चलो बुलावा आया है, माँ धुर्का ने बुलाया है, भव्य जागरण 27 जून को, भक्तों में भारी उत्साह

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धुर्का देवी /अल्मोड़ा/ सालम पट्टी में स्थित माँ धुर्का देवी के दरबार में 27 जून की रात्रि को भव्य जागरण का आयोजन होने जा रहा है 28 जून को जागरण के पश्चात विशाल भंडारा भी आयोजित होगा अनेक क्षेत्र से भक्त जन इस जागरण में भाग लेने के लिए बेहद उत्साहित हैं जागरण की इन दिनों भव्य तैयारियाँ चल रही है
उत्तराखंड की धरती पर माता धुर्का देवी का दरबार जगत माता की ओर से भक्तों को अनुपम भेंट है कहा जाता है कि जो भी प्राणी अपने आराधना के श्रद्वा पुष्प माता धुर्का के चरणों में अर्पित करता है उसके रोग, शोक, दुःख, दरिद्रता एंव विपदाओं का हरण हो जाता है। उत्तराखंड क्षेत्र के अंतर्गत कुमाऊं मंडल के जनपद अल्मोड़ा में स्थित धुर्का देवी का दरबार सदियों से आस्था व भक्ति का सगंम रहा है।

गौ माता की कृपा से प्रकट हुआ देवी का यह दरबार पवित्र पहाड़ों की चोटी में स्थित है यहां पहुंचकर आत्मा दिव्य लोक का अनुभव करती है इस स्थान पर पहुंच कर मन को जो शांति प्राप्त होती है उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है माता जगदम्बा पराशक्ति श्री धुर्का से ही शब्द एवं सृष्टि की उत्पत्ति हुयी है। मार्कण्डेय पुराण के देवी महात्म्य अथवा दुर्गा चरित में आद्याशक्ति भगवती महामाया को सभी देवताओं के शरीर से निकला हुआ तेज बताया गया है, जो एकस्थ होकर तीनों लोकों में व्याप्त हुआ उन्हीं व्याप्त रुपों में एक दिव्य नारी रूप को प्राप्त करता है- अतुलं तत्र तत्तेज: सर्वदेवशरीरजम्। एकस्थं तदभून्नारी व्यालोकत्रयं त्विषा।।” यही निखिल तेजोमयी नारी भगवती दुर्गा कहलायीं,व धुर्का के नाम से जगत में प्रसिद्व है। जिनके आविर्भाव का वही प्रयोजन है जो गीता में भगवान के अवतार का प्रयोजन बताया गया है.

जगदम्बा धुर्का का यह आविर्भाव देवताओं की कार्यसिद्धि के निमित्त होता है. यथा- “देवानां कार्यसिद्धयर्थमाविर्भवति सा यदा।” मार्कण्डेय पुराण के वर्णन में स्पष्ट है कि एक ही महाशक्ति विभिन्न रूपों में अवतरित होकर भातिं भांति प्रकार की लीलाएँ किया करती हैं. महालक्ष्मी, महासरस्वती तथा महाकाली रूप में उसी परमात्मशक्ति का वर्णन देवी महात्म्य में किया गया है। वस्तुत: ब्रह्म की यह शक्ति ब्रह्म से सर्वथा अभिन्न है. इसी से ऋषि-मुनियों ने शक्तिमान परमात्मा को महाशक्ति के रूप में देखा. देवीभागवत में आद्याशक्ति के विराट स्वरूप का बड़ा ही सुन्दर वर्णन है. गिरिराज हिमालय की प्रार्थना पर महाशक्ति ने अपना विराट स्वरूप देवताओं को दिखाया था. इन्हीं स्वरुपों माँ धुर्का एक है। देवी भागवत में प्रकृति-तत्व का वर्णन देवीरूप में किया है. प्रकृति का यह पावन स्थल गौ माता की कृपा से प्रकट हुआ है।विविध पुराणों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि भगवती उमा आर्य-कन्याओं की चिर-आराध्या रही हैं, इसीलिये विवाह के समय सीताजी गिरिजा-पूजन करने जाती हैं. इसीप्रकार, द्वापर युग में श्याम-प्रेयसी राधाजी सहित अन्य गोप-कन्याओं ने भी श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने की कामना से कालिन्दी नदी के तट पर बालू द्वारा माँ भगवती कात्यायनी की प्रतिमा का निर्माण कर पूजा-अर्चना की थी. वहीं दूसरी ओर, श्रीकृष्ण ने जब रुक्मिणी-हरण किया तब वह गिरिजा-पूजन करने ही गयी हुयी होती हैं. भागवत में इसका सुन्दर चित्र उपस्थित है. एक ही महाशक्ति के विभिन्न स्वरूप हैं.

