( सुभाष आनंद-विनायक फीचर्स)
मानसून यद्यपि मौसम को सुहावना बना देता है लेकिन वह अपने आप विभिन्न-विभिन्न प्रकार की बीमारियां भी लेकर आता है। इन दिनों पीलिया का प्रकोप जगह जगह फैल रहा है। वर्षा के आरंभ से ही भारत में पीलिया के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ने लगी है, जिसका शिकार सबसे ज्यादा बच्चे होते हैं।
इस रोग की मुख्य वजह दूषित पानी को ही माना जाता है जिसके जरिए इसके विषाणु शरीर में पहुंच जाते हैं हेपेटाइटिस या उदर प्रवाह एवं पीलिया एक आम ही बीमारी है जिसे अंग्रेजी में जांडिस भी कहते हैं। यकृत में जलन की बीमारी हेपेटाइटिस के नाम से जानी जाती है, बच्चों और बड़ों में यह बीमारी अलग-अलग प्रकार से जानी जाती है और दोनों के उपचार में बड़ा अंतर होता है।
पांच एवं छह साल की आयु के बच्चों में वक्षपिंजर और संधिस्थल के स्पर्श से भी इस बीमारी का पता चल सकता है। इस बीमारी का प्राथमिक अनुमान छूकर भी लगाया जा सकता। हेपेटाइटिस या पीलिया मूलत: दो प्रकार से होता है। हेपेटाइटिस ए और हेपेटाइटिस बी यह दोनों बीमारियां विषाणु संक्रमण से होती है। इसके अतिरिक्त कई बार कुछ दवाईयों की प्रतिक्रिया स्वरूप भी यह बीमारी होती है। उदारणतथा आई सोनायाजाइर एसिटामिनोफेन या प्राथमिकता श्रेणी की दवाइयों की प्रतिक्रिया से भी हेपेटाइटिस हो सकता है।
अमोनिया संक्रमण से भी इस बीमारी का खतरा बढ़ सकता है जिसे एमिबिक हेपेटाइटिस कहते हैं, बच्चों में सबसे ज्यादा हेपेटाइटिस होते देखा गया है। गर्मी और बारिश के मौसम में यह रोग प्राय:बढ़ने लगता है। दूषित भोजन और दूषित पानी से इनफेक्टिव हेपेटाइटिस की आशंका बढ़ने लगती है। इस बीमारी से पीड़ित शिशु के मल में इसके विषाणु होते हैं। ग्रीष्म एवं वर्षा में जल के प्रदूषित होने की संभावना सबसे बड़ी होती है, इसलिए इन दोनों मौसमों में बीमारी का प्रकोप सबसे ज्यादा बना रहता है।
सीरम हेपेटाइटिस या हेपेटाइटिस बी आम तौर पर बच्चों को नहीं होता, यह बीमारी खाने-पीने वाली वस्तुओं से नहीं फैलती ,सीरम हेपेटाइटिस से पीड़ित व्यक्ति का रक्त किसी दूसरे व्यक्ति को देने या फिर प्रयुक्त इंजेक्शन आदि का प्रयोग करने से वही बीमारी होती है । स्तन पान कराने वाली महिलाओं एवं गर्भवती महिलाओं को यह बीमारी होने पर शिशु में इसका संक्रमण संभव है, यहां तक की चुम्बन से भी बच्चे इस बीमारी से प्रभावित हो सकते है।
डॉक्टरों का कहना है कि पीलिया की बीमारी यूं तो हर उम्र में हो सकती है, लेकिन 5 से 10 वर्ष की आयु में यह बीमारी चरम सीमा पर होती है। पहले पहल हेपेटाइटिस में 5 से 6 दिन हलकी जलन होती है,रोगी की भूख एक दम समाप्त हो जाती है इसके अतिरिक्त पेशाब का रंग पीला पड़ जाता है, धीरे-धीरे आंखें सफेद होनी शुरू हो जाती है ,अंत में मुंह का भाग भी पीला होने लगता है और पेशाब का रंग भी पीला हो जाता है। धीरे धीरे सारा शरीर पीला पड़ने लगता है।
सीरम हेपेटाइटिस में हाथ पैर के जोड़ों में दर्द बढ़ने लगता है, रक्त मूत्र परीक्षण से इसका पता चल जाता है। यह बीमारी क्योंकि विषाणु संक्रमण से होती है और विषाणु या वायरस को नष्ट करने की कोई दवा फिलहाल नहीं बनी है इसलिए पीलिया को ठीक करने के लिए दवाइयों का इतना महत्व नहीं होता जितना परहेज करने का होता है। सिर्फ उबला हुए पानी का प्रयोग करना और स्वच्छ भोजन ग्रहण करना चाहिए। बीमारी ज्यादा बढ़ जाने पर भी कभी-कभी अस्पताल में दाखिल होना पड़ता है। ऐमेबिक पीलिया में एक खास किस्म की सीरीज की मदद से यकृत में जमा हो जाने के पश्चात रक्त मवाद को निकाल दिया जाता है। उपचार के रूप में मेट्रो निवाजोल क्लोरीन इत्यादि का सेवन किया जा सकता है, बच्चों की माताओ की चिंता बढ़ी रहती है कि खाने में क्या दिया जाए तो डॉक्टरों का कहना है कि उन्हें हल्का-फुल्का भजन देना चाहिए जो ताजा एवं स्वच्छ हो। उल्टी आने पर जबरन खाना नहीं देना चाहिए, अलबत्ता पीलिया के रोगी को तेल,घी, मक्खन वसायुक्त और मसालेदार भोजन नहीं देना चाहिए। आयुर्वेदिक डॉक्टर पीलिया में गन्ने का रस और मूली का रस देने पर जोर देते हैं । बच्चों में पहली श्रेणी का पीलिया ज्यादा होता है, इसके लिए उसे विषाणु रहित पेयजल अधिक से अधिक मात्रा में देना चाहिए। साफ पानी को बर्तन में ढक कर रखना चाहिए ,ब्लड चढ़ाते समय यह देख लेना चाहिए कि सीरम हेपेटाइटिस के रोगी के ना हो । सदैव डिस्पोजएबल सिरिंज का प्रयोग करना चाहिए।
आमतौर पर पीलिया चिंता का विषय नहीं होता, यदि रोगी में विशेष लक्षण दिखाई दे तो सावधान जरूर होना चाहिए। रोगी के खानपान पर नियंत्रण रखें, झाड़ फूंक या सुनी सुनाई बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए बल्कि डॉक्टर की सलाह ले और उसी के अनुसार आचरण करें। बड़े लोगों को पीलिया के दौरान शराब पीना हानिकारक साबित हो सकता है। *(विनायक फीचर्स)*



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