लिए दोनों देशों के साथ संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण है। इजराइल भारत का रक्षा और तकनीकी साझेदार है, जबकि ईरान से हमारे तेल और चाबहार बंदरगाह जैसे रणनीतिक हित जुड़े हैं। भारत ने मध्यस्थता की पेशकश भी की है। सोशल मीडिया और जनमत के अनुसार कुछ भारतीय इजराइल का समर्थन व्यक्त करते हैं, क्योंकि वह 1971 और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे मौकों पर भारत के साथ खड़ा रहा। दूसरी ओर, कुछ लोग भारत के तटस्थ रुख का समर्थन करते हैं और युद्ध की आलोचना करते हैं। ईरान के राजदूत इराज इलाही ने भारत को मध्य पूर्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला देश बताया और इजराइल की आलोचना की है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का संतुलनवादी रुख मध्य पूर्व में स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। भारत युद्ध को रोकने के लिए मध्यस्थता की भूमिका निभा सकता है, विदेश मंत्री जयशंकर के बयानों से भी यह संकेत मिलता है।
यदि युद्ध बढ़ता है, तो होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने का खतरा है, जो वैश्विक तेल आपूर्ति और भारत की ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित करेगा।भारत ईरान और इजराइल के बीच तनाव में तटस्थ और कूटनीतिक रुख अपनाए हुए है, अपने नागरिकों की सुरक्षा और आर्थिक हितों को प्राथमिकता दे रहा है। यह भारत की दूरगामी नीति है। दोनों देशों के साथ भारत के मजबूत संबंध इसे मध्यस्थता की स्थिति में रखते हैं, लेकिन युद्ध का विस्तार भारत के लिए आर्थिक और रणनीतिक चुनौतियां बढ़ा सकता है।
जो भी है, दुनियां के व्यापक हित में हर कीमत पर युद्ध रोकना चाहिए।
परमाणु शक्ति ऐसी ताकत बनती जा रही है, जिस पर छोटे बड़े हर देश बेहिसाब खर्च तथा संसाधनों एवं टेक्नोलॉजी की चोरी जैसे अनैतिक कार्य, करने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं। यदि विश्व में जितना खर्च सेनाओं पर हो रहा है, उसका आधा भी सद्भावना से नागरिक विकास पर होने लगे तो दुनियां का विकास अलग स्तर पर हो सकता है। अंतरिक्ष की तरह ही परमाणु शक्ति को भी मानव मात्र की संपदा घोषित करने हेतु यू एन ओ को कदम उठाने चाहिए । पर खेद है कि यू एन ओ मानव मात्र के नैसर्गिक वैश्विक विस्तार, विश्व सरकार , जैसे मूल भाव पर काम नहीं कर रहा है। प्रत्येक देश ग्लोबलाइजेशन की आवश्यकता के विपरीत संकुचित कट्टरपंथी दृष्टिकोण से प्रेरित है। अमेरिका की नई नीतियां दुख दाई हैं। इस समय में भारत की वैश्विक सोच को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। *(विभूति फीचर्स)*

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