धुर्का देवी के प्रति आस्था रखने वाले मां धुर्का के भक्त स्व० श्री नारायण भट्ट जी कहते थे इस देवी की महिमां अपरम्पार है देवी के अनन्त स्वरूपों मे गौ माता ने माँ धुर्का की आराधना करके उन्हें प्रकट किया है। जिसकी आस्था भगवती धुर्का के जिस किसी रूप के प्रति समर्पित हो, उसे उसमें ही देवी के समस्त रूपों की उपस्थिती स्वीकार कर आराधना परम फलदायी सिद्ध होती है। ममतामयी माता धुर्का की शरण निश्चित ही अपने भक्तों को मुक्ति दिलानेवाली और उन्हें सौभाग्यपथ पर अग्रसर करानेवाली होती है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं. देविप्रपन्नार्तिहरे प्रसीद, प्रसीद* मातर्जगतोखिलस्य। प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं, त्वमीश्वरी देवी

कुमांऊ क्षेत्र की पवित्र घाटियों में विभिन्न रूपों में पूज्यनीय माँ जगदम्बा के श्रद्धामय स्थलों में मुख्यतः देवी वन सती, हाट कालिका, अवन्तिका मन्दिर लालकुआं-बिन्दुखत्ता क्षेत्र, शीतला देवी मन्दिर काठगोदाम, सुर्या देवी मन्दिर गौलापार, कालिका मन्दिर गौलापार हल्द्व़ानी, गर्जिया देवी रामनगर, खड्गधारिणी माता खटीमा, पूर्णागिरी माता टनकपुर क्षेत्र, नैना देवी नैनीताल, कैंची धाम भवाली, नन्दा देवी अल्मोड़ा, दूनागिरी माता द्वाराहाट, ध्वज काली मन्दिर दुर्गा शक्ति पीठ बागेश्वर क्षेत्र, तुष्टि माता पुष्टि माता जागेश्वर, गणिका देवी बागेश्वर, कालिका मन्दिर रानीखेत शीतलाखेत की शीतला देवी, अल्मोड़ा की कसार देवी, नन्दा माता, सीतावनी मन्दिर, रामनगर क्षेत्र गर्जिया, भगवती हिंगला चम्पावत क्षेत्र, अटरिया मन्दिर रूद्रपुर, माता बाराही देवी देवीधुरा, माता चैती देवी काशीपुर, कोट भ्रामरी देवी बागेश्वर क्षेत्र, महाकाली शक्ति पीठ गंगोलीहाट, कोटगाड़़ी शक्ति पीठ पांखू, चामुण्ड़ा मन्दिर गंगोलाहाट, बिलकोट की देवी बेरीनाग, देवी शक्ति पीठ चिढगल, गुरना देवी पिथौरागढ, ग्यारह देवी पिथौरागढ, त्रिपुरा देवी बेरीनाम, माता भुवनेश्वरी पाताल भुवनेश्वर भद्रकाली अल्मोड़ा क्षेत्र, धुर्का देवी धुर्का सहित सैकड़ो देवी मन्दिर व शक्ति पीठों की भरमार है। इन तमाम महत्वपूर्ण मन्दिरों व शक्तिपीठों में भक्तजनों का हमेशा तांता लगा रहता है व आकर्षण बना रहता है

ये तमाम असंख्य शक्तिपीठों अपनी-अपनी रहस्यमयी अलौकिक कथाओं के लिए खासे प्रसिद्ध हैं, और अनादि काल से आज तक आस्था के पावन केन्द्र बने हुए है। माता जगत जननी जगदम्बा की पूजा का विधान सिर्फ पवित्र भावना एवं शुद्ध जीवन है। यही ध्यान करके योग्य दुर्लभतम वस्तु या स्थिति है। इसी वस्तु को प्राप्त कर निष्काम भक्तजन परम दुर्लभ मोक्ष को पाकर कृतार्थ होते हैं, राजा सुरथ से महर्षि मेधाजी ने कहा था-
‘‘*तामुपौहि महाराज शंरण परमेश्वरी*!
आराधिता सर्वे नृंण भेगस्व गषिवर्गदा*!!’
अर्थात आप उन्हीं भगवती परमेश्वरी की शरण में जाइये, वे आराधना से प्रसन्न होकर मनुष्यों को भोग, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करती हैं। दुर्गासप्तसती के अनुसार आराधना करके ऐश्वर्यकामी राजा सुरथ ने अखण्ड़ साम्राज्य प्राप्त किया तथा बैराग्यवान समाधि ने दुर्लभ ज्ञान के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति की भगवती माता के ध्यान में सबसे बड़ी बात है प्रेम पूर्वक भक्ति के स्वरूप से अनेक प्रकार की व्याधियां स्वतः ही शान्त हो जाती है। अनेक प्रकार से दुर्गा सप्तसती में भांति-भांति भगवती की पूजा का विधान बताया गया है। जिसमें मुख्यतः कवच, अर्गला, कीलक, वैदिक, रात्रीसूक्त, देवीसूक्त, सिद्ध कुन्जिका स्त्रोत, सप्तश्लोकी दुर्गा, श्री दुर्गाद्धाप्रिशन्नाममाला, श्री दुर्गाष्टोन्तश्शत नाम स्त्रोत, श्री दुर्गामानस पूजा आदि है। इस प्रकार माँ जगदम्बा की विभिन्न रूपों से की गयी पूजा का भगवती की कृपा से शीघ्र अनुभव हो जाता है। सभी बाधाऐं शान्त हो जाती हैं और सभी कार्य सिद्ध हो जाते है। जिसका मूल-मन्त्र है- सर्वाबाधाप्रशमन त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी*!
*एवमेवत्वया कार्यमस्य दैति विनाशनम्!!’’*
स्व०श्री भट्ट बताते थे कलिकाल में धुर्का माता के दरबार में कीर्तन का महत्व सर्वाधिक है माँ धुर्का देवी के पावन स्थल के दर्शन करने हेतु श्रद्धालु जनों को अल्मोड़ा से बाड़ेछीना काफली खान चेलछीना होते हुए लगभग डेढ़ किमी की पैदल यात्रा कर यहां तक की दूरी तय करनी पड़ती है।एक अन्य दूसरा मार्ग धानाचूली लामगाडा होते हुए है।
कुल मिलाकर गो कृपा से प्रकट यह पावन पीठ आदिकाल से पूजनीय है

