अंगभूमि भागलपुर की ठाकुर बाड़ियों में झूलनोत्सव की धूम

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भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए झूलन यात्रा अर्थात झूलनोत्सव एक अति आनंदमय अवसर होता है जब भक्तगण श्रावण शुक्ल एकादशी से लेकर श्रावण पूर्णिमा तक प्रतिदिन सुनहरे झूलों पर राधा-कृष्ण की झूला-लीला का आयोजन करते हैं जो इस वर्ष 5 अगस्त से लेकर 9 अगस्त तक चलेगा।
झूलनोत्सव के अवसर पर वातावरण अत्यंत सुहावना होता है। सावन के महीने में मनाये जानेवाले इस पर्व के दौरान प्रकृति रानी भी मानों सोलहों श्रृंगार के साथ निखर उठती है जब आकाश में मानसून के बादल उमड़ पड़ते हैं और भीषण गर्मी के बाद वर्षा होने से जनमानस के हृदय में प्रफुल्लता का संचार हो जाता है।

इस दौरान श्रीकृष्ण का विशेष धाम ब्रजभूमि अत्यंत मनोरम व उत्सवमय हो उठता है। देश-दुनिया भर के हजारों भक्तगण राधा-कृष्ण के इस दिव्य युगल को झूला झुलाकर उनकी सेवा करने का अवसर-आनंद पाने के लिए यहां के मंदिरों में एकत्रित होते हैं। ऐसी मान्यता है कि वृंदावन ही वह पवित्र स्थली है जहां प्रभु श्रीकृष्ण ने पांच हजार वर्ष पूर्व अपने बाल्यकाल के सबसे प्रेममय अध्याय और युवावस्था के रास-रस से सराबोर वर्ष बिताए थे। ब्रजभूमि के भव्य मंदिर महा-उत्सव की चहल-पहल से गुंजायमान हो उठते है।

इस दौरान श्रीराधा-कृष्ण के बाल लीलाओं के वृंदावन में गोप-गोपियों के साथ उनके झूला झूलने का पावन स्मरण किया जाता है।
पांच दिनों तक मनाये जानेवाले इस पर्व के दौरान श्रीकृष्ण की लीला-स्थली वृंदावन सहित देश की हर ठाकुरबाड़ियों की रौनक निखर उठती है और पूरा माहौल उत्सवमय हो उठता है। झूलनोत्सव में श्रीराधा-कृष्ण की लीला भूमि वृंदावन और देश की अन्य ठाकुरबाड़ियों के साथ अंगभूमि के नाम से विख्यात भागलपुर में भी पर्व की विशेष चहल-पहल शुरू हो जाती है। खास बात यह है कि इस प्राचीन नगरी के हर गली-मुहल्लों में राधा-कृष्ण के भव्य मंदिर हैं जहां झूलन की चहल-पहल शुरू होती है। मंदिरों और ठाकुरबाड़ियों के रंग-रोगन कराये जाते हैं तथा रंगीन बल्बों, फूलों आदि से विशेष साज-सज्जा की जाती है।

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भागलपुर नगर की ठाकुरबाड़ियों की बात करें तो यहां के प्रमुख धार्मिक स्थल बाबा बूढ़ानाथ स्थित राधा-कृष्ण मंदिर की विशेष साज-सज्जा के साथ झूलन के दौरान उन्हें प्रतिदिन मेवा-मिष्ठान सहित अंतिम दिन छप्पन भोग चढ़ाये जाते हैं, वहीं अलीगंज स्थित राधा-कृष्ण ठाकुरबाड़ी में भगवान को नये वस्त्रों से आवेष्टित किया जाता है, भजन-कीर्तन के आयोजन होते हैं और अंतिम दिन छप्पन भोग लगाया जाता है।

