केदारेश्वर महादेव:जिनके दर्शन से तीन पीढियों का होता है उद्धार

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उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में भगवान शंकर का केदारनाथ नाम से विख्यात ज्योर्तिलिंग स्थापित है। चार धाम तीर्थ यात्रा का यह एक प्रमुख स्थल है। यहाँ भगवान शंकर की पीठ की ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा की जाती है। केदारनाथ का ज्योतिर्लिंग जिस क्षेत्र में स्थापित है उसे केदारखंड कहा जाता है। इसके आसपास के अन्य मंदिर पंच केदार कहलाते है। माना जाता है स्वयं भगवान विष्णु की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है।
श्री शिवमहापुराण में केदारेश्वर ज्योतिलिंग के बारे में जो विवरण मिलता है उसके अनुसार एक समय भगवान विष्णु ने नर और नारायण के रूप में अवतार लिया और बद्रिकाश्रम में भगवान शिव की पूजा करते हुए घनघोर तप किया। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनसे वर मागने के लिए कहा। तब नर-नारायण ने लोक कल्याण की कामना से भगवान शंकर से वहीं पर विराजमान होने का अनुरोध किया। उनके अनुरोध को स्वीकार करते हुए देवाधिदेव महादेव हिमालय के केदार वन में ज्योतिरूप में विराजमान हो गए और इस संपूर्ण चराचर जगत में केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रुप में प्रसिद्ध हुए।
*इत्युक्तस्य तदा ताभ्या केदारे हिमसंश्रये।*
*स्वयं च शकरस्तस्थौ ज्योतीरूपो महेश्वरः ।* (कोटिरुद्रसंहिता, श्रीशिवमहापुराण)

पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात सभी पांडवों को अपने परिजनों के मारने का दुख होता था। वे पश्चाताप एवं ग्लानि से भरे हुए थे। तब उनके गुरु और ऋषियों ने उन्हें शिव की शरण में जाने का सुझाव दिया। भगवान शंकर भी पांडवों द्वारा परिजनों की हत्या किए जाने से नाराज थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए जब पांडव भगवान शंकर के दर्शन के लिए काशी (वाराणसी) पहुंचे तो भगवान शंकर कैलाश चले गए। जब पांडव कैलाश पर पहुंचे तो भगवान शंकर वहाँ से भी चले गये। इस तरह जहाँ – जहाँ भगवान शंकर जाते, पांडव उनका पीछा करते करते वहीं पहुंच जाते। अंत में जब पांडव केदार क्षेत्र में पहुंचे तो वहां उन्हें देखकर भगवान शंकर ने महिष (बैल या भैंसा) का रूप धारण कर लिया लेकिन इस रुप में भीम ने उन्हें पहचान लिया और उनका पीछा किया। यह देखकर भगवान शंकर धरती में समाने लगे लेकिन तब तक भीम ने उन्हें पीछे से पकड़ लिया। इस समय तक भगवान शंकर के बैल रूप का केवल कूबड़ ही धरती पर रह गया था। भगवान शंकर ने इसी स्थान पर पांडवों को दर्शन देकर उन्हें समस्त पापों से मुक्त कर दिया। पांडवों ने यहीं पर भगवान केदारनाथ के मंदिर का निर्माण कराया।
श्री शिवमहापुराण के अनुसार भगवान शंकर के महिष रुप का सिर नेपाल में और धड़ केदार क्षेत्र में ज्योर्तिलिंग के रूप में विराजमान है।

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*स्कंद पुराण में वर्णित कहानी*

स्कंद पुराण के केदार खंड़ में केदारनाथ भगवान शिव की विस्तृत कथा का वर्णन है। इस कथा के अनुसार, एक बार किसी काल में हिरण्याक्ष नाम का एक दैत्य हुआ। इस दैत्य ने त्रिलोक को अपने अधिकार में कर लिया और इंद्र सहित सभी देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया। तब देवराज, हिमालयी क्षेत्र में मंदाकिनी नदी के किनारे-किनारे चलते हुए एकांत स्थान पर पहुंचे और दैत्य से हार के कारण दुखी होकर होकर तपस्या में लीन हो गए। वहां उन्होंने कई वर्षों तक भगवान शंकर की तपस्या की। इंद्र की तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान शिव महिष (भैंसा) के रूप में प्रकट हुए। तब भगवान शंकर ने इंद्र से एक प्रश्न पूछा, *”के दारयामि?”* अर्थात् ‘जल में किसे डुबा दूं?’ इस प्रश्न को सुनकर इंद्र ने सोचा कि इस निर्जन एकांत प्रदेश में यह प्रश्न कौन करेगा? उन्हें तत्काल समझ आ गया कि यह प्रश्न इस भैंसे का ही है। कई वर्षों की तपस्या से इंद्र हर प्राणी की चेतना में ईश्वरीय शक्ति को देख सकते थे। वे समझ ही गये कि यह भैंसा भी महादेव का ही स्वरूप है। तब इंद्र ने उन्हें अपना आराध्य कहकर प्रणाम किया। इस पर भैंसे ने फिर पूछा *”के दारयामि?”*(किसे डुबाऊं ?)
तब इंद्र ने हिरण्याक्ष, सुबाहु, वक्त्रकंधर, त्रिशृंग और लोहिताक्ष दैत्यों के नाम लेकर कहा कि इन पांचों का आप वध कर दीजिए, फिर शिवजी ने इसी भैंसे के स्वरूप में हिरण्याक्ष दैत्य सहित इन पांचों दैत्यों का वध कर दिया। तब इंद्र ने एक और वरदान मांगा और महादेव शिव से विनती की आप इसी स्वरूप के लिंगरूप में यहां निवास करें,मैं हर दिन स्वर्ग से आकर यहां आपकी पूजा करूंगा। तब शिवजी ने कहा- तुम्हारी इच्छानुसार मैं यहां केदार शिव के नाम से निवास करूंगा।
इसी स्थान पर भगवान शंकर ने एक कुंड़ का निर्माण भी किया और कहा कि केदारेश्वर के दर्शन और इस कुंड के जल को दोनों हाथों से तीन बार पीने से श्रद्धालुओं के माता-पिता दोनों पक्ष की तीन पीढ़ियों का उद्धार होगा। बाएं हाथ से जल पीने से मातृ-पक्ष का, दाएं हाथ से पितृ-पक्ष का, और दोनों हाथों से जल पीने से स्वयं का उद्धार होगा। इसीलिए कहा जाता है कि यदि कोई भक्त यहां पिंडदान करता है और गया में भी पिंडदान करता है, तो उसे ब्रह्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवाधिदेव महादेव के प्रश्न *के दारयामि?* के ही आधार पर मंदाकिनी के किनारे का यह स्थल केदार क्षेत्र कहलाया। इसी आधार पर इसे केदार खंड कहा गया है।
मान्यता है कि यहां भगवान शंकर लोक का कल्याण करने के लिए विराजमान हैं जो दर्शन एवं पूजन करने पर अपने भक्तों के समस्त मनोरथों को पूर्ण करते हैं। केदारेश्वर की भक्ति करने वालों को स्वप्न में भी किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। वे सभी की सभी प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाले देवाधिदेव महादेव केदारेश्वर हैं।

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(अंजनी सक्सेना-विभूति फीचर्स)

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