लमगड़ा विकासखंड के अंतर्गत पवित्र पहाड़ों की चोटी में लाल ध्वजा फहराती माँ भगवती का यह दरबार आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है बांज देवदार बुरुश आदि पेड़ों की मनमोहक वादियो में स्थित काफली खान भनोली मोटर मार्ग से लगभग ढाई किमी दूर पहाड़ी की चोटी में स्थित माँ धुर्का कष्ट निवारिणी देवी के नाम से भी प्रसिद्ध है कहा जाता है कि वनवास काल के दौरान पांडवों ने यहां पर देवी की आराधना करके माँ धुर्का से दिव्य शक्तियां प्राप्त की थी
इस स्थान के बारे में अनेक दंत कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से एक कथा इस प्रकार है कहा जाता है कि माँ धुर्का देवी की परिधि में आने वाले एक गांव काण्डे गाँव में एक ब्राह्मण के पास एक सुंदर गाय थी प्रतिदिन तमाम जानवरों के झुंडों के साथ वह गाय भी इस जंगल में चरनें आया करती थी और इस चोटी पर चढ़कर उपरोक्त स्थान पर शक्ति को अपना दूध अर्पित करती थी गाय का मालिक प्रतिदिन घोर आश्चर्य में रहता था कि आखिर इसका दूध जाता कहां है एक दिन उसने गाय का पीछा किया पिछा करते-करते वह उपरोक्त स्थान पर पहुंचा जब उसने यह दृश्य देखा तो वह भयानक आश्चर्य में पड़ गया क्रोधित ब्राह्मण ने जब इस शक्ति पर कुल्हाड़ी से वार किया तो तभी आकाशवाणी हुई कि यह शक्ति स्थल है इस घटना के बाद गाय अदृश्य हो गई ब्राह्मण ने पश्चाताप करके देवी माँ की शरण ली
धीरे धीरे यह बात समूचे क्षेत्र में फैल गई। स्थानीय भक्तों ने मिलकर यहाँ सुन्दर मंदिर का निर्माण कराया है धुर्का गाँव के भट्ट लोग यहाँ बारीदारी अदा कर पूजा अर्चना करते है एक अन्य कथा के अनुसार बाराही देवी मंदिर में लगने वाले बग्वाल मेले जिसे पत्थर मार मेला भी कहते हैं और जो प्रतिवर्ष रक्षाबंधन पर्व के दिन पर आयोजित होता है। यह बग्वाल मेला पहले धुर्का देवी के मंदिर में हुआ करता था जिसके अवशेष आज भी धुर्का में विद्यमान हैं। कहा जाता है कि बाद में माता की प्रेरणा से महाबली भीम ने यहां की शिलाओं को स्थानांतरित कर देवीधुरा के बाराही मंदिर में स्थापित कर दिया। तब से बग्वाल मेला देवीधुरा बाराही मंदिर में आयोजित होता है। विभिन्न पर्वों पर यहां भक्तों की अच्छी खासी भीड़ भाड़ रहती है दूर दराज क्षेत्रों में बसे लोग जब अपने घर आते हैं तो माँ धुर्का देवी का आशीर्वाद लेने अवश्य जाते हैं रहस्यमई शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित देवी के दरबार की महिमा अपरम्पार है

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