अनंतराम मारवाड़ी टोला में अन्य ठाकुरबाड़ियों की तरह पारंपरिक अनुष्ठान के साथ श्रीकृष्ण लीला पर आधारित कीर्तन की प्रस्तुति के साथ अंतिम दिन रंग-बिरंगे फूलों से साज-सज्जा की जाती है, वहीं गोशाला स्थित महादेव मंदिर में झूले पर विराजमान राधा-कृष्ण की आराधना में शंखनाद और घंटियों के बीच राधे-राधे के स्वर गूंजते हैं व अंतिम दिन बर्फ तथा फूलों से श्रृंगार किया जाता है। कोतवाली स्थित कूपेश्वर नाथ महादेव तथा वैरायटी चौक स्थित मंदिरों में राधा-कृष्ण के विग्रह को रेशमी वस्त्रों, आभूषणों व फूलों से सजाया जाता है जिसमें श्रद्धालु महिलाएं पारंपरिक गीत गाते हुए भक्तिभाव से भाग लेती हैं।

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प्राचीन अंग देश की राजधानी रहे नाथनगर व चम्पानगर के साथ नाथनगर रेलवे स्टेशन के आगे स्थित गग्गरा पुष्करिणी सरोवर, जहां कभी भगवान बुद्ध ने अवस्थान किया था, में स्थित कई पुरातन ठाकुरबाड़ियों में भी झूलनोत्सव के दौरान पूजन-अनुष्ठान होते हैं। नगर के मध्य में स्थित मुंदीचक मुहल्ले के पांचों राधा-कृष्ण मंदिरों में भी खूब धूमधाम रहती है।
भागलपुर के टी.एन.जे. कालेजिएट स्कूल के पीछे गंगातट पर स्थित रघुनंदन प्रसाद की ठाकुरबाड़ी अपनी भव्यता और संगमरमर की अद्भुत कारीगरी के कारण दर्शनीय है जहां झूलन में विविध अनुष्ठान होते हैं।

भागलपुर की उक्त ठाकुरबाड़ियों में सबसे महत्वपूर्ण ठाकुरबाड़ियों में बरारी सीढ़ीघाट में स्थित राधाकृष्ण मंदिर है जिसकी यादें इस अवसर पर तरोताजा हो उठती हैं। सौ वर्ष पूर्व बरारी स्टेट के जमींदार द्वारा निर्मित रोमन-हिन्दू स्थापत्य-कला का अनूठा नमूना यह अष्टकोणीय आकार का रास-मंच शैली में बना मंदिर भले आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है, पर अपनी भव्यता के कारण बरबस किसी का भी ध्यान आकृष्ट कर लेता है। मंदिर की कलात्मक नक्काशियां, बुर्ज, कंगूरे, सीढ़ियां आदि तेजी से क्षरित हो रहें हैं, फिर भी अपनी पुरानी भव्यता संजोए हुए है। सुरक्षा के अभाव में राधाकृष्ण की पीतल की भव्य मूर्ति को अन्यत्र रखा गया है और फिलहाल यहां अष्टधातु की मूर्ति स्थापित है। यहां के पुराने नरसिंह मंदिर के ध्वस्त हो जाने के कारण भगवान् नरसिंह की श्वेत संगमरमर की मूर्ति राधाकृष्ण मंदिर में ही रखी गई है।

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भागलपुर के बरारी के सीढ़ीघाट पर स्थित भव्यता के साथ निर्मित यह राधा-कृष्ण मंदिर अपनी नायाब वास्तुकला एवं राजस्थानी किलानुमा आकृति के कारण दूर से ही आकर्षित करता है। इसके निकट से गुजरने वाले विक्रमशिला सेतु से निहारने पर इस ठाकुर बाड़ी की छवि पानी में तैरते किसी महल-सी दिखती है। आज यह नायाब धरोहर घोर उपेक्षा का शिकार है जिसका समय रहते जीर्णोद्धार करके इसे धार्मिक स्थल के साथ एक आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।

इसके अलावा निजी लोगों के द्वारा भी अन्य कई महत्वपूर्ण ठाकुरबाड़ियां सम्प्रति सम्यक रख-रखाव के अभाव में कालकलवित होती जा रही हैं जिनके संरक्षण की आवश्यकता है।

(लेखक पूर्व जनसंपर्क उपनिदेशक एवं इतिहासकार हैं)

 

(शिव शंकर सिंह पारिजात-विनायक फीचर्स)

 

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