उत्तरायणी मेला समिति के महामन्त्री विनोद श्रीवास्तव ने दी मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं

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लालकुआँ/उत्तरायणी मेला समिति के महामन्त्री विनोद श्रीवास्तव ने दी मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएंलालकुआँ/ वरिष्ठ भाजपा नेता उत्तरायणी मेला समिति के महामन्त्री विनोद श्रीवास्तव ने कहा सूर्य जब धनु राशि को छोड़ कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे उत्तरायण काल कहा जाता है। इस पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं हैं
उन्होने कहा इस अवसर पर प्राणी जगत में एक नये परिवर्तन की शुरूआत होती है जिसे जीवन्त बनाने के लिए त्यौहार एवं उत्सव आयोजित किये जाते हैं। यह अवसर विश्व शांति का महान प्रतीक है। मकर संक्रांति में वसुधैव कुटुम्बकम की पावन भावना सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार की तरह रहने का संदेश देती है।
श्री श्रीवास्तव ने कहा उत्तरायण काल से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है इसलिए इसको उत्तरायणी भी कहते हैं। उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति, तमिलनाडु में पोंगल, कर्नाटक, केरल तथा आंन्ध्र प्रदेश में इसे केवल ‘संक्रांति कहते हैं। हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है।
देवभूमि उत्तराखण्ड में मकर संक्रांति की पहली रात्रि को जागरण की परम्परा है। इस दिन शुद्घ एवं सात्विक भोजन के उपरान्त रात्रि काल में लोग आग जलाकर उसके चारों ओर बैठ जाते हैं और अपनी प्राचीन परम्परा एवं मर्यादाओं पर आधारित कथा-कहानियां तथा आदर्शों को याद करते हैं। प्रातःकाल नदियों, तालाबों, जल धाराओं पर जाकर सूर्योदय से पूर्व स्नान करते हैं और अपने पूर्वजों की पूजा करते हुए बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता है।*
श्री श्रीवास्तव ने बताया उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से दान का पर्व है। इलाहाबाद में यह पर्व माघ मेले के नाम से जाना जाता है। 14 जनवरी से इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरूआत होती है। 14 दिसम्बर से 14 जनवरी का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। 14 जनवरी यानी मकर संकांति से अच्छे दिनों की शुरूआत होती है। माघ मेला पहला स्नान मकर संक्रांति से शुरु होकर शिवरात्रि तक यानी आखिरी नहान तक चलता है। संकांति के दिन स्नान के बाद दान करने का चलन है।
उन्होनें कहा मकर संकंति के अवसर पर उत्तराखण्ड के सभी तीर्थों में मेले लगते है। जिसमें बागेश्वर का उत्तरायणी मेला, गौचर मेला, देव प्रयाग मेला आदि प्रसिद्व हैं। गंगा, यमुना, सरयू, गोमती, रामगंगा, कौशिकी गंगा, अलकनंदा, भागीरथी आदि सभी नदियों के पवित्र तटों पर स्नान, बयान, साधना व अनुष्ठान करने की परम्परा है।
उन्होंने कहा कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। महाभारतकाल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।

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