बाबा विश्वकर्मा का विधान अलौकिक है,अलौकिक पुरुषो के कार्य भी अलौकिक ही होते है, अलौकिक विभूतियों में सर्वोपरि भगवान विश्वकर्मा के कर्म भी अलौकिक है,ब्रह्मलोक,विष्णुलोक,एवं शिव लोक की रचना करने वाले विश्वकर्मा ने ही देवताओं के लिए अमरावति का निर्माण किया उनकी आज्ञा से उनके वास्तुपुरुषपुत्रों ने राजा पृथु के लिए भातिं भातिं की शिल्प कलाओं के निर्माण के साथ आर्कषण देवालय बनाये।राजा पृथु का कार्य प्रारम्भ करने के लिए भगवान श्री विश्वकर्मा जी की आज्ञा से उनके पुत्रों ने पृथ्वी के अन्तस्थल में से सोना,चांदी,लोहा तथा अनेक प्रकार की धातुऐ निकाली ।रत्न,पाषाण,शिलाओं के संग्रह से अनेकों अलौकिक निर्माण किये। गजशाला,अश्वशाला,गौशाला के स्वरुप बाबा विश्वकर्मा की ही कृपा है।सन्यासियों के लिए आश्रम,विद्यालय,अग्निशाला,यज्ञशाला,व्यायामशालायें ,जलाशय,शरोवर,उघान,देवमूर्तियां,रगंमंच,आदि अनेकों रचनाएं भगवान विश्वकर्मा जी की जगत को अलौकिक सौगात है।
पृथ्वी का उद्वार करने के लिए राजा पृथु की प्रार्थना पर मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी को विश्वकर्मा जी पृथ्वी पर अवतरित हुएं उसी दिन से इस बसुंधरा में बाबा का पूजन आरम्भ हुआ और राजा पृथु ने शुरु किया सबसे पहले विश्वकर्मा जी का पूजन



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