कुमाऊँ की सुरम्य वादियों में बसा काकड़ीघाट केवल एक स्थान नहीं, बल्कि आत्मा और ईश्वर के मिलन की पवित्र पावन भूमि है। नैनीताल–अल्मोड़ा मार्ग पर स्थित यह घाट, गौला नदी के किनारे फैली हरियाली और पहाड़ों की गोद में बसी शांति का अद्भुत संगम है।
कहा जाता है, एक समय स्वामी विवेकानंद हिमालय की यात्रा पर निकले थे। रास्ते में वे काकड़ीघाट पहुँचे। यहाँ बहती नदी के किनारे बैठकर उन्होंने गहन ध्यान किया वही क्षण था जब उन्हें ईश्वर के अस्तित्व का सीधा अनुभव हुआ।
उन्होंने महसूस किया कि सृष्टि के प्रत्येक कण में परमात्मा विद्यमान हैं।
आज भी जब कोई यात्री उस घाट पर बैठता है, तो वही सन्नाटा, वही ठंडी हवा, और वही आत्मिक ऊर्जा उसे घेर लेती है। वहाँ का हर वृक्ष, हर लहर मानो कहती है
“हे मनुष्य! ईश्वर बाहर नहीं, तुम्हारे भीतर ही निवास करते हैं।”
काकड़ीघाट में आज विवेकानंद आश्रम और एक प्राचीन शिव मंदिर स्थित है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक, दोनों ही उस अदृश्य शांति का अनुभव करते हैं, जो शब्दों में नहीं बाँधी जा सकती।
यह स्थल केवल एक स्मृति नहीं, बल्कि आत्मचिंतन की जीवंत भूमि है
जहाँ विवेकानंद की आत्मा अब भी हवा में गूँजती प्रतीत होती है